जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस राज्यसभा में होगा रद्द

जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस राज्यसभा में होगा रद्द

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग पर राज्यसभा में विपक्ष की ओर से दिए गए नोटिस को भले ही तत्कालीन सभापति जगदीप धनखड़ ने उस समय स्वीकार करते हुए महासचिव को जांचने के लिए भेज दिया था, लेकिन अब जो जानकारी मिल रही है, उसके तहत इस नोटिस में कई त्रुटियां पायी गई है।

साथ ही इसे सदन में औपचारिक रूप से पेश भी नहीं किया गया है, ऐसे में इसे रद किया जा सकता है। साथ ही लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी सत्ता पक्ष व विपक्ष की ओर से संयुक्त रूप से एक नया प्रस्ताव दिया जा सकता है।

लोकसभा में शुरू होगी प्रक्रिया

सरकार से जुड़े सूत्रों ने संकेत दिए है, कि न्यायाधीश वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया सबसे पहले लोकसभा में शुरू होगी। वैसे भी जो नियम है उसके तहत जिस सदन में पहले प्रस्ताव स्वीकार जाता है, वहीं सबसे पहले प्रक्रिया शुरू होगी। इस दौरान दोनों सदनों की सहमति से जल्द ही तीन सदस्यीय जांच कमेटी भी गठित की जाएगी। जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के एक-एक न्यायाधीश व एक संविधान विशेषज्ञ होंगे।

जांच कमेटी की सिफारिश पर सदन महाभियोग के खिलाफ प्रस्ताव पर न्यायाधीश को हटाने की कार्रवाई करेगा। जो संकेत दिए गए है उसके तहत अगले हफ्ते तक यह जांच कमेटी गठित हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक न्यायाधीश वर्मा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को सरकार दोनों सदनों में भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी कड़ी कार्रवाई के रूप में पेश करने की तैयारी में है।

यही वजह है कि राज्यसभा में सरकार के इस रुख के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करने को लेकर धनखड़ और सरकार के बीच तनातनी की स्थिति बन गई। इसके चलते धनखड़ ने बाद में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया।

धनखड़ के इस्तीफे का तात्कालिक कारण राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग (Justice Yashwant Varma Impeachment) चलाने का नोटिस नजर आ रहा है। गौरतलब है कि धनखड़ ने बतौर सभापति उस प्रस्ताव को स्वीकार किया था जिसमें विपक्ष के 63 सदस्यों के हस्ताक्षर थे।

इस नोटिस और हस्ताक्षरों की जानकारी सरकार के फ्लोर लीडर्स को नहीं थी। इतना ही नहीं, धनखड़ ने कोशिश की थी कि महाभियोग का मामला पहले राज्यसभा में ही चले, जो साफ तौर से विपक्ष के खाते में जाता क्योंकि उसका प्रस्ताव ही स्वीकार किया गया था। इसके बाद कुछ घटनाएं ऐसी घटीं, जिससे धनखड़ शायद क्षुब्ध हुए और उन्होंने इस्तीफे का फैसला ले लिया।

सरकार ने लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने की बनाई थी स्ट्रैटजी

मंगलवार को दिनभर जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर अटकलें चलती रहीं। इसे लेकर कई तरह की थ्योरी चल रही हैं, लेकिन यह बात लगभग तय हो चुकी थी कि एक कारण जस्टिस वर्मा ही थे। सरकार की ओर से पहले ही घोषणा की जा चुकी थी कि भ्रष्टाचार के आरोपित जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी है।

सरकार की योजना थी कि इसे पहले लोकसभा से पारित किया जाए, फिर राज्यसभा में भेजा जाए। लोकसभा में महाभियोग के नोटिस में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और भाजपा के रविशंकर प्रसाद और अनुराग ठाकुर के साथ-साथ सत्तापक्ष और विपक्ष के 145 सांसदों के हस्ताक्षर से यह साफ है कि सरकार इस मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने में काफी हद तक सफल रही है।

हालांकि, राज्यसभा में लगभग 3.30 बजे धनखड़ ने 63 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ महाभियोग का नोटिस मिलने और इसकी प्रक्रिया शुरू करने का एलान कर दिया। हैरानी की बात यह रही कि इन सांसदों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों का एक भी सांसद नहीं था। यह कमी भाजपा के फ्लोर मैनेजर की रही होगी, लेकिन यह अपेक्षा थी कि सरकार को इसकी जानकारी धनखड़ के कार्यालय से मिलेगी क्योंकि नेता सदन भाजपा के हैं।

जस्टिस वर्मा मामले को लेकर मुखर थे धनखड़

गौरतलब है कि उसी समय धनखड़ ने अपने राज्यसभा के महासचिव को कार्यवाही शुरू करने का निर्देश भी दिया, जिसमें दोनों सदनों का संयुक्त समिति का गठन भी शामिल था। यानी धनखड़ इस मामले को लेकर बहुत सक्रिय थे।

धनखड़ जस्टिस वर्मा के मुद्दे पर काफी मुखर रहे हैं और वह चाहते थे कि यह मामला राज्यसभा से ही शुरू हो। हालांकि, इसमें एक खतरा था। दरअसल, विपक्ष की ओर से राज्यसभा में ही 50 से ज्यादा विपक्षी सदस्यों ने जस्टिस शेखर यादव (Justice Shekhar Yadav) के खिलाफ भी महाभियोग का नोटिस दिया हुआ है। ऐसे में वह मामला भी उठ सकता था।

सूत्रों के अनुसार, धनखड़ को सत्तापक्ष ने इस असहज स्थिति के लिए नाराजगी से अवगत करा दिया था। बताया जा रहा है कि इसके बाद ही नेता सदन जेपी नड्डा ने धनखड़ को संदेश भेजा कि वे और किरेन रिजिजू मंत्रणा सलाहकार समिति की बैठक में नहीं आ रहे हैं।इसी बीच एक घटना रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के कमरे में हुई।

सूत्रों के अनुसार वहां भाजपा के कई सांसदों ने एक पेपर पर हस्ताक्षर किए। कहा जा रहा है कि ये हस्ताक्षर भाजपा की ओर से भी जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ नोटिस दिए जाने को लेकर किए जा रहे थे। लेकिन हो सकता है कि धनखड़ ने इसे कुछ और समझा हो।

खैर जो भी हो, घटनाएं कुछ इस तरह हुईं कि असहजता बढ़ती गई।ऐसे में स्वाभाव से अक्खड़ धनखड़ ने एकबारगी इस्तीफे का निर्णय कर लिया और शाम छह बजे तक इसका संकेत सरकार को भी दे दिया।

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