स्वतंत्रता दिवस : स्वाधीनता का महोत्सव और आत्ममंथन का अवसर
✍️ परिचय दास सर
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत का स्वतंत्रता- दिवस केवल एक ऐतिहासिक तिथि नहीं है बल्कि यह हमारे राष्ट्र की आत्मा का उत्सव है। 15 अगस्त , 1947 को हमने औपनिवेशिक दासता की लंबी रात को पीछे छोड़ते हुए स्वतंत्रता का सूर्योदय देखा। यह दिन हमें उन अनगिनत बलिदानों की याद दिलाता है, जिनके बिना स्वतंत्र भारत का सपना अधूरा रह जाता।
लाल किले की प्राचीर से तिरंगे का लहराना केवल एक औपचारिकता नहीं बल्कि यह उस यात्रा का प्रतीक है जो गुलामी से स्वराज्य तक पहुँची। यह यात्रा केवल राजनैतिक स्वतंत्रता की नहीं थी बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक, भाषायी, आध्यात्मिक और आर्थिक आत्मनिर्भरता की भी खोज थी।
स्वतंत्रता दिवस हमें एक ओर जहाँ आनंद और गर्व से भर देता है, वहीं दूसरी ओर यह आत्ममंथन के लिए भी प्रेरित करता है—क्या हमने अपने शहीदों के सपनों का भारत बनाया है? क्या गाँव-गाँव तक शिक्षा, स्वास्थ्य, समान अवसर और न्याय पहुँचा है?
आज, स्वतंत्रता का अर्थ केवल विदेशी शासन से मुक्ति नहीं बल्कि हर नागरिक के जीवन में गरिमा, समानता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता की रक्षा केवल सीमाओं पर तैनात सैनिक ही नहीं करते बल्कि हर जिम्मेदार नागरिक अपनी ईमानदारी, परिश्रम और संवेदनशीलता से भी उसे मजबूत करता है।
आइए, इस स्वतंत्रता दिवस पर हम केवल झंडा न फहराएँ बल्कि अपने भीतर उस जिम्मेदारी को भी फहराएँ जो राष्ट्र को समृद्ध और न्यायपूर्ण बनाने की ओर ले जाए। तभी यह दिन वास्तव में स्वतंत्रता का उत्सव होगा—जहाँ हर हृदय में स्वाभिमान, हर चेहरे पर मुस्कान और हर जीवन में अवसर होगा।
भारत को विकसित करने का संकल्प केवल एक भावनात्मक
उद् घोषणा नहीं बल्कि एक दीर्घकालिक और सतत प्रक्रिया है, जिसमें देश के हर नागरिक की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। विकास का अर्थ केवल ऊँची-ऊँची इमारतें, चौड़ी सड़कें या चमकते बाज़ार नहीं है बल्कि यह एक ऐसी समग्र स्थिति है जहाँ आर्थिक समृद्धि, सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय संतुलन, सांस्कृतिक उन्नति और मानवीय मूल्यों का संतुलित समागम हो।
किसी भी राष्ट्र के लिए वास्तविक विकास तभी संभव है, जब वह अपनी जड़ों को मज़बूत रखते हुए आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके। भारत को विकसित करने के लिए सबसे पहले शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधारों की आवश्यकता है। शिक्षा केवल रोजगार प्राप्त करने का साधन नहीं बल्कि सोचने, प्रश्न करने और सृजन करने की क्षमता विकसित करने का माध्यम होनी चाहिए।
गुणवत्तापूर्ण और सुलभ शिक्षा, विशेषकर प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर, देश के हर कोने तक पहुँचे, यह पहला कदम है। इसके साथ-साथ उच्च शिक्षा में अनुसंधान, नवाचार और व्यावहारिक कौशलों को बढ़ावा देना होगा। यदि शिक्षा प्रणाली रटने के बजाय समझने और प्रयोग करने की प्रवृत्ति विकसित करे तो भारत के पास विश्वस्तरीय वैज्ञानिक, कलाकार, लेखक, उद्यमी और नीति-निर्माता होंगे।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार भी उतना ही आवश्यक है। एक स्वस्थ नागरिक ही उत्पादक और रचनात्मक हो सकता है। भारत को अपने स्वास्थ्य ढाँचे को गाँव से लेकर महानगर तक मज़बूत करना होगा। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को पर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षित चिकित्सकों से सुसज्जित करना, सस्ती दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना और आधुनिक तकनीक का उपयोग करके दूरस्थ इलाकों में भी चिकित्सा सुविधाएँ पहुँचाना, इस दिशा में अहम कदम होंगे। साथ ही, निवारक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना होगा—स्वच्छता, पौष्टिक भोजन, नियमित व्यायाम और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना विकास की आधारशिला बनेगा।
आर्थिक विकास के लिए भारत को अपने कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों में संतुलित वृद्धि करनी होगी। कृषि को केवल परंपरागत खेती के दायरे से निकालकर वैज्ञानिक तकनीक, जल प्रबंधन, जैविक खेती और मूल्य संवर्धन की दिशा में आगे बढ़ाना आवश्यक है। किसान को केवल अन्न उत्पादक नहीं, बल्कि उद्यमी के रूप में विकसित करना होगा। उद्योगों के लिए पारदर्शी नीतियाँ, बुनियादी ढाँचे का विकास और छोटे-मध्यम उद्योगों के लिए वित्तीय सहायता ज़रूरी है। सेवा क्षेत्र, विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यटन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा में अपार संभावनाएँ हैं जिन्हें सुनियोजित ढंग से विकसित करना चाहिए।
रोज़गार सृजन भारत के विकास का केंद्रीय बिंदु है। जब तक युवाओं को सम्मानजनक और स्थायी रोजगार नहीं मिलते, तब तक विकास अधूरा रहेगा। इसके लिए कौशल विकास मिशनों को और प्रभावी बनाना होगा। शिक्षा और उद्योग के बीच की खाई पाटने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण, इंटर्नशिप और उद्यमिता को बढ़ावा देना होगा। स्टार्टअप और नवाचार आधारित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देकर युवाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर दिया जा सकता है।
पर्यावरण संरक्षण विकास की अनिवार्य शर्त है। यदि विकास की दौड़ में हम अपने जंगल, नदियाँ, पहाड़ और हवा खो देंगे तो यह विकास नहीं, विनाश होगा। भारत को नवीकरणीय ऊर्जा, विशेषकर सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बनना होगा। जल संरक्षण, कचरा प्रबंधन, जैव विविधता की रक्षा और प्रदूषण नियंत्रण पर कड़ा अमल अनिवार्य है। ग्राम और नगर स्तर पर सामुदायिक भागीदारी से पर्यावरणीय परियोजनाएँ सफल हो सकती हैं।
सामाजिक समरसता भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। भारत की विविधता उसकी ताकत है, लेकिन अगर यह विविधता विभाजन में बदल जाए तो विकास असंभव हो जाएगा। जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना होगा। समान अवसर, समान अधिकार और सामाजिक न्याय हर नागरिक को मिलना चाहिए। महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और आर्थिक भागीदारी में वृद्धि से आधी आबादी की शक्ति राष्ट्र निर्माण में लगेगी।
सुगठित और पारदर्शी शासन व्यवस्था भारत के विकास का सबसे मज़बूत स्तंभ है। भ्रष्टाचार, नौकरशाही की जटिलता और अनावश्यक लालफीताशाही को समाप्त करके प्रशासन को तेज़, उत्तरदायी और जनकेन्द्रित बनाना होगा। डिजिटल तकनीक के प्रयोग से पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाई जा सकती है। नीतियाँ केवल कागज़ पर नहीं, ज़मीन पर दिखनी चाहिएं।
सांस्कृतिक विकास को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। भारत की कला, साहित्य, संगीत, नृत्य, भाषाएँ और लोक परंपराएँ उसकी पहचान हैं। इन्हें संरक्षित और प्रोत्साहित करके हम अपनी आत्मा को जीवित रखते हुए वैश्विक मंच पर अपनी छाप छोड़ सकते हैं। आधुनिकता के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी महत्त्व देना आवश्यक है, ताकि विकास का चेहरा केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मानवीय और आत्मिक भी हो।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को अपनी भूमिका मज़बूत करनी होगी। कूटनीति, व्यापार, विज्ञान, खेल और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से भारत को विश्व में एक प्रेरक और अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्थापित करना संभव है। इसके लिए हमें न केवल अपनी क्षमताओं को पहचानना होगा, बल्कि उन्हें सही दिशा में नियोजित करना होगा।
सबसे महत्त्वपूर्ण है नागरिक चेतना। जब तक हर नागरिक यह महसूस नहीं करेगा कि विकास केवल सरकार का दायित्व नहीं बल्कि उसका अपना भी कर्तव्य है, तब तक वास्तविक परिवर्तन कठिन रहेगा। प्रत्येक व्यक्ति को अपने क्षेत्र, अपने पेशे और अपने समाज में ईमानदारी, मेहनत और संवेदनशीलता के साथ योगदान देना होगा। छोटी-छोटी बातें—जैसे कर समय पर चुकाना, पर्यावरण की रक्षा करना, नियमों का पालन करना और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना—विकास की बड़ी तस्वीर को आकार देती हैं।
भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प तभी पूरा होगा, जब हम सब मिलकर एक साझा दृष्टि अपनाएँ। यह दृष्टि ऐसी हो जो केवल आर्थिक समृद्धि तक सीमित न रहे बल्कि उसमें न्याय, समानता, भाईचारा, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति का भी समावेश हो। यह एक लंबी यात्रा है, लेकिन सही दिशा, सामूहिक प्रयास और अटूट संकल्प के साथ यह यात्रा निश्चित रूप से हमें उस भारत तक ले जाएगी, जो न केवल विकसित होगा, बल्कि दुनिया के लिए एक आदर्श भी बनेगा।
– परिचय दास
प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष,
हिन्दी विभाग,
नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय
( संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ), नालंदा
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