MLC चुनाव में पहली वरीयता में पिछड़ने वाला कैंडिडेट भी कैसे बन सकता है विजेता?

MLC चुनाव में पहली वरीयता में पिछड़ने वाला कैंडिडेट भी कैसे बन सकता है विजेता?

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कुछ ही घंटों में आयेगा परिणाम

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार विधान परिषद चुनाव के लिए 24 सीटों पर 4 अप्रैल को हुई वोटिंग का आज परिणाम आएगा.

विधान परिषद के चुनाव वोटों की गिनती और विजेताओं की घोषणा बिल्कुल अलग तरीके से होती है। इस चुनाव में एकल संक्रमणीय आनुपातिक मतदान के आधार पर विजेता का फैसला होता है। विधानसभा चुनाव में जिस प्रत्याशी को ज्यादा वोट मिलते हैं वही विजेता होता है, लेकिन विधान परिषद चुनाव में वोटरों के पास एक से ज्यादा प्रत्याशियों को वोट देने और पहली पसंद, दूसरी पसंद, तीसरी पसंद जैसे विकल्प होते हैं। वोटर को अधिकार होता है कि वह तय कर सकें कि किस प्रत्याशी को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं और किसे कमतर। बैलेट पेपर पर वरीयता क्रम में वोटर अपनी पसंद का इजहार रोमन अंकों में करते हैं।

उदाहरण के लिए किसी सीट पर A,B, C और D प्रत्याशी हैं। अगर कोई वोटर वोट डालने गया और उसे A सबसे ज्यादा पसंद और D दूसरी पसंद है तो वोटर बैलेट पेपर पर A के सामने रोमन में एक लिखेगा और D के सामने 2 लिखेगा। इसी तरह B और C को वह वोटर कितना पसंद करता है उसके हिसाब से रोमन में लिखेगा।

जब वोटों की गिनती होती है तब ये गिना जाता है कि मिस्टर A को कितने लोगों ने पहली पसंद बताया है। यानी पहले प्रथम वरीयता के वोट गिने जाते हैं। कैंडिडेट को जीत के लिए पड़े कुल वैध मतों के 50 प्रतिशत के अलावा कम से कम एक अधिक वोट लाना होता है। अधिक की कोई सीमा नहीं होती।

प्रथम वरीयता के वोट ही किसी प्रत्याशी को यदि 50 फीसदी से एक ज्यादा मिल गए तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। अगर इतने वोट किसी को नहीं मिले तो दूसरी वरीयता की गिनती शुरू होती है। इसमें सबसे पहले प्रथम वरीयता के सबसे कम वोट पाने वाले प्रत्याशी को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया जाता है और उसके बैलेट पेपर में मिले दूसरी वरीयता के वोटों को संबंधित प्रत्याशी के वोट में जोड़ दिया जाता है।

उदाहर के लिए अगर किसी सीट पर A,B, C और D प्रत्याशी हैं। इनमें से अगर किसी एक प्रत्याशी को प्रथम वरीयता के 50 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं आए तो दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती होगी। इसमें प्रथम वरीयता के सबसे कम वोट लाने वाले प्रत्याशी को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया जाएगा। उसे मिले दूसरी वरीयता के वोट को संबंधित प्रत्याशियों में बांट दिया जाएगा। तब भी किसी को वैध मतों के आधा से एक ज्यादा नहीं मिले तो क्रम चलता रहेगा और नीचे के प्रत्याशी को एलीमिनेट किया जाता रहेगा।

यह प्रक्रिया तब तक चलेगी जबतक जीत के लिए जरूरी वोट किसी को न मिल जाए। आखिर में बचे दो प्रत्याशियों में भी यदि किसी को जरूरी वोट नहीं मिले तो चुनाव आयोग ज्यादा वोट लाने वाले को विजेता घोषित कर देगा।

इस तरह आप समझ चुके होंगे कि वोट गिनने के दौरान पहली वरीयता के वोटों में पिछड़कर भी किसी कैंडिडेट के जीतने की संभावना खत्म नहीं होती है। वह मुकाबले में बना रह सकता है। दूसरी वरीयता के वोटों के सहारे उसे जीत मिल सकती है। इस प्रक्रिया में सामान्य मतगणना से तीन गुना अधिक समय लगता है।

 

 

 

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