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बेटियां न हों तो यह संसार ही थम जाएगा,कैसे ? - श्रीनारद मीडिया

बेटियां न हों तो यह संसार ही थम जाएगा,कैसे ?

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राष्ट्रीय बेटी दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बेटी शब्द में पूरी कायनात समाई  है। पिता का ख्वाब तो बेटी मां की भी परछाई है। बेटियां न हों तो यह संसार ही थम जाएगा। अगर यह कहा जाए कि बेटी के बिना इस सृष्टि कि कल्पना नहीं कि जा सकती तो गलत न होगा। अगर इतिहास से लेकर वर्तमान समय कि बात कि जाए तो समूची मानवता के विकास में बेटियों का योगदान अभूतपूर्व रहा है।  कोई भी प्रोफैशन हो, हर जगह बेटियों ने अपनी अलग पहचान बनाई है और अपनी प्रतिभा का परिचय  देकर अद्भुत छाप छोड़ी है।

समाज में स्त्री की कहीं कोई इज्जत नहीं थी। स्त्री को सच में पैर की जूती के समान देखा जाता था। लेकिन आज समय कुछ बदल गया है आज लोग बेटियों को भी उतना ही मान लेते हैं। जितना वह अपने बेटों को देते हैं। बेटियों को अपना कलेजे का टुकड़ा बनाकर रखते हैं। हर क्षेत्र में बेटियां अपना हुनर दिखा रही है। चाहे खेलकूद हो या शिक्षा क्षेत्र हो वह बड़ी से बड़ी नौकरी हासिल करती है। आज बेटियां चांद तक पहुंच गई है हर कार्य कर सकती है।

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चाहे बेटियों को लेकर समाज की सोच में बदलाव आया है, पर अभी भी एक वर्ग ऐसा है जो बेटियों को बेटों से कमतर आंकता है। ऐसे वर्ग की सोच ने ही कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराई को इस युग में भी कायम रखा हुआ है। इसी कारण लिंग अनुपात में भी भारी गिरावट आई है, जो हमारे सामने एक बड़ी चुनौती है। समाज के ऐसे वर्ग को जागरूक करने के लिए पहले इस सोच को बढ़ावा देने की जरूरत है कि बेटियां भी समाज में उतनी ही अहम भूमिका निभाती हैं, जितनी कि बेटे।

बेटियां अपने साथ पूरे परिवार की किस्मत बदल देती है। उन्हें खुला आसमान दिया जाए तो वह ऊंची उड़ान भर सकती है। 1 बेटियां ही होती है जिसके दिल में सबके लिए प्यार होता है। चाहे वह मायका हो या ससुराल। दोनों घरों को बांध कर रखती है। बेटों से ज्यादा बेटियां अपने माता पिता और परिवार की परवाह करती है।

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दूसरा, यह सोच विकसित की जाए कि अगर लड़कियां ही न हों तो वंश कैसे आगे बढ़ेगा और इस सृष्टि का चक्कर ही खत्म हो जाएगा। तीसरा, जो यह सोचते हैं कि बेटियों का कोई घर नहीं होता, वे गलत हैं। असल में सच्चाई तो यह है कि बेटियां हैं तो घर होता है। अगर पिता के घर में बेटी मेहमान है तो ससुराल के घर की पहचान है।

बेटियां आज किसी भी बात पर बेटों से कम नहीं है। उनकी शिक्षा-दीक्षा अगर अच्छे से की जाए तो वह हर मुश्किल को पार कर के माता पिता का नाम रोशन कर सकती है। वैसे बेटियों को एक दिन सेलिब्रेट करना संभव नहीं है। फिर भी यह एक दिन बनाया गया है। इस दिन बेटियों को विशेष रुप से सेलिब्रेट किया जाता है।

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बेटियां अपने परिवार की कभी भी उपेक्षा नहीं करतीं और यही बात उन्हें बेटों से अलग करती है। प्यार, त्याग और भावनाओं की मूरत, बेटी हमेशा परिवार को एक सूत्र में बांध कर रखने के लिए यत्नशील रहती है। आज जरूरत है समाज की हर बेटी को शिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाने की और यह तभी संभव है जब बेटियों के प्रति समाज के हर वर्ग की सोच सकारात्मक हो, परिवार का हर सदस्य उसी चाव से नवजात बेटी का घर में स्वागत करे, जो चाव वे एक बेटे के स्वागत के लिए दिखाते हैं।

यह दिन खासकर बेटियों के लिए हैं। मां-बाप अपनी ऐसी बेटियों के लिए खुश होते हैं। जिन्होंने बेटी होकर कुछ अलग करके दिखाया है और अपने माता-पिता का नाम रोशन किया है डॉटर्स डे उन्हीं के लिए मनाया जाता है.

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