हमारे समाज में देवउठनी एकादशी व्रत का महत्व

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का समय भगवान विष्णु की शयन अवधि यानी चातुर्मास कहलाता है। इस दौरान विवाह और मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं।देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु के जागरण के साथ ही सभी शुभ कार्यों का आरंभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत का फल हजारों अश्वमेध यज्ञों और सैकड़ों राजसूय यज्ञों के बराबर होता है। यह व्रत पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति कराने वाला माना गया है।

देवउठनी एकादशी पूजा विधि

प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत संकल्प लें।

भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।

तुलसी दल, पीले पुष्प और पंचामृत से पूजा करें।

विष्णु सहस्त्रनाम या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।

रात्रि में भगवान की आरती कर दीपदान करें।

अगले दिन पारण समय में व्रत खोलें।

देवउठनी एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह होता है। एकादशी व्रत 1 नवंबर को होगा और पारण तथा तुलसी विवाह 2 नवंबर को है।

तुलसी विवाह की विधि

तुलसी के पौधे को गेरू से सजाएं और उस पर चुनरी ओढ़ाएं।

ईंख का मंडप बनाकर भगवान शालिग्राम (विष्णु स्वरूप) को तुलसी के साथ बैठाएं।

हल्दी, कुमकुम, फूल और चूड़ियां अर्पित करें।

विवाह मंत्रों के साथ तुलसी-शालिग्राम की परिक्रमा करें।

अंत में घर में दीपदान करें और प्रसाद बांटें।

उपाय

तुलसी विवाह या देवउठनी के दिन तुलसी के पास घी का दीपक जलाएं। औ“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।

ब्राह्मण या गरीब को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करें।

रात को तुलसी के पास दीपक जलाकर रखें-इससे घर में लक्ष्मी स्थायी रूप से वास करती हैं।

देवोत्थान एकादशी, देवउठनी एकादशी, देव उठान एकादशी इसी एकादशी के दिन जगत के पालनहार श्रीहरि भगवान विष्णु अपने योगनिद्रा से उठकर जागते हैं. मान्यता यह है कि आषाढ़ में हरिशयन एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा में प्रवेश कर कार्तिक मास के देवोत्थान एकादशी के दिन निद्रा से उठते हैं. भगवान विष्णु के निद्रा से उठते ही सनातन धर्म में सभी मांगलिक कार्यों का शुभारंभ भी हो जाता है.

आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन मानव की चेतना विष्णु की चेतना के साथ सुप्त हो जाती है. यही कारण है कि देवशयनी एकादशी से लेकर देवोत्थान एकादशी की अवधि के चार मास में मनुष्यों की सुप्त चेतना को संयम के द्वारा समायोजित करने की परंपरा रही है. 01 नवंबर दिन शनिवार को कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी के दिन चार मास से सोये हमारे भीतर विष्णु तत्व का जागरण होगा. यह एकादशी करना सभी सनातन धर्माविलंबियों का कर्तव्य देवोत्थान एकादशी को स्नान, व्रत, दान, पूजा, तप, जप करना प्रत्येक सनातनधर्मी का आध्यात्मिक कर्तव्य है. यह एकादशी व्रत सर्व मनोकामना पूर्ति करता है.

एकादशी-माहात्म्य के अनुसार देवोत्थान एकादशी व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है. इस परमपुण्यप्रदा एकादशी के विधिवत व्रत से सब पाप भस्म हो जाते हैं तथा व्रती मरणोपरान्त बैकुण्ठ जाता है. इस एकादशी के दिन भक्त श्रद्धा के साथ जो कुछ भी जप-तप, स्नान-दान, करते हैं, वह सब अक्षय फलदायक हो जाता है. इस एकादशी को निराधार व्रत करने पर सीधे भगवान विष्णु का सानिध्य बैकुंठ में मिलता है और रात्रि जागरण करते हुए द्वादशाक्षर मंत्र का जाप करने पर अमोघ पुण्य की प्राप्ति होती है.

भगवान विष्णु के विग्रह शालिग्राम की महत्ता इस दिन एकादशी के संध्या में शालिग्राम भगवान का विशेष पूजन होता है. गुड़ में गाय के दूध को डालकर उस दूध से भगवान का अभिषेक किया जाता है और मिथिलांचल में इसी दिन से गेंदा पुष्प जिसे शारद्य पुष्प कहा जाता है. इस पुष्प को भगवान विष्णु पर प्रथम अर्पित करके सभी देवी-देवताओं के लिए आज से ही यह पुष्प चढ़ना शुरू होता है. साथ ही शालिग्राम जो कि भगवान विष्णु का साक्षात विग्रह है, विशेष पूजन के अंतर्गत नवीन वस्त्र अर्पित किए जाते हैं.

विभिन्न तरह की मौसमी फल, सब्जियों और साग का भी भोग लगाया जाता है. मखान, द्राक्ष, ईख, अनार, केला, सिंघाड़ा, अलुहा, सुथनी आदि ऋतुफल श्री हरि को अर्पण की जाती है. तत्पश्चात् भगवान विष्णु के विग्रह स्वरूप शालिग्राम शीला को विधिवत पूजन करके पीढ़ी पर दीपक जला करके और शंख-घड़ियाल, घंटा इत्यादि बजा कर, उस पीढ़ी को ऊपर उठाकर भगवान विष्णु को जगाने की परंपरा को निभाया जाता है.

इसके बाद चरणामृत अवश्य ग्रहण किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि चरणामृत सभी रोगों का नाश कर अकाल मृत्यु से रक्षा करता है. एक नवंबर को होगी देवोत्थान एकादशी 01 नवंबर से सभी प्रकार के मांगलिक यज्ञ कर्म का शुभारंभ हो जाएंगे. भगवान विष्णु का 04 मास चातुर्मास में सोने का जो कारण है वह यह की आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर नामक दैत्य मारा गया था,

अतः इस दिन से आरंभ करके भगवान चार मास तक छिड़ सागर में शयन करते हैं. इसी दिन यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को जगते हैं. भगवान को जगाने के समय में शंख, घंटी, घड़ीघंट, ढोल, मृदंग इत्यादि के द्वारा विधिवत उनको जगाया जाता है. तत्पश्चात उनसे प्रार्थना किया जाता है, हे गरुड़ ध्वज भगवान उठिए हे कमलाकांत निद्रा को त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिए.

ऐसा कहकर भगवान को पुनः स्थापित किया जाता है और अनेक प्रकार के नृत्य गीत संगीत कीर्तन आदि के द्वारा भगवान को मनाया जाता है. देवेश्वर श्री विष्णु को उठाकर उनकी पूजा करनी चाहिए सायं काल में तुलसी जी की वैवाहिक विधि को भी संपन्न करनी चाहिए. यह एकादशी परम पुण्यदाई है.

 

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