होली का त्योहार 14 मार्च या 15 मार्च को है!

होली का त्योहार 14 मार्च या 15 मार्च को है!

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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होली का त्योहार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है. रंगों के त्योहार को होली के नाम से जाना जाता है. इस बार होली का त्योहार 15 मार्च,  को मनाया जाएगा. होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है यानी 13 मार्च को होलिका दहन होगा. होलिका दहन के दिन छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है.

इस बार होलिका दहन 13 मार्च, गुरुवार को किया जाएगा. इस बार होलिका दहन की तिथि 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 35 मिनट से शुरू होगी और तिथि का समापन 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगा.  13 मार्च को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 26 मिनट से शुरू होगा और 14 मार्च को रात्रि में 12 बजकर 30 मिनट पर मुहूर्त का समापन होगा.

होलिका दहन पर भद्रा का साया 

होलिका दहन के दिन भद्रा का साया सुबह 10 बजकर 35 मिनट से शुरू हो जाएगा और इसका समापन रात 11 बजकर 26 मिनट तक होगा, इसी के बाद होलिका दहन किया जाएगा. इस दिन भद्रा का साया करीब 13 घंटे का रहेगा.

होलिका दहन के दौरान एक पेड़ की टहनी को भूमि में स्थापित किया जाता है और उसे चारों ओर से लकड़ियों, कंडों व उपलों से ढक दिया जाता है. शुभ मुहूर्त में इस संरचना में अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है. इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेहूं की नई बालियां और उबटन अर्पित किए जाते हैं. ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह अग्नि व्यक्ति को पूरे वर्ष स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होती है और नकारात्मक शक्तियों को नष्ट कर देती है. होलिका दहन के बाद राख को घर लाकर तिलक लगाने की भी परंपरा है. कई स्थानों पर इसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है.

विभिन्न क्षेत्रों में होली का त्योहार 

देश के हर हिस्से में होली का त्योहार अलग तरीके से मनाया जाता है. मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक जोर शोर से खेली जाती है. ब्रज क्षेत्र में होली को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. वहीं, बरसाना में लठमार होली खेली जाती है. मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली की धूम रहती है. महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से होली खेलने की परंपरा है. दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है. छत्तीसगढ़ में लोक-गीतों का बहुत प्रचलन है और मालवांचल में होली को भगोरिया के नाम से जाना जाता है.

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