मशरक के बड़वाघाट का गोड़धोवान मेला आधुनिकता की चकाचौंध के बाद भी पहचान कायम

मशरक के बड़वाघाट का गोड़धोवान मेला आधुनिकता की चकाचौंध के बाद भी पहचान कायम

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श्रीनारद मीडिया, विक्‍की बाबा, मशरक, सारण (बिहार):

आस्था व परंपरा की परिपाटी से जुड़े सारण जिले के मशरक प्रखंड के अरना पंचायत में घोघाड़ी नदी के तट पर विगत दो सौ वर्ष से भी ज्यादा समय से कार्तिक पूर्णिमा के दूसरे दिन लगनें वाला बड़वाघाट मेला आधुनिकता की चकाचौंध के बाद भी अपनी पुरातन पहचान कायम रखें हुए हैं।

जनश्रुतियों के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम ने यहां प्रवास किया था ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दूसरे दिन यहां पैर धोने से सभी पाप धुल जाते हैं इस परंपरा को आज भी लोग कायम किए हुए हैं। मंगलवार को मेले में दुकानें लगीं, वहीं घोघाड़ी नदी में श्रद्धालुओं ने पैर धोया। वहीं थानाध्यक्ष मशरक पूरे दल बल के साथ मेले में गश्त लगातें दिखें।

मेले के इतिहास के बारे में शिक्षक नेता संतोष सिंह ने बताया कि ऐसी उनके पूर्वज बताते हैं कि भगवान श्री राम जनकपुर जाने के दौरान इसी घाट पर विश्राम कर हाथ पैर धोकर आगे की यात्रा की थी। उसी स्थान पर प्राचीन काल में राम जानकी मंदिर का निर्माण किया गया जिसकी गुंबज में सोने का त्रिशूल लगा हुआ था ग्रामीण कहते हैं कि 80 के दशक में डकैतों ने सोने के त्रिशूल को बाढ़ के समय काट लिया।

पूर्वज बताते हैं कि इस स्थल पर पहले बड़ी नदी की धारा थी जहां लोग नाव से घाट पार करते थें। जानकार बताते हैं कि जब भगवान राम इस नदी की धारा को पार कर रहें थें तों केवट ने कहां आप मेरे नाव में आप चढ़ेंगे तो मेरी नाव नष्ट हो जाएंगी तों भगवान राम ने चरण धोने के पश्चात ही नाविक ने उन्हें घाट पार कराया तभी से लोग कहने लगे कि सब जगह के नहान आ बड़वाघाट में घोघाड़ी नदी के गोड़धोवान की एक ही बात है।

वहीं उस समय इलाक़े में सूथनी की उपज ज्यादा होती थी तों इसे सुथनिया मेला भी कहां जाता है। इस मेले में सभी तरह के सामान मिलता है। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि अरना, बहरौली और दुरगौली पंचायत के तीनमुहानी पर लगने वाले इस मेले के अस्तित्व को बचानें के लिए किसी भी जनप्रतिनिधि के द्वारा किसी भी स्तर से कोई प्रयास नहीं हुआ है। अभी यह मेला अपने अस्तित्व के संकट में जूझ रहा है।

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