हिंदी किसी भाषा से कमजोर नहीं है- प्रो. नागेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी किसी भाषा से कमजोर नहीं है- प्रो. नागेंद्र कुमार शर्मा

प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज में हिंदी पखवाड़ा मनाया गया

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गुरु घनश्याम शुक्ल का सपना हमें सोने नहीं देता है- डॉ. बी.एन. यादव

भाषा से भाव जागता है, चरित्र बदलता है- भरत दुबे 

✍🏻 राजेश पाण्डेय

श्रीनारद  मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान जिले में रघुनाथपुर प्रखंड के पंजवार गांव में स्थित प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज के तरुण सभागार में हिंदी पखवाड़ा का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. बृजनंदन यादव ने अपने उद्बोधन में कहा कि गुरु स्वर्गीय घनश्याम शुक्ल जो स्वप्न दिखा कर गए हैं वह हमें सोने नहीं देता है। आप छात्र हमारे महाविद्यालय में डिग्री के लिए नहीं बल्कि पढ़ने के लिए आए। यहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी। हिंदी पखवाड़ा के समारोह में हम सभी उपस्थित हुए हैं, यह हम सभी के लिए सौभाग्य का विषय है।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय पटना से पधारे हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नागेंद्र कुमार शर्मा ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि व्यक्ति का लक्ष्य ऊंचा होना चाहिए। साधन सुविधा को अनदेखा कर अपने लक्ष्य के लिए अहर्निश कार्य करें। प्रकृति से मेल करने से ही मनुष्य का कल्याण होता है। भारत गांव का देश है, इस पर हमें गर्व होना चाहिए।

हिंदी किसी भी भाषा से कमजोर नहीं है। हिंदी पखवाड़ा में अपनी मातृभाषा पर चर्चा करना कई आयामों पर विमर्श करना हमारे संस्कृति की देन है। इस देश की एकता हिंदी के माध्यम से ही हो सकती है। संपर्क भाषा, सेवा की भाषा, वैश्विक मंच पर एकजुटता की भाषा हिंदी ही है। विश्व के लिए भारत एक बाजार है, जिसकी भाषा हिंदी है, अतः उनके‌ लिए हिंदी सीखना आवश्यक है।

भूमंडलीकरण एवं सोशल मीडिया ने हिंदी को विश्व के कोने-कोने में पहुंचा है। सिनेमा एवं इसके गीत ने हिंदी को विस्तार दिया है। हिंदी के लिए हमारे मस्तिष्क में स्वाभिमान होना चाहिए। शैक्षणिक तीर्थ स्थल के रूप में यह संस्था अपना नाम विख्यात करेगा। अपने सोच से बड़े होने के कारण गुरुजी कर्मयोगी कहलाए। आज वह अदृश्य रूप से यहां के कण-कण में विद्यमान है।

इस क्षेत्र की मिट्टी में उर्वरा शक्ति है जो बच्चों को महान बनाएगा। यह संस्था बीएचयू एवं शांति निकेतन की तरह अपना नाम रौशन करेगा। भाषिक रूप में जब तक हम स्वतंत्र नहीं होंगे, तब तक इस आजादी का कोई मतलब नहीं है। हिंदी को लेकर कुंठित मानसिकता को त्याग देने की आवश्यकता है।


हिंदी मेरी जान है पहचान है मातृभाषा है राजभाषा है संपर्क भाषा है परन्तु सबसे बढ़कर अनौपचारिक रूप से यह राष्ट्रभाषा भी है। हिंदी हमारी पहचान है जो हमें मनुष्यता प्रदान करती है। भाषा से हमारी शुद्धता बढ़ती है। हिंदी वह नहीं है जो हम जानते हैं बल्कि हिंदी को और जानने समझने पढ़ने सुनने की आवश्यकता है।

 

कॉलेज के सचिव भरत दुबे ने कहा कि विषम मौसम में भी आप सभी सभागार में उपस्थित हुए हैं यह हर्ष का विषय है। हिंदी के प्रति जनता की जागरूकता घट रही है। भाषा से भाव बदलता है चरित्र बनता है। चीन जैसा देश भाषा के दम पर विश्व का द्वितीय अर्थव्यवस्था बन गया है। इसलिए हमें अपने भाषा को समृद्ध करना चाहिए। हिंदी केवल इतिहास की याद नहीं दिलाता, बल्कि यह चेतावनी भी देता है कि यदि हमने अपनी भाषा की ताक़त को नहीं पहचाना तो सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता अधूरी रह जाएगी। हमें यह स्वीकार करना होगा कि भाषा ही राष्ट्र की आत्मा है। आत्मा से दूरी, राष्ट्र से दूरी के समान है। हिंदी का सम्मान ही भारत की एकता, संस्कृति और स्वाभिमान का सम्मान है।

इतिहास विभाग के वरीय व्याख्याता विक्रांत सिंह ने कहा कि हिंदी हमारे उद्गारों की बोली है, इसमें मौलिकता है, यह मौलिक विचार की भाषा है। कुछ कारणों से हमारी हिंदी प्रभावित हो रही है जिसे दूर किया जा सकता है। हिन्दी दिवस केवल एक स्मरण दिवस नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना और आत्मगौरव का उत्सव है। भाषा और संस्कृति का रिश्ता शरीर और आत्मा की तरह है—भाषा सुदृढ़ रहेगी तो संस्कृति भी समृद्ध बनी रहेगी। मातृभाषा को केवल शिक्षा का साधन न मानकर जीवन का आधार समझा जाए। ऐसे समय में मातृभाषा और साहित्य ही वह ज्योति हैं, जो आत्मा को ऊष्मा और जीवन को दिशा देती हैं।

राजनीति विज्ञान के व्याख्याता राजेश पांडेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी हमारे स्वतंत्रता संघर्ष की भाषा है,इसलिए इसे राष्ट्रभाषा के रूप में जानना समझना चाहिए। यह हमारे संस्कार व संस्कृति की वाहिका है।  हिंदी सिर्फ हमारी मातृभाषा नहीं, बल्कि भविष्य की भाषा है, जो भारत का सम्मान और अवसर दोनों बढ़ाएगी। यह वह भाषा है, जो उत्तर भारत के गाँवों से लेकर दक्षिण भारत के महानगरों तक, फिल्मों से लेकर साहित्य तक, लोकगीतों से लेकर इंटरनेट तक, हर जगह सहज संवाद की डोर थामे हुए है। यह भारतीयता की वह बुनावट है, जिसमें अलग-अलग भाषाई और सांस्कृतिक रंगों को जोड़ने की क्षमता है।

वही कार्यक्रम का सफल संचालन हिंदी विभाग की व्याख्याता विभा द्विवेदी ने किया। जबकि सभी अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय के वरीय कर्मचारी रमण तिवारी ने किया।


कार्यक्रम में सर्वप्रथम दीप प्रज्वलित किया गया एवं छात्राओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। मुख्य अतिथि को अंगवस्त्र, पुस्तक-कलम भेंट करके सम्मानित किया गया। महाविद्यालय की छात्राओं ने अपने भाषण से हिंदी के महत्व को प्रस्तुत किया।

उत्कृष्ट उद्बोधन के लिए सभी को सम्मानित किया गया। वही कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन निकट के विद्यालय में पदस्थापित संगीत की वरीय शिक्षिका निरुपमा सिंह ने किया।

इस अवसर पर पूजा सिंह,संदीप कुमार, रत्नेश्वर सिंह,अजीत कुमार सिंह, स्नेहलता, सपना कुमारी, सत्येंद्र यादव, मृत्युंजय कुमार राम, राजीव कुमार, अनिल यादव, दीपक कुमार, अनिता कुमारी, चंदन कुमार राम, निशांत मलय, टारी के किसान मजदूर उच्च विद्यालय से पधारे वरीय शिक्षक रवि कुमार, निखती उच्च विद्यालय से डॉ. किरण कुमारी की कार्यक्रम में गरिमामय उपस्थिति रही।

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