Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
इजरायल के वह अहसान जो कभी नहीं भूलेगा भारत,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

इजरायल के वह अहसान जो कभी नहीं भूलेगा भारत,क्यों?

इजरायल के वह अहसान जो कभी नहीं भूलेगा भारत,क्यों?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मध्य पूर्व में एकअगर इतिहास पर हम नजर डालें तो पता चलेगा कि भारत और इजरायल एक-दूसरे का आजमाया हुआ साथी है। बड़ी लड़ाई चल रही है। इजरायल और चरमपंथी ग्रुप हमास के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है। इसमें भारत के रोल को लेकर सब तरफ से सवाल पूछे जा रहे हैं। अगर इतिहास पर हम नजर डालें तो पता चलेगा कि भारत और इजरायल एक-दूसरे का आजमाया हुआ साथी है। जब जब हमारे देश पर संकट आया भारत ने इजरायल की मदद की है।

हर युद्ध के मौके पर इजरायल ने भारत संग दोस्ती निभाई। ऐसे वक्त में मदद की जब बाकी दुनिया के देशों से उसे बहुत मदद नहीं मिल रही थी। इजरायल ने आगे बढ़ते हुए भारत की मदद का हाथ बढ़ाया। भारत अपने आप को 1965 में एक और जंग के मुहाने पर खड़ा पाता है। भारत और पकिस्तान के बीच छिड़े युद्ध में इजरायल एक बार फिस से हमारा मददगार साबित होता है। इस युद्ध में हमें हथियार मुहैया करवाता है। इंदिरा गांधी की सरकार ने भी 1971 में इसी तरह की मांग की थी जब भारत और पाकिस्तान के बीच तीसरा युद्ध होता है।

जिसके नतीजे में पूर्वी पाकिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में सामने आता है। उस समय इजरायल हथियारों की कमी से जूझ रहा था। लेकिन तत्कालीन इजरायली पीएम गोल्डा मेयर ने ईरान को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हथियारों को भेजने का फैसला किया। पीएम मोदी के शासनकाल में इजरायल और भारत के रिश्ते मजबूत हुए हैं। दोनों देश बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। भारत एशिया में इजरायल का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और विश्व स्तर पर सातवां सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। भारत इजरायल का बड़ा रक्षा उपकरण आयातक देश है। भारत का 40 फीसदी रक्षा उपकरण और हथियार इजरायल से ही आता है।

तावास खोलने में 42 साल लग गए

भारत और इजरायल को एक-दूसरे के यहां आधिकारिक तौर पर दूतावास खोलने में 42 साल लग गए। 1992 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान दोनों के बीच अहम कूटनीतिक संबंधों की शुरुआत हुई। इजरायल ने मुंबई में अपना वाणिज्य दूतावास खोला। दोनों के रिश्तें इतने घनिष्ठ नहीं थे लेकिन जरूरत के वक्त इजरायल ने भारत की हमेशा मदद की।

1968 में जब भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का गठन रामनाथ काव के नेतृत्व में हुआ तो उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा कि हमें इजरालय के साथ अपने संबंध बेहतर बनाने चाहिए व वहां की खुफिया एजेंसी मोसाद की मदद लेनी चाहिए। इंदिरा गांधी इसके लिए राजी हो गईं। जिसका लाभ बंग्लादेश मुक्ति संग्राम के वक्त भारत को प्राप्त हुआ।

कारगिल युद्ध में इजरायल ने कैसे की थी मदद

1999 में कारगिल की लड़ाई के दौरान भारत और इजरायल के बीच सैन्य सहयोग एक नए स्तर पर पहुंच गया। इजरायल ने भारत को खुफिया जानकारी के साथ मोर्टार, निगरानी करने वाले ड्रोन और लेजर गाइडेड बम मुहैया कराए इससे भारत को ये लड़ाई जीतने में मदद मिली। 1999 के करगिल युद्ध में भी इजरायल ने भारत को एरियल ड्रोन, लेसर गाइडेड बम, गोला बारूद और अन्य हथियार बेचे। संकंट के समय इजरायल हमेशा हथियार आपूर्तिकर्ता देश के रूप में स्थापित हुआ।

भारत हर साल 67 अरब से 100 अरब तक के सैन्य उत्पाद इजरायल से आयात करता है। जब पोखरण में 1998 में परमाणु परीक्षण किया गया तब इजरायल ने उसकी कोई आलोचना नहीं की। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भी इजरायल के साथ संबंधों को तरजीह दी। पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच संबंधों में मजबूती आई है।

इंदिरा गांधी और अराफात

यासिर अराफात अपनी हवाई यात्रा को बहुत गुप्त रखते थे और मेजबान देश को पहले से नहीं बताया जाता था कि वो वहां आने वाले हैं। उनका अक्सर भारत आना होता था। वो इंदिरा गांधी को अपनी बहन मानते थे। राजीव गांधी के साथ भी उनकी बहुत घनिष्टता थी। कहा जाता है कि एक बार उन्होंने भारत में राजीव गांघी के लिए चुनाव प्रचार करने की पेशकश की थी।

इजरायल की किताबों में भारतीय सैनिकों के किस्से क्यों हैं? 

ये 1918 की बात है। सितंबर का महीना प्रथम विश्व युद्ध का दौर। वर्तमान के इजरायल का प्रमुख शहर और बंदरगाह जिसकी मुक्ति के बिना इजरायल की आजादी संभव नहीं थी। इजरायल पर ऑटोमन साम्राज्य (तुर्की) का कब्ज़ा था। हायफ़ा एक रणनीतिक बंदरगाह शहर था जिसको जीतना अंग्रेजों के लिए असंभव सा था। अंग्रेजों ने जब हथियार डाल दिए तो फिर बारी आई भारतीय सैनिको की जिन्होंने इजरायल के शहर को बचाने में अहम भूमिका निभाई।

भारतीय फौज की तीन घुड़सवार टुकड़ियों ने कमान संभाली जिनमें शामिल थे जोधपुर लांसर्स, मैसूर लांसर्स और हैदराबाद लांसर्स। इनका नेतृत्व जोधपुर लांसर्स के मेजर दलपत सिंह ने किया। युद्ध के दौरान हुई इस जंग-ए-आजादी में 900 से अधिक भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। 23 सितंबर 1918 को भारत के वीरों ने एक फौजी ताकत को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। दिल्ली का तीन मूर्ति चौक इन्हीं वीर सपूतों की याद में बनवाया गया है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!