तनाव से भरा रहा भारत और पाक मुकाबला
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पाकिस्तानी बल्लेबाज साहिबजादा फरहान को लेकर भी काफी विवाद हुआ था. इस क्रिकेटर ने अर्धशतक जड़ा और ‘बंदूक’ दिखाकर जश्न मनाने का फैसला किया. भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते राजनीतिक तनाव के बीच, यह कदम अच्छा नहीं माना गया और प्रशंसकों के साथ-साथ विशेषज्ञों ने भी इसकी कड़ी आलोचना की. इस इशारे को आतंकवादियों से जोड़ा गया और इसे पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए लोगों का अपमान बताया गया. भारत के पूर्व क्रिकेटरों ने भी इसपर कड़ी आपत्ति दिलाई और कहा कि ये सब बताता है कि उनकी परवरिश किस माहौल में हुआ है.
सन उन्नीस सौ पैंसठ, भारत पाक युद्ध! पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन जिब्राल्टर नाम से कश्मीर पर आक्रमण किया था। पाकिस्तानी लफ़ंडरों ने जोश जोश में हमला तो कर दिया था, पर जब इधर से मार पड़ी तो लगे भागने। भारतीय जवान भी इनकी बदतमीजी से भन्नाए हुए थे, सो दौड़ा दौड़ा कर मार रहे थे।
उन दिनों कश्मीर में ही तैनाद एक भारतीय रेजिमेंट में दो मित्र सैनिक पोस्टेड थे, गोबरधन तिवारी और मैनेजर यादव। गज्जब यारी थी दोनों की। दोनों बिहार के छपरा जिले के एक ही गाँव के थे। साथ खेले कूदे, साथ ही तैयारी की और साथ ही नियुक्ति हुई। जाने कैसे दोनों एक ही बटालियन में तैनाद भी थे। पाकिस्तानियों को दौड़ाने वालों में ये दोनों भी थे।
हाँ तो पाकिस्तानी सेना के जवान राइफल फेंक के भाग रहे थे, और इन छपरहिया जवानों को रगेदने में मजा आ रहा था। दोनों खदेड़ते हुए पाक अधिकृत काश्मीर में आठ किलोमीटर अंदर ढूक गए थे। दौड़ते दौड़ते ये दोनों थक गए थे, सो एक जगह रुक गए और एक चट्टान पर बैठ कर सुस्ताने और बतियाने लगे…
अचानक जादो जी ने कहा, “यार तिवारी बाबा! इस लड़ाई में मजा नहीं है। यह भी कोई लड़ाई है भला कि एक गोली मारी और दुश्मन टें बोल जाय। मजा तो तब है जब साले को पकड़ें और पिछवाड़े पर सौ लट्ठ मारें। छपरा की लड़ाई तो यही है बाबा…”
तिवारी जी हँसने लगे। कहा, “कोई बात नहीं। अबकी जो मिलेगा उसे गोली नहीं मारी जाएगी। उसको पकड़ कर तुम्हारे हवाले करेंगे, फिर तुम उसका बोकला झाड़ना…”
बाबा का इतना कहना था कि चट्टान के पीछे गरज तड़क होने लगी, जैसे एकाएक किसी आदमी का पेट बह गया हो। तिवारी कूद कर पीछे गए तो देखा, एक पाकिस्तानी सैनिक छिपा हुआ था। इनकी बातें सुन कर अचानक उसका पैजामा खराब हो गया था। तिवारी ने उसकी कॉलर पकड़ी और घसीटते हुए आगे लाये। अचानक उनकी दृष्टि उसके पायजामे पर गयी तो उसका कॉलर छोड़ कर दूर हट गए और चीख कर बोले- “यार मनेजर नाश हो गया। ई तो सरवा पोंक दिया है। अब नहाना पड़ेगा बे…”
मनेजर को चढ़ गया गुस्सा, पाकिस्तानी की छाती पर दो लात लगा कर गरजे- साले हग्गन! तैने हमारे पुरोहित महाराज को भरभष्ट कर दिया। अबे जब पैजामा बिगड़ गया था बताया क्यों नहीं हरामखोर?
पाकिस्तानी सेना के सूबेदार हग्गन अफरीदी ने कांपते हुए कहा, ” जान बख़्स दो मालिक, डर से हो गिया। हमने जैसे ही सुना कि आप जादो हैं, पैजामा बिगड़ गिया। माफ कर दो मालिक…”
मैनेजर ने तिवारी ओर देख कर पूछा, “और महाराज जी, का किया जाय इसका?”
तिवारी गरजे- अरे इसके चलते इतनी सर्दी में इस बर्फ जैसी नदी में नहाना पड़ रहा है। मार के साले का भुर्ता बना दे भाई, दिमाग भन्ना गया है।
यादव जी ने पाकिस्तानी के हाथ पांव उसी के बेल्ट से बांधे और अपना बेल्ट निकाल लिया। उसके बाद….
छोड़िये। आपको बताते चलें कि गोबरधन तिवारी दूर के रिश्ते में लेखक के चाचा होते हैं। एक दिन उन्ही के साथ लेफिनेन्ट मैनेजर यादव के घर दही चूड़ा खाने गए थे तो उन्होंने बताया- पाकिस्तानी टीम के खिलाड़ी साहबजादा फरहान का मुँह हग्गन अफरीदीया जैसा लगता है। हो न हो यह उसी का नाती पोता है।


