डॉलरीकरण किसी अर्थव्यवस्था को कैसे बचा सकता है?

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श्रीनारद मीडिया सेन्ट्रल डेस्क

गंभीर मुद्रास्फीति और व्यापक निर्धनता से त्रस्त अर्जेंटीना को एक निर्णायक क्षण का सामना करना पड़ रहा है।  डॉलरीकरण को देश की आर्थिक चुनौतियों के संभावित समाधान के रूप में देखा जाता है।

  • अर्जेंटीना के हाल ही में निर्वाचित राष्ट्रपति ने अर्जेंटीना पेसो को डॉलर से बदलने का वादा किया है। हालाँकि अर्जेंटीना में डॉलर भंडार की कमी के कारण डॉलरीकरण के तत्काल कार्यान्वयन की संभावना प्रतीत नहीं होती है।
  • डॉलरीकरण किसी देश में प्राथमिक मुद्रा के रूप में स्थानीय मुद्रा की जगह या पूरक के रूप में संयुक्त राज्य डॉलर का उपयोग करना तथा अपनाना है।

डॉलरीकरण किसी अर्थव्यवस्था को कैसे बचा सकता है?

  • मुद्रास्फीति को स्थिर करना: अनियंत्रित धन आपूर्ति के कारण बढ़ती कीमतों के चक्र को तोड़कर, स्थिर मुद्रा शुरू करके डॉलरीकरण संभावित रूप से हाइपरइन्फ्लेशन पर अंकुश लगा सकता है। यह स्थिरीकरण अर्थव्यवस्था में विश्वास को बढ़ावा देता है, निवेश और उपभोक्ता व्यय को प्रोत्साहित करता है।
  • उन्नत व्यापार अवसर: एक डॉलर आधारित अर्थव्यवस्था निर्यात-उन्मुख रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करके उन्हें प्रोत्साहित करती है।
    • स्थिर मुद्रा के साथ, विदेशी निवेशक विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के साथ संलग्न होने के लिये अधिक इच्छुक हैं। निर्यात के प्रति यह अभिविन्यास आर्थिक विकास और स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है।
  • दीर्घकालिक योजना: एक स्थिर डॉलर मूल्य बेहतर दीर्घकालिक आर्थिक योजना की अनुमति देता है। स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों प्रकार के व्यवसाय, घरेलू मुद्रा के मूल्यह्रास की अस्थिरता से बाधित हुए बिना अधिक सटीक पूर्वानुमान और निवेश कर सकते हैं।
  • सट्टेबाज़ी के जोखिमों में कमी: डॉलरीकरण विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव से जुड़े सट्टेबाज़ी के जोखिमों को कम कर सकता है।
    • यह स्थिरता विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकती है, क्योंकि इससे उन्हें कम जोखिम मिलने की अनुभूति होती है, जिससे अंततः पूंजी प्रवाह और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • वित्तीय अनुशासन: मौद्रिक नीति पर नियंत्रण हटाकर डॉलरीकरण सरकारों को आर्थिक स्थिरता के लिये राजकोषीय नीतियों पर भरोसा करने के लिये मजबूर करता है।
    • यह बदलाव अधिक विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन को प्रोत्साहित कर सकता है, साथ ही संभावित रूप से सरकारी अपव्यय पर भी अंकुश लगा सकता है और आर्थिक अनुशासन को बढ़ावा दे सकता है।

पूर्णतः डॉलर आधारित अर्थव्यवस्था: इक्वाडोर

  • इक्वाडोर की अर्थव्यवस्था इस संदर्भ में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। वर्ष 2000 के दशक में डॉलरीकरण के पश्चात प्रारंभिक राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद, देश ने आर्थिक प्रगति का अनुभव किया। कम मुद्रास्फीति दर, कम ऋण अनुपात और बेहतर सामाजिक कल्याण ने इस तरह के कदम के संभावित लाभों को प्रदर्शित किया।
  • हालाँकि इक्वाडोर की सफलता केवल डॉलरीकरण के कारण नहीं थी। 2000 के दशक के दौरान बढ़ते तेल और गैस भंडार ने आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अलावा, विस्तारित सरकारी हस्तक्षेप और सामाजिक खर्च ने समृद्धि को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डॉलरीकरण से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • नीतिगत बाधाएँ: डॉलरीकरण किसी देश की मौद्रिक नीति को स्वतंत्र रूप से प्रबंधित करने की क्षमता को महत्त्वपूर्ण रूप से सीमित कर देता है।
    • मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दरों पर नियंत्रण खोने से सरकार की आर्थिक मंदी का जवाब देने की क्षमता बाधित हो सकती है।
  • आर्थिक आघात भेद्यता: स्थिर मुद्रा के साथ डॉलर वाली अर्थव्यवस्थाएँ बाह्य आर्थिक आघातों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं।
    • उनके पास वैश्विक आर्थिक माहौल में अचानक आए बदलावों को संतुलित करने के लिये विनिमय दरों को समायोजित करने के लचीलेपन का अभाव है।
    • ग्रीस की स्थिति विदेशी मुद्रा अपनाने से संबंधित मुद्दों के लिये एक चेतावनी उदाहरण है।
      • हालाँकि ग्रीस द्वारा यूरो का उपयोग शुरू करने के बाद कुछ वृद्धि हुई थी, यूरोज़ोन संकट ने अपनी नीतियों पर नियंत्रण के बिना मुद्रा का उपयोग करने की समस्याओं को दिखाया।
      • ग्रीस को यूरो का उपयोग करने के बदले में सख्त बजट कटौती और वित्तीय सहायता स्वीकार करनी पड़ी।
  • सीमित निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता: विनिमय दर पर नियंत्रण खोने से निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिये एक उपकरण के रूप में मुद्रा अवमूल्यन का उपयोग करने की देश की क्षमता सीमित हो सकती है।
  • आंतरिक असंतुलन को दूर करने में असमर्थता: डॉलरीकरण अर्थव्यवस्था के भीतर आंतरिक संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित नहीं कर सकता है।
    • विदेशी मुद्रा पर निर्भरता आंतरिक सुधारों की आवश्यकता पर भारी पड़ सकती है, जैसे उत्पादकता में सुधार या आय असमानता को संबोधित करना, जो निरंतर आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।

नोट: IMF ने वर्ष 2022 में पाया कि दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अमेरिकी डॉलर में उतनी मात्रा में भंडार नहीं रख रहे हैं जितना कि वे पहले रखते थे।

डी-डॉलरीकरण क्या है?

  • परिचय: डी-डॉलरीकरण किसी देश या क्षेत्र द्वारा अपनी वित्तीय प्रणाली या अर्थव्यवस्था में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करने के लिये जानबूझकर या अनजाने में की गई एक प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
    • इसमें लेन-देन, भंडार, व्यापार या वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य निर्धारण के मानक के रूप में डॉलर के उपयोग को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न उपाय शामिल हो सकते हैं।
  • संबद्ध कारण: सरकारें कई कारणों से डी-डॉलरीकरण का प्रयास कर सकती हैं, जैसे कि अमेरिकी मौद्रिक नीति के प्रभाव को कम करना, आर्थिक संप्रभुता का दावा करना, डॉलर के उतार-चढ़ाव के प्रभावों को कम करना, या वैश्विक वित्त में अधिक स्वतंत्रता की मांग करना।
  • डी-डॉलरीकरण के लिये रणनीतियाँ: इसमें मुद्रा भंडार में विविधता लाना, व्यापार समझौतों में वैकल्पिक मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देना, मुद्रा स्वैप समझौते स्थापित करना या वित्तीय लेनदेन में क्षेत्रीय मुद्राओं के उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये, मार्च 2023 में RBI ने 18 देशों के साथ रुपए के व्यापार निपटान के लिये तंत्र स्थापित किया।
      • इन देशों के बैंकों को भारतीय रुपए में भुगतान के निपटान के लिये विशेष वोस्ट्रो रुपए खाते (SVRAs) खोलने की अनुमति दी गई है।
  • प्रभावी घरेलू नीतियों के साथ डॉलरीकरण आर्थिक सफलता का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। हालाँकि इसकी प्रभावकारिता स्वतंत्र आर्थिक रणनीतियों की आवश्यकता के साथ स्थिरता के लाभों को संतुलित करते हुए सूक्ष्म नीति कार्यान्वयन पर निर्भर करती है।

 

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