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कैसे हर एक आनलाइन सर्च पर्यावरण को पहुंचा रहा नुकसान... - श्रीनारद मीडिया

कैसे हर एक आनलाइन सर्च पर्यावरण को पहुंचा रहा नुकसान…

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दोस्तो, आपकी भी सुबह आनलाइन दोस्तों को हाय-हैलो करने से शुरू होती होगी। सुबह दोस्तों को कुछ चैट संदेश भेजते होंगे या फिर आनलाइन कुछ सर्च किया होगा। फिर जैसे-जैसे दिन ढलने लगता है, आप कुछ आनलाइन ब्राउज करते हैं, स्टडी से जुड़े मैटीरियल सर्च करते हैं, दोस्तों के बीच फोटो साझा करते हैं, म्यूजिक डाउनलोड करते हैं या फिर वीडियो स्ट्रीमिंग पर वक्त बिताते होंगे। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी-आपकी हर आनलाइन गतिविधि की एक लागत होती है। आप जानते ही होंगे कि डिवाइस चलाने से लेकर वायरलेस नेटवर्क को एक्सेस करने तक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है और इससे कुछ ग्राम कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित होती है।

आपको बता दें कि इंटरनेट बेस्ड बड़ी कंपनियों जैसे कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट आदि के अपने डाटा सेंटर हैं, जिनमें सैकड़ों-हजारों की संख्या में सर्वर का इस्तेमाल होता है। इनके माइक्रोप्रोसेसर बड़ी मात्रा में ऊर्जा की खपत करते हैं और उनसे वातावरण में गर्मी पैदा होती है। इस गर्मी को दबाने के लिए बड़ी संख्या में एयरकंडीशनर इस्तेमाल किए जाते हैं। ये डाटा सेंटर का भीतरी हिस्सा तो ठंडा रखते हैं, लेकिन बाहर बड़ी मात्रा में गर्म गैसें उत्सर्जित करते हैं। गूगल ने 2009 में ही माना था कि उसके हर सर्च पर 0.2 ग्राम कार्बन उत्सर्जित होता है।

हर ईमेल से पर्यावरण को नुकसान: अगर इंटरनेट और गैजेट्स से जुड़ी आदतों में कुछ बदलाव लाएं, तो पर्यावरण को सुरक्षित करने में कुछ योगदान जरूर कर सकते हैं। आपको बता दें कि सिंगल इंटरनेट सर्च और ईमेल के लिए बहुत ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन पूरी दुनिया में इंटरनेट की बड़ी आबादी जब सर्च करती है तो इस गतिविधि से बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित होती है। कुछ अनुमानों के अनुसार, हमारे गैजेट्स, इंटरनेट और सपोर्टिंग सिस्टम का कार्बन फुटप्रिंट ग्लोबल ग्रीनहाउस उत्सर्जन का लगभग 3.7 फीसद है।

यह वैश्विक स्तर पर एयरलाइन इंडस्ट्री के समान है। लैंकेस्टर विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता माइक हाजस बताते हैं कि यह उत्सर्जन 2025 तक दोगुना होने का अनुमान है। माइक बर्नर्स-ली लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी में कार्बन फुटप्रिंट पर रिसर्च करते हैं। उनके अनुसार, एक स्पैम ईमेल 0.3 ग्राम CO2e (कार्बन डाइआक्साइड इक्यूवैलेंट), एक नियमित ईमेल 4 ग्राम (0.14ओजेड) सीओ2ई और एक तस्वीर या अटैचमेंट वाली ईमेल 50 ग्राम (1.7ओजेड) सीओ2ई उत्सर्जित करती है। बर्नर्स-ली के मुताबिक, एक सामान्य व्यावसायिक यूजर हर साल ईमेल भेजने से 135 किलोग्राम सीओ2ई बनाता है, जो एक फैमिली कार में 200 मील की दूरी तय करने के बराबर है।

अब थैंक-यू कहने से पहले सोचें: आपमें से बहुत सारे लोग दोस्तों के हर सवाल-जबाव पर थैंक-यू या वेलकम के साथ रिप्लाई करते होंगे। मगर आपका ये थैंक-यू ईमेल भी पर्यावरण को कम नुकसान नहीं पहुंचाता है। आपको बता दें कि हर ईमेल से कार्बन उत्सर्जन होता है, जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाता है। ब्रिटेन की एक एनर्जी ओवो कंपनी के रिसर्च का दावा है कि ब्रिटेन में हर दिन करीब 6 करोड़ 40 लाख ऐसे ईमेल किए जाते हैं, जिनकी जरूरत नहीं होती। इनमें सबसे आम होते हैं थैंक-यू ईमेल। इन ईमेल की वजह से हर साल 16,433 टन कार्बन उत्सर्जित होता है।

आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि साल भर में ब्रिटेन से 81,000 फ्लाइट मैड्रिट के लिए जितना कार्बन उत्सर्जित करती है, उतना इन गैर-जरूरी ईमेल से होता है। यह आंकड़ा केवल ब्रिटेन का है, अगर पूरी दुनिया के हिसाब से देखें, तो खुद ही सोच सकते हैं कि थैंक-यू ईमेल के जरिए हम पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं।

वीडियो स्ट्रीमिंग का असर: फ्रेंच थिंक टैंक, द शिफ्ट प्रोजेक्ट के अनुसार, आनलाइन वीडियो देखना दुनिया के इंटरनेट ट्रैफिक का करीब 60 प्रतिशत है और इससे सालाना 30 करोड़ (300 मिलियन) टन कार्बन डाइआक्साइड उत्पन्न होता है, जो वैश्विक उत्सर्जन का लगभग 1 प्रतिशत है। इसका कारण डिवाइस द्वारा ऊर्जा का इस्तेमाल, कंटेंट को डिस्ट्रीब्यूट करने के लिए सर्वर और नेटवर्क द्वारा ऊर्जा की खपत है। लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी के माइक हाजस कहते हैं कि अगर नेटफ्लिक्स देखने के लिए अपने टेलीविजन को आन करते हैं, तो लगभग आधी ऊर्जा टीवी को चलाने में और आधी ऊर्जा नेटफ्लिक्स को पावर देने में चली जाती है।

नेटफ्लिक्स का कहना है कि इसकी कुल वैश्विक ऊर्जा खपत प्रति वर्ष 451,000 मेगावाट घंटे तक पहुंच गई है, जो 37, 000 घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है। कई बार कुछ लोग यूट्यूब का उपयोग बैकग्राउंड म्यूजिक आदि के तौर पर करते हैं और कभी-कभी ऐसे ही चलाकर छोड़ देते हैं और बिना किसी लाभ के कार्बन उत्पन्न करते हैं। जब आप नहीं देख रहे हैं, तो इन उपयोगों को कम करके या फिर ब्राउजर पर अनजाने में चलने वाले वीडियो को रोककर भी कार्बन फुटप्रिंक को कम कर सकते हैं।

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