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समन्वित और सार्थक प्रयासों से संभव है फाइलेरिया उन्मूलन - श्रीनारद मीडिया

समन्वित और सार्थक प्रयासों से संभव है फाइलेरिया उन्मूलन

समन्वित और सार्थक प्रयासों से संभव है फाइलेरिया उन्मूलन

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एमडीए अभियान को सहयोग और समर्थन तथा व्यक्तिगत स्तर पर स्वच्छता भी फाइलेरिया बीमारी का है सुरक्षा कवच

✍️ डॉक्टर गणेश दत्त पाठक , श्रीनारद मीडिया :

बिहार की जलवायु फाइलेरिया रोग के प्रसार के अनुकूल है। इस बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए राज्य स्तर पर विशेष तौर पर अभियान चलाया जा रहा है। नाइट ब्लड सर्वे, सर्वजन दवा सेवन अभियान जैसे सार्थक पहल किए जा रहे हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि फाइलेरिया रोग का प्रसार मच्छरों के काटने के कारण होता है। इसलिए मच्छरों से सुरक्षा के संदर्भ में सामुदायिक स्वच्छता एक अनिवार्य तथ्य है। परंतु चिकित्सा विशेषज्ञ यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि व्यक्तिगत स्तर पर स्वच्छता के उपाय भी फाइलेरिया बीमारी के लिए सुरक्षा कवच के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। फाइलेरिया बीमारी से जंग में सरकारी, गैर सरकारी, सामुदायिक और व्यक्तिगत स्तर पर समन्वित प्रयास आरोग्य रक्षण में एक बड़ी सफलता दिला सकते हैं।

सामान्य तौर में फाइलेरिया बीमारी को हाथी पांव के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग में एक या दोनों पैर हाथी के पैर जैसे मोटे हो जाते हैं। डॉक्टर आजाद आलम बताते हैं कि यह बीमारी एक परजीवी नेमाटोड वेचेरेरिया वैन क्राफ्टी द्वारा आम तौर पर होता है, जो क्यूलेक्स मच्छरों द्वारा काटने पर प्रसरित होता है। साथ ही, यह बीमारी ब्रूगिया मलायी, ब्रूगिया तिमोरी आदि जीवाणुओं द्वारा भी फैलती है, जो मच्छरों द्वारा ही फैलाया जाता है। फाइलेरिया के जीवाणु गर्म और आर्द्र क्षेत्रों की अस्वच्छता में अधिक सक्रिय होते हैं। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में भी फाइलेरिया के जीवाणु अधिक सक्रिय हो जाते हैं। सामान्य तौर पर यह बीमारी उन क्षेत्रों में ज्यादा प्रसारित होता है, जहां वर्षा ज्यादे समय तक होती है और शीतलता ज्यादा रहती है। बिहार बंगाल,पूर्वोत्तर के क्षेत्र में मुख्य तौर पर इस बीमारी का फैलाव देखा जाता है।

दयानंद आयुर्वेदिक पीजी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर (डॉक्टर) सुधांशु शेखर त्रिपाठी बताते हैं कि आयुर्वेद में श्लीपद रोग फाइलेरिया के समान ही होता है। यह बीमारी कफ प्रधान, गरिष्ठ भोजन के सेवन, स्थिर पानी के क्षेत्र में रहने आदि के कारण कफ दोष बढ़ जाते हैं। ये दोष सबसे पहले वक्षण क्षेत्र में जमा होते हैं फिर धीरे धीरे पैरों की ओर बढ़ते हैं। पैरों में दोष जमा होने के कारण हाथी के पैर जैसी पथरीली सूजन हो जाती है। आयुर्वेद अपने बहुरूपी औषधि दृष्टिकोण से इस बीमारी का इलाज करता है। अलग अलग चिकित्सा पद्धतियों की अपनी अलग अलग व्याख्या होती है। लेकिन उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के निवासियों के लिए फाइलेरिया बीमारी एक बड़ी चुनौती है।

डॉक्टर शाहनवाज आलम बताते हैं कि फाइलेरिया बीमारी मुख्य रूप से मच्छरों द्वारा फैलाई जाती है, जो परजीवी को अपने साथ लेकर चलते हैं। जब ये मच्छर किसी व्यक्ति को काटते हैं तो परजीवी उस व्यक्ति में प्रवेश कर जाते हैं। व्यक्ति संक्रमित हो जाता है और उसे फाइलेरिया होने की आशंका बढ़ जाया करती है। फाइलेरिया के परजीवी लसिका तंत्र में बस जाते हैं और वहां से पूरे शरीर में फैल जाते हैं। यह बीमारी कई वर्षों तक शरीर में रह सकती है और इसके लक्षण धीरे धीरे दिखाई देते हैं। फाइलेरिया बीमारी के लक्षणों में लसिका तंत्र में सूजन, त्वचा में सूजन, प्रभावित अंग में दर्द और सूजन, एलिफेंटीएसिस और मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। फाइलेरिया के जल्दी निदान और उपचार की आवश्यकता होती है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए मच्छरों को नियंत्रित करना, उनसे बचना, स्वच्छता को बढ़ावा देना और व्यक्तिगत स्तर पर स्वच्छता का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

बिहार में इस बीमारी का प्रसार अनुकूल परिस्थितियों के कारण देखा जाता है। बिहार के 24 जिलों के 335 प्रखंडों में नाइट ब्लड सर्वे किया गया है ताकि फाइलेरिया के प्रसार दर का वास्तविक आधार पर पता लगाया जा सके। नाइट ब्लड सर्वे में रात में लोगों के रक्त के नमूने लिए जाते हैं ताकि उनमें फाइलेरिया के परजीवी की उपस्थिति का पता लगाया जा सके। अभी बिहार में सर्व जन दवा सेवन अभियान यानी एमडीए का संचालन किया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा समर्थित एमडीए अभियान का मुख्य उद्देश्य फाइलेरिया बीमारी को नियंत्रित करने में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना है। एमडीए अभियान के तहत आम लोगों को उन दवाओं का वितरण किया जाता है, जो फाइलेरिया के परजीवियों को मारती है। सीवान के सिविल सर्जन डॉक्टर श्रीनिवास प्रसाद और जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉक्टर ओमप्रकाश लाल ने बताया है कि एमडीए अभियान के तहत फाइलेरिया रोधी दवा के रूप में अल्बंदाजोल और डीईसी का सेवन आम लोगों को कराया जाना है। जिले में तकरीबन 35 लाख लोगों को लक्षित रखा गया है। आगामी 10 फरवरी से शुरू होने वाले 17 दिवसीय एमडीए कार्यक्रम के दौरान स्वास्थ्यकर्मी घर घर जाकर लोगों को दवा खिलाएंगे। दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और गंभीर बीमारी से ग्रसित लोगों को दवा का सेवन नहीं कराया जाना है। लोगों को यह बात समझना चाहिए कि यह दवा फाइलेरिया रोग से रक्षण के लिए दिया जाना है अतः एमडीए अभियान के महत्व को समझते हुए घर पर पहुंचने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को सहयोग करना चाहिए। दवा खाने के बाद बुखार, सर दर्द उल्टी, शरीर में दर्द जैसी कुछ घटनाएं हो सकती है, उससे घबराना नहीं चाहिए, न ही किसी अफवाह के चक्कर में पड़ना चाहिए। सामुदायिक सहयोग के आधार पर ही फाइलेरिया से जंग में एम डीए अभियान कारगर हो सकता है।

चिकित्सा विशेषज्ञ इस बात को जरूर स्वीकार कर रहे हैं कि आस पास के क्षेत्र में पानी न जमा हो। मच्छरों के प्रसार पर नियंत्रण फाइलेरिया बीमारी के रोकथाम के लिए बेहद आवश्यक है। इसलिए नगरीय निकाय और पंचायतों द्वारा समय समय पर स्वच्छता अभियान का संचालन अनिवार्य तथ्य है। हालांकि हमारे शहरों के संदर्भ में गंदगी और मच्छरों की समस्या एक बड़ी चुनौती है। समय समय पर फॉगिंग भी आवश्यक है, जिसके संदर्भ में कभी कभी उदासीनता का आलम भी देखा जाता है। साथ ही आम जनता को भी स्वच्छता अभियान में सहयोगी बनना आवश्यक होता है।

चिकित्सा विशेषज्ञ इस बात पर भी बल देते दिख रहे हैं कि व्यक्तिगत स्तर पर स्वच्छता के प्रसार भी फाइलेरिया बीमारी के रोकथाम में बहुत कारगर साबित हो सकते हैं। नियमित स्तर पर स्नान करने त्वचा को साफ करने, कपड़े को धोने से, नियमित स्तर पर बिस्तर तकिया आदि की सफाई से भी परजीवी और बैक्टीरिया को हटाया जा सकता है। दैनिक स्तर पर नियमित अंतराल पर हाथ धोते रहने से भी फाइलेरिया के संदर्भ में राहत प्राप्त की जा सकती है। व्यक्तिगत स्तर पर स्वच्छता के कई लाभ मिल सकते हैं । एक तरफ जहां फाइलेरिया के जोखिम को कम किया जा सकता है वहीं अन्य बीमारियों के जोखिम को भी कम किया जा सकता है। व्यक्तिगत स्वच्छता का योगदान आरोग्य रक्षण और आत्मविश्वास के प्रकटीकरण के संदर्भ में भी होता है।

निश्चित तौर पर आज फाइलेरिया बीमारी हमारे लिए आरोग्य रक्षण के संदर्भ में एक बड़ी चुनौती है। भले ही जलवायु संबंधी दशाओं का योगदान भी इस बीमारी के प्रसार का एक बड़ा कारण है लेकिन स्वच्छता के प्रसार और कुछ सावधानियों के माध्यम से इस रोग से बचाव किया जा सकता है। फाइलेरिया बीमारी से जंग में सरकारी संस्थाओं, गैर सरकारी संगठनों, सामुदायिक संगठनों और व्यक्तिगत स्तर पर समन्वय और सहयोग से एक बड़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। फिलहाल तो यदि आप सीवान या बिहार के किसी हिस्से में रहते हैं और एमडीए अभियान के तहत यदि कोई स्वास्थ्यकर्मी आपके दहलीज पर आता है तो उसको अपना समर्थन और सहयोग प्रदान करें। आमजन का यह सहयोग और समर्थन भी फाइलेरिया बीमारी से जंग में एक बड़ा सहारा बन सकता है।

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