फाइलों की धूल से निकलकर पर्दे पर गूंजेगा सच— फिल्म ‘सागवान’ में दिखेगा अंधविश्वास का खौफनाक चेहरा!

फाइलों की धूल से निकलकर पर्दे पर गूंजेगा सच— फिल्म ‘सागवान’ में दिखेगा अंधविश्वास का खौफनाक चेहरा!

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

WhatsApp Image 2025-08-14 at 5.25.09 PM
previous arrow
next arrow
WhatsApp Image 2025-08-14 at 5.25.09 PM
00
previous arrow
next arrow

अक्सर कहा जाता है कि पुलिस की फाइलें कभी नहीं बोलतीं, लेकिन जब उन फाइलों के पीछे छिपी चीखें किसी संवेदनशील इंसान को सुनाई दे जाएं, तो ‘सागवान’ जैसी फिल्म का जन्म होता है।

उदयपुर के जांबाज पुलिस अधिकारी हिमांशु सिंह राजावत ने खाकी की उसी गरिमा और समाज की उसी कड़वी सच्चाई को समेटकर एक ऐसी फिल्म तैयार की है, जो जल्द ही सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली है।

आस्था या अंधा डर? फिल्म उठाती है चुभते सवाल

दक्षिणी राजस्थान के सागवान के जंगलों के बीच पनपी यह कहानी किसी एक मर्डर मिस्ट्री तक सीमित नहीं है। यह फिल्म उस अंधविश्वास पर प्रहार करती है, जो आज भी विज्ञान के युग में मासूमों की जान का दुश्मन बना हुआ है। फिल्म की पटकथा इस बुनियादी सवाल को कुरेदती है कि— जब इंसान की आस्था, डर में बदल जाती है, तो वह हैवानियत की हदें क्यों पार करने लगता है?

खाकी भी, कहानी भी और कलाकारी भी

फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी खुद हिमांशु सिंह राजावत हैं। एक रीयल लाइफ पुलिस अफसर को रील लाइफ में पुलिसिंग करते देखना दर्शकों के लिए एक अलग अनुभव होगा। राजावत ने न केवल मुख्य भूमिका निभाई है, बल्कि लेखन और निर्देशन की कमान संभालकर यह साबित किया है कि एक पुलिस वाला समाज को सिर्फ डंडे से नहीं, बल्कि सिनेमा के जरिए जागरूक करके भी सुधार सकता है।

“यह कहानी किसी एक केस की फोटोकॉपी नहीं है, बल्कि मेरे करियर के उन सैकड़ों अनुभवों का निचोड़ है जहाँ मैंने इंसानियत को अंधविश्वास के आगे घुटने टेकते देखा है।” — हिमांशु सिंह राजावत

दिग्गज कलाकारों की जुगलबंदी

फिल्म में बॉलीवुड के मंझे हुए कलाकार अपनी कला का जौहर दिखा रहे हैं:
सयाजी शिंदे: अपनी कड़क आवाज और प्रभावशाली उपस्थिति के साथ।
मिलिंद गुणाजी: जो रहस्य और गहराई को पर्दे पर उतारने में माहिर हैं।
एहसान खान और रश्मि मिश्रा: जिन्होंने कहानी के इमोशनल पक्ष को मजबूती दी है।

मिट्टी की महक और कड़वा सच

निर्माता प्रकाश मेनारिया और सह-निर्माता अर्जुन पालीवाल ने फिल्म को राजस्थान की जड़ों से जोड़े रखा है। धरियावद और प्रतापगढ़ जैसे इलाकों की बोली और वहाँ का परिवेश फिल्म को ‘सिनेमा’ से ज्यादा ‘हकीकत’ के करीब ले जाता है। सेंसर बोर्ड से UA सर्टिफिकेट मिलने के बाद अब फैंस को बस इसकी रिलीज डेट का इंतजार है।

यह भी पढ़े

लायंस क्लब छपरा ने महर्षि बाबा लाल दास वेद विद्यालय में अध्ययनरत  छात्रों के बीच किया कंबल वितरण

चांदी के बुद्ध मूर्ति को विधायक ने किया अवलोकन  

पिकनिक एक आयोजन नहीं,बल्कि साथ होने का एहसास है

संपूर्ण सोशल मीडिया खुजलाहट से व्याकुल है,क्यों?

क्या तेजी से बढ़ने वाली इकॉनमी बना रहेगा भारत ?

कुलदीप सेंगर को रिहाई नहीं-सुप्रीम कोर्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!