एमएसएमई में आएंगे पांच करोड़ रोजगार, आत्मनिर्भर बनेगा भारत.

एमएसएमई में आएंगे पांच करोड़ रोजगार, आत्मनिर्भर बनेगा भारत.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

1921 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन छेड़ा। विदेशी सामानों की होली जली और स्वदेशी अपनाने पर जोर दिया। फिर पीएम नरेंद्र मोदी ने 2020 में आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया। मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया जैसी मुहिमें भी छेड़ी गईं। यही नारे और इनके बीच का सफर भारत में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) के विकास की कहानी कहती है। आजादी के वक्त सुई भी आयात होती है और हम आज जहाज-अंतरिक्ष यान बना रहे हैं। यानी कामयाबी और इसकी कहानी, दोनों बड़ी हैं। तो आइये इस कामयाबी के सफर को देखते हैं एमएसएमई सेक्टर के दिग्गजों के साथ और साथ ही जानेंगे कि अगले पांच साल में इस सेक्टर में क्या खास होने वाला है।

लघु उद्योग भारती के ऑल इंडिया प्रेसिडेंट बलदेव भाई प्रजापति कहते हैं कि आजादी बाद के 75 साल को देखें तो आखिरी पांच साल में ही एमएसएमई में ज्यादा प्रगति हुई है। भारत में 2000 प्रोडक्ट एमएसएमई के लिए रिजर्व थे लेकिन सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर के आह्वान से एमएसएमई में प्रगति हुई है। कंपनियों और उद्यमियों को प्रोत्साहित किया गया।

वहीं देश से बाहर आने वाले उत्पाद देश में बनने लगे हैं। वित्त मंत्री ने भी कोरोना काल में एमएसएमई को 3 लाख करोड़ का पैकेज दिया। जो टेस्ट किट, पीपीई किट और मास्क बाहर से आते थे। वह अब देश में ही बनने लगे हैं।

वहीं एमएसएमई उद्योगों के संगठन आईआईए (इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन) के प्रेसिडेंट अशोक अग्रवाल बताते हैं कि आज से 75 साल पहले हमारा देश सुई के लिए विदेश की ओर देखता है। लेकिन हम अंतरिक्ष में यान भेज रहे हैं। हमने बहुत प्रगति की है। आज से पूर्व हमारे पास ढांचागत सुविधाएं थीं। न बिजली थी और न सड़कें थीं। सरकारी बंदिशें भी बहुत थीं। लेकिन बाद में सरकार ने जब बिजली, सड़कों की सुविधाएं दीं तो इस सेक्टर ने प्रगति की है। एमएसएमई में 6.30 करोड़ लोग रजिस्टर्ड हैं। जीडीपी का 30 फीसद इसी सेक्टर से आता है।

वहीं निर्यात में हिस्सेदारी 40 फीसद की है। यानी हमारे एमएसएमई सेक्टर के हाथ में ही देश के विकास का इंजन है। जैसे-जैसे सरकार एमएसएमई पर ध्यान देगी, वैसे-वैसे यह सेक्टर आगे बढ़ेगा। अब सरकार को चाहिए की उद्यमियों को एनओसी लेने में जो दिक्कत आती है, उसे दूर करें। वर्तमान में फायर हो या पॉल्यूशन हो, इसका एनओसी लेना मुश्किल होता है। यह थर्ड पार्टी के द्वारा मिलना चाहिए। इससे अधिकारियों की मनमानी खत्म होगी। वह कहते हैं कि सरकारी अधिकारियों को समझना होगा कि उन्हें उद्योग शुरू करना है न कि बंद। आने वाले पांच साल एमएसएमई के लिए शानदार होने वाले हैं क्योंकि हमारे पास सुविधाएं और संसाधन हैं। हमारा देश तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।

आने वाले पांच साल में क्या बदलाव होगा

1. पांच करोड़ लोगों को मिलेगा रोजगार

हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ऐलान किया था कि सरकार ने अगले पांच साल में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (MSME) क्षेत्र में 5 करोड़ लोगों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में एमएसएमई के योगदान को 30 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी और निर्यात में 49 फीसदी से बढ़ाकर 60 फीसदी तक लाना है। अभी एमएसएमई क्षेत्र करीब 11 करोड़ लोगों को रोजगार देता है।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गनाइजेशन डायरेक्टर जनरल एंड सीईओ डॉक्टर अजय सहाय कहते हैं कि एमएसएमई हमारी अर्थव्यवस्था की रीड़ की हड्डी है। समय समय पर सरकार की ओर से लाई गई बेहतर नीतियों से एक बेहतर माहौल बना। इससे एमएसएमई को विकसित होने में मदद मिली है। एमएसएमई का एक बड़ा फायदा ये है कि आप इसमें थोड़ा पैसे लगा कर काफी बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा कर सकते हैं। भारत जैसे देश में रोजगार अहम मुद्दा है। ऐसे में एमएसएमई के विकास से सर्विस और मैन्युफैक्चरिंग को बल मिलता है।

2. एमएसएमई करेगी आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार

विशेषज्ञ कहते हैं कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के सपने को पूरा करने में एमएसएमई क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इसको ध्यान में रखते हुए सरकार की ओर से एमएसएमई उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कई तरह की स्कीमों का ऐलान किया जा रहा है।

3. अर्थव्यवस्था में 300 बिलियन डॉलर का महायोगदान

एक रिपोर्ट के मुताबिक एमएसएमई क्षेत्र में इतनी क्षमता है कि वो 2025 तक देश की अर्थव्यवस्था में 300 बिलियन डॉलर का योगदान कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि सरकार इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा दे। साथ ही एक ऐसा माहौल बनाए जिससे इन उद्योगों को फलने फूलने में मदद मिले।

अजय सहाय कहते हैं कि फिलहाल देश की अर्थव्यवस्था में एमएसएमई का योगदान एक तिहाई है। हमें ये कोशिश करनी होगी की अगले दस सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था में इसका योगदान कम से कम 50 फीसदी हो।

4. चीन को चुनौती देकर करेंगे चित

चीन फिलहाल पूरी दुनिया के लिए एक मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर काम कर रहा है। लेकिन कोविड के बाद बने हालात के बाद बहुत से देश चीन से अपनी इंडस्ट्री को निकालने के बारे में सोच रही हैं। ऐसे में भारत को इस मौके का फायदा मिल सकता है। दुनिया की सप्लाई चीन में आने वाले दिनों में भारत की एमएसएमई इंडस्ट्री की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। एमएसएमई इंडस्ट्री के डिजिटलाइजेशन से भी आने वाले दिनों में मेक इन इंडिया अभियान को मजबूती मिलेगी।

5. आएंगी आधुनिक मशीनें

आने वाले दिनों में एमएसएमई उद्योगों में आधुनिक तकनीक की मशीनें और प्लांट लगाने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया जाएगा। साथ ही एमएसएमई उद्योगों को इस तरह से तैयार किया जाएगा कि वो एक दूसरे से जुड़ कर प्रोडक्शन करें। उत्पादों की लागत कम करने के साथ ही उद्योगों को ज्यादा से ज्यादा प्रशिक्षित श्रमिक उपलब्ध कराने पर जोर दिया जाएगा। ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन उद्योगों के लिए प्रतिस्पर्धा करना आसान हो।

अजय सहाय कहते हैं कि एमएसएमई को आसान क्रेडिट उपलब्ध कराने के लिए काफी कदम उठाए हैं। इन उद्योगों में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हो सके इसके लिए सरकार की ओर से कई कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार की क्रेडिट गैरेंटी स्कीम से इन उद्योगों को काफी फायदा मिलता है। सरकार ने हाल ही में एमएसएमई की परिभाषा बदली है जिसमें प्लांट और मशीनरी के साथ टर्नओवर को भी शामिल किया गया है। ऐसे में एमएसएमई को आधुनिक तकनीक लाने और एक्सपेंशन में मदद मिलेगी।

पिछले 75 साल के बड़े पड़ाव

1. 1956 में बना खादी और ग्रामोद्योग आयोग, गांव में आया रोजगार

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) की स्थापना खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम, 1956 (1956 का 61) के तहत की गई है। जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए खादी और ग्रामोद्योगों को बढ़ावा देने के काम में लगा है। आयोग के एक पूर्णकालिक अध्यक्ष होते हैं और 10 अंशकालिक सदस्य होते हैं। केवीआईसी को प्रति व्यक्ति कम निवेश में सतत ग्रामीण गैर-कृषि रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए विकेन्द्रीकृत क्षेत्र के प्रमुख संगठनों में से एक के रूप में पहचाना गया है। इसके अंतर्गत देश भर में लघु उद्योग चल रहे हैं।

2. 1953 में बना कयर बोर्ड

कयर बोर्ड को कयर बोर्ड उद्योग अधिनियम, 1953 (1953 की संख्या 45) के तहत कयर उद्योग के विकास के लिए बनाया गया। कयर बोर्ड का एक पूर्णकालिक अध्यक्ष और 39 अंशकालिक सदस्य शामिल होते हैं। कयर उद्योगों के विकास के लिए बोर्ड की गतिविधियों में अन्य बातों के साथ-साथ वैज्ञानिक, तकनीकी और आर्थिक अनुसंधान और विकास गतिविधियां चलाना; निर्यात और कयर तथा कयर उत्पादों की आंतरिक खपत से जुड़े आंकड़े जुटाने के साथ ही नए उत्पादों और डिजाइनों का विकास करना भी शामिल है। बोर्ड की ओर से निर्यात और आंतरिक बिक्री को बढ़ावा देने के लिए प्रचार करने का काम भी किया जाता है। बोर्ड ने कयर उद्योग, जो कि देश में कृषि आधारित प्रमुख ग्रामीण उद्योगों में से एक है।

3. 1955 में राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड

एनएसआईसी की स्थापना 1955 में हुई थी। इस निगम का मुख्य काम आम तौर पर वाणिज्यिक आधार पर, देश में सूक्ष्म और लघु उद्योग के विकास को बढ़ावा देना, सहायता करना और पोषित करना होता है। एनएसआईसी कच्चे माल की खरीद, क्रेडिट रेटिंग, नई प्रौद्योगिकियों लाने, आधुनिक प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने आदि के क्षेत्रों में अपनी अलग-अलग जरूरतों को पूरा करने वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए विभिन्न प्रकार की सहायता सेवाएं प्रदान करता है।

4. 1990 में बना भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक

एमएसएमई उद्योगों के वित्त पोषण के लिए भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) की स्थापना 2 अप्रैल 1990 को संसद के एक अधिनियम के तहत की गई। सिडबी को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के वित्तपोषण एवं विकास के लिए एक वित्तीय संस्था के रूप में की गई।

5. 2007 में बना मंत्रालय

9 मई, 2007 को, भारत सरकार (कार्य आबंटन) के नियम, 1961 में संशोधन के बाद, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई मंत्रालय) का निर्माण करने के लिए तत्कालीन लघु उद्योग मंत्रालय तथा कृषि और ग्रामीण उद्योग मंत्रालय का विलय कर दिया गया था। यह मंत्रालय अब नीतियां तैयार करता है और कार्यक्रमों, परियोजनाओं और योजनाओं को बढ़ावा/सुविधा प्रदान करता है तथा एमएसएमई को सहायता प्रदान करने और उन्हें उचित अनुपात में बढ़ावा देने के लिए और उनके कार्यान्वयन का अनुश्रवण करता है।

देश का आधार है एमएसएमई

विशेषज्ञों के मुताबिक सरकारों की ओर से किए जा रहे प्रयास एवं युवाओं की रोजगार की जरूरत के चलते देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र में पिछले 5 दशकों में काफी तेजी देखी गई है। एमएसएमई न केवल बड़े उद्योगों की तुलना में कम पूंजीगत लागत पर बड़ी संख्या में रोजगार शुरू करने के मौके देता है बल्कि ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगिकीकरण में भी मदद करते हैं। क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने और राष्ट्रीय आय और संपत्ति के अधिक समान वितरण में भी इसकी अहम भूमिका है।

 

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