परसा मठ जाने का अवसर मिला- डॉ नंदकिशोर पाण्डेय

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वषों बाद सारण के परसा मठ जाने का अवसर मिला। एकबार हाई स्कूल के विद्यार्थी के रूप में 1981में गया था।मेरे प्रिय और प्रेरक हिंदी अध्यापक अब स्वर्गीय घनश्याम शुक्ल जी महापंडित राहुल सांकृत्यायन और परसा मठ की चर्चा किया करते थे।मेरी ननिहाल परसा से मात्र 04 किलोमीटर है।बचपन में प्रायः मैं सायकिल से 24 किलोमीटर लगभग 03 घंटे में पहुंचता था। इसमें बाबा महेन्द्रानाथ का दर्शन और रसूलपुर चट्टी पर जलेबी खाना शामिल था। सायकिल से मामा के घर जाने का क्रम पीएच .डी.तक चला।मां के साथ बचपन में जब भी गया टमटम से गया।

केदार पाण्डेय घर छोड़ने के बाद बनारस होते हुए परसा मठ आए। चूंकि यह मठ रामानंद सम्प्रदाय का है तो स्वाभाविक रूप से रामानंद सम्प्रदाय में दीक्षित होकर रामोदर साधु हो गए। फिर वे आर्यसमाज में गए। वहां वेदाध्ययन किए। इसके बाद समाजवादी, कांग्रेसी तथा मार्क्सवादी हो गए। अंततोगत्वा बौद्ध हो गए। उनके नाम में रामोदार साधु का ‘रा’ और ‘म’ राहुल सांकृत्यायन होने पर भी बचा रहा। यह मठ महापंडित की प्रारंभिक तपस्थली है।मठ में उनकी स्मृति से जुड़ा हुआ कुछ भी नहीं है। साधुओं को तथा आमजन को यह मालूम है कि यहां कभी राहुल जी रहे थे।रामानंदी साधुओं में उनके प्रति कोई विशेष भाव नहीं है क्योंकि युवावस्था में ही उन्होंने इस सम्प्रदाय को छोड़ दिया था।


मैंने राहुल जी पर कई लेख लिखा। अरुणाचल की बौद्ध छात्रा सोनम वांग्मू को राहुल जी पर पीएच.डी.भी करवाया।अब वे अरुणाचल के ही एक महाविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।सर्वत्र परसा छूट गया।आज प्रयाग, वाराणसी होते हुए अस्वस्थ मां को देखने के लिए गांव आया।यहां पता चला कि मामाजी भी अस्वस्थ हैं। प्रयागराज में डाॅ.अमरेन्द्र त्रिपाठी ने अपनी नई CRETA CAR मुझे वाराणसी और गांव जाने के लिए दिया।उसी से परसा मठ भी गया और मामा के घर भी।

परसा मठ के शिलालेख के अनुसार यह1339 का है। कुछ चित्र मित्रों और राहुल जी के लेखन में रुचि रखने वाले पाठकों और विद्यार्थियों के लिए ।वह तालाब भी जिसमें वे स्नान करते थे।उनका कमरा तो तब खपरैल का था।अब वह पक्का हो गया है।

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