वंदे मातरम् किन कारणों से नहीं बन सका राष्ट्रगान?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हमारे देश भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा प्राप्त “वंदे मातरम्” को 150 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस मौके पर देश की सदन में बहस हुई जिसमें पीएम मोदी सहित विपक्ष के नेता भी अपनी राय रखी है। आपको बता दें कि Vande Mataram की रचना बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1876 को की थी। इस गीत का अंग्रेजों के खिलाफ आजादी दिलाने में भी अहम योगदान माना जाता है क्योंकि आजादी के लिए लड़ाई के दौरान इस राष्ट्रीय गीत का उपयोग एक हथियार की तरह हुआ था।
आजादी के बाद क्यों नहीं बन पाया राष्ट्रगान
वंदे मातरम् के 35 साल बाद 1911 में रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा एक और गीत जन गण मन की रचना की गई लेकिन, फिर भी वंदे वंदे मातरम् राष्ट्रगान बनने से चूक गया और जन गण मन राष्ट्रगान घोषित किया गया। हालांकि, वंदे मातरम् को देश के राष्ट्रीय गीत का दर्जा प्राप्त हुआ। इसके पीछे कई कारण थे जिसके चलते वंदे मातरम् राष्ट्रगान नहीं बन सका जो निम्नलिखित हैं-
- वंदे मातरम् में हिंदू देवी देवताओं जैसे दुर्गा, सरस्वती आदि हिन्दू देवी देवताओं का उल्लेख है जिसके चलते उस समय के मुस्लिम नेताओं ने धार्मिक भावना से जोड़कर इसका विरोध किया।
- आजादी से पहले की मुस्लिम लीग ने इसका सीधा-सीधा विरोध किया।
- भारतीय संविधान सभा के पूर्व सदस्य केटी शाह ने कहा कि अगर इस गीत के कुछ हिस्सों को लेकर आपत्ति है तो उन पदों को लिया जा सकता है, जो राष्ट्रीय भावना वाले हैं और धार्मिक भावना से नहीं जुड़े हैं।
- पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने बयान में कहा कि हमें ऐसा राष्ट्रगान का चुनाव करना चाहिए जो भारत के सभी वर्गों समुदायों को मान्य हो।
24 अगस्त 1947 को शुरू हुई सदन में बहस
राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत को लेकर आजादी के बाद भी लड़ाई जारी रही। इसको लेकर सदन में पहली बार 24 अगस्त 1947 बहस हुई। इसके बाद 23-24 जनवरी 1950 को संविधान सभा में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत पर फैसला हुआ। संविधान सभा अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ‘जन गण मन’ को भारत के राष्ट्रगान के और वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने को कहा।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, “मैंने प्रधानमंत्री मोदी का भाषण सुना, उन्होंने नेहरू जी पर आरोप लगाते हुए कहा- 1937 में नेहरू जी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने मूल ‘वंदे मातरम्’ गीत से महत्वपूर्ण पद हटा दिए थे। आज भाजपा के लोग ऐसी बातें कर रहे हैं। लेकिन जब भाजपा के पुरखे श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मुस्लिम लीग के साथ बंगाल में सरकार चला रहे थे, तब आपकी देशभक्ति कहां थी? भाजपा को अपना इतिहास पढ़ना चाहिए।”
‘आपके लोग कर रहे थे अंग्रेजों की नौकरी’
उन्होंने यह भी कहा, “महात्मा गांधी जी ने जब 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ छेड़ा, तब लाखों कांग्रेस के कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी- भारत माता की जय, महात्मा गांधी जी की जय का नारा लगाते हुए जेल जा रहे थे। जबकि उसी समय आपके (आरएसएस-भाजपा) लोग अंग्रेजों की नौकरी कर रहे थे। आज आप हमें देशभक्ति सिखा रहे हैं।”
द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार, “वन्दे मातरम् की पृष्ठभूमि में सदियों तक इस्लामिक आक्रमण झेलकर इस देश की संस्कृति को क्षीण करने और अंग्रेजों द्वारा एक नई सभ्यता और संस्कृति थोपने का प्रयास का प्रतिकार था, जिसके बाद बंकिम बाबू ने इसकी रचना की।”
अमित शाह ने आगे कहा, “मातृभूमि का वंदन प्रभु श्रीराम ने भी किया, आचार्य शंकर ने भी किया और चाणक्य ने भी किया। मातृभूमि से बड़ा कुछ हो नहीं सकता। इसी चिरंतन भाव को बंकिम बाबू ने पुनर्जीवित किया।”
पूर्व पीएम पर साधा निशाना
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर निशाना साधते हुए गृह मंत्री ने कहा, “वन्दे मातरम् की स्वर्ण जयंती जब हुई, तब जवाहरलाल नेहरू जी ने इसके दो टुकड़े कर इसे दो अंतरों तक सीमित कर दिया। वहीं से तुष्टीकरण की शुरुआत हुई। अगर वन्दे मातरम् के दो टुकड़े कर तुष्टीकरण की शुरुआत नहीं हुई होती तो देश का विभाजन भी नहीं होता।”
अमित शाह ने आगे कहा-
वन्दे मातरम् के जब 100 साल हुए, तब वन्दे मातरम् बोलने वालों को इंदिरा जी ने जेल में डाल दिया। आपातकाल लगाया गया। विपक्ष के लोगों को, सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में भर दिया गया। अखबारों पर ताले लगा दिए गए। पूरे देश को बंदी बनाकर रख दिया गया।
संसद में कांग्रेस को घेरा
विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए गृह मंत्री ने कहा, “कांग्रेस के नेतृत्व में इस सदन में वन्दे मातरम् के गान को बंद कर दिया गया था। 1992 में भाजपा सांसद श्री राम नाईक ने वन्दे मातरम् को फिर से गाने की शुरुआत करने का विषय उठाया। उस समय नेता प्रतिपक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी जी ने लोकसभा के स्पीकर से कहा कि इसका गान सदन में होना चाहिए।”


