क्या छत्तीसगढ़ में दूबारा से कांग्रेस आ रही है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मध्य भारत के धान कटोरे में सियासी चावल भरने की तैयारियां तकरीबन पूरी हो चुकी हैं। राज्य के दोनों पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी दलों ने अपने-अपने पौधे रोप दिए हैं। कांग्रेस ने जहां 83 सीटों के उम्मीदवारों का नाम फाइनल कर दिया है तो दो पांच साल से सत्ता से दूर बीजेपी भी 87 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार चुकी है। दोनों पार्टियों की कोशिश है कि कटोरे से उनका ही चावल निकले, हालांकि इसमें अड़ंगा बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी लगा रही है। बीएसपी ने जहां 26 सीटों पर दम लगा रखा है तो आम आदमी पार्टी 11 सीटों के जरिए इस राज्य में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।

वोट बैंक और समर्थक आधार के नजरिए से देखें तो बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी का वोट बैंक कमोबेश बीजेपी विरोधी ही माना जाता है। इस लिहाज से कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी एक ही समर्थक वोट बैंक पर निर्भर हैं। इस हिसाब से लगेगा कि तीनों दलों की उपस्थिति से कांग्रेस की स्थिति डांवाडोल हो सकती है। लेकिन कांग्रेस को उम्मीद अपने सबसे बड़े चेहरे से है।

कांग्रेस की उम्मीद की बड़ी वजह राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं। कांग्रेस जिस तरह की रणनीति पर चल रही है, उससे ऐसा लगता है कि वह एक बार फिर से सत्ता में वापसी के भरोसे से भरी है। उसे लगता है कि उसकी सरकार की योजनाओं के जरिए गांवों के लोगों को बहुत फायदा हुआ है। उसकी गोधन न्याय योजना की लोकप्रियता गांव-गांव तक फैली हुई है। कांग्रेस को यह भी लगता है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा चलाई गई 25 योजनाओं से लोग बेहद संतुष्ट हैं। जिनमें धनवंतरि मेडिकल योजना, दाई दीदी मोबाइल योजना, मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना, छत्तीसगढ़ महतारी दुलार योजना से लोगों को सीधे और तत्काल फायदा पहुंचा है।

इस वजह से राज्य के लोगों का भरोसा भूपेश बघेल पर बना हुआ है। पार्टी को पता है कि सत्ता में रहने की वजह से उसके खिलाफ कुछ वर्गों में सत्ता विरोधी रूझान भी है। इसे ध्यान में रखते हुए पार्टी ने अपने 18 विधायकों के टिकट काट दिए हैं। पार्टी को लगता है कि इसकी वजह से उसे फायदा होगा और वह सत्ता विरोधी रुझानों से बच जाएगी।

पंद्रह साल से राज्य में पक रहे बीजेपी के चावल को निकालकर कांग्रेस का चावल पकाने वाले भूपेश बघेल ही रहे। राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष रहते उन्होंने समूचे राज्य का दौरा किया था और तकरीबन अजेय समझी जाती रही भाजपा की सीटों को बीस से भी नीचे लाने पर मजबूर कर दिया था। कांग्रेस को अपने इसी चमत्कारी नेतृत्व पर अब भी भरोसा है। वैसे कांग्रेस को लगता है कि जिस तरह उसने जाति जनगणना की मांग का समर्थन किया है, उससे राज्य की करीब पचास फीसद पिछड़ा आबादी उसके समर्थन में खड़ी होगी।

वैसे राज्य में करीब 34 प्रतिशत आदिवासी समुदाय के लोग हैं, जबकि बारह प्रतिशत हिस्सेदारी अनुसूचित जातियों की है। राज्य में करीब चार फीसद आबादी ही सवर्ण है। कांग्रेस को लगता है कि जाति जनगणना की राजनीति, मुख्यमंत्री का चेहरा और मुख्यमंत्री द्वारा चलाई जा रही योजनाएं उसे एक बार फिर जीत दिलाएंगी।

हालांकि बीजेपी ने भी धान के कटोरे पर कब्जे के लिए अपने हरावल दस्ते के तकरीबन सारे तीर छोड़ रखे हैं। चुनावी मैदान में कोई कसर बाकी ना रहे, इसलिए पार्टी ने अपने चार मौजूदा सांसदों को मैदान में उतार दिया है। पार्टी ने सरगुजा से सांसद और केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह को भरतपुर- सोहनत तो रायगढ़ से सांसद गोमती साय को पत्थल गांव से टिकट दिया है।

इसके अलावा बिलासपुर सांसद अरुण साव को लोरमी से प्रत्याशी बनाया गया है जो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। साथ ही सांसद विजय बघेल को पाटन से कैंडिडेट बनाया गया है। बीजेपी के सांसदों को मैदान में उतारे जाने की कांग्रेस ने खिल्ली भी उड़ाई है। उसका कहना है कि बीजेपी को लग रहा है कि वह हार रही है, इसलिए उसने अपने सांसदों को मैदान में उतारा है। बीजेपी की ओर से रमन सिंह पूरी ताकत झोंके हुए हैं। ऐसा लगता है कि वे एक बार फिर सत्ता तक पहुंच सकते हैं।

वैसे तो केंद्रीय स्तर पर विरोधी दलों ने भाजपा की अगुआई वाले गठबंधन के विरोध में इंडी एलाएंस बना रखा है। इंडी गठबंधन का एक हिस्सा आम आदमी पार्टी भी है। इस हिसाब से होना यह चाहिए था कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ तालमेल करके चुनाव लड़ती। लेकिन लगता नहीं कि छत्तीसगढ़ में आम आदमी और कांग्रेस तालमेल के साथ चुनाव लड़ने जा रही हैं। वैसे भी जिस तरह आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं, उससे साफ है कि वह राज्य में जमीन चुनावी जमीन खोज रही है।

जिस तरह वह पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में अपनी ताकत लगाए हुए है, उससे लगता है कि पार्टी अपने दम पर अपना जनाधार तैयार कर रही है। मैदान में बीएसपी भी है। हालांकि उसका कांग्रेस से ना तो राष्ट्रीय स्तर पर, न ही कहीं और गठबंधन है। पिछली बार वह दो सीटें जीतने में कामयाब भी रही थी। इसलिए माना जा रहा है कि वह अपने ढंग से चुनाव लड़ना इस बार भी जारी रखेगी। वैसे यह तय है कि कांग्रेस विरोधी वोटों की बजाय ये दोनों दल कांग्रेस के ही वोट बैंक में सेंध लगाएंगे। लेकिन कांग्रेस छत्तीसगढ़ को लेकर बहुत आश्वस्त नजर आ रही है।

माना जा रहा है कि जिन 18 विधायकों का टिकट कांग्रेस ने काटा है, वे अपने प्रभाव वाले इलाकों में भितरघात कर सकते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस बात से आश्वस्त हैं कि वे विधायक कुछ खास नहीं बिगाड़ पाएंगे। उनका तर्क है कि जिन विधायकों का कामकाज अच्छा नहीं रहा, उनके ही टिकट काटे गए हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आश्वस्त नजर आ रही है। उसका आत्मविश्वास कायम है। हालांकि ऐसा आत्मविश्वास पिछली बार रमन सिंह को भी था। लेकिन जब ईवीएम मशीनों को खोला गया तो कमल का फूल नहीं खिल पाया और हाथ मजबूत बनकर उभरा।

इसलिए कांग्रेस को सचेत रहना होगा। क्योंकि उनका पाला नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी से पड़ा है। दोनों ही नेता चुनाव जीतने के लिए मेहनत करने और दांव लगाने में पीछे नहीं रहते। कांग्रेस के लिए एक संकट यह है कि अतीत में उसके मुख्यमंत्री टीएस सिंह देव गुस्से में रहे हैं। उसकी वजह से कांग्रेस समर्थक एक वर्ग उदासीन रह सकता है। क्योंकि सिंहदेव पूर्व राजपरिवार से हैं और उनका भी प्रभाव है। कांग्रेस बार-बार रमन सिंह के वंशवाद को उछाल रही है। लेकिन अतीत में जिस तरह भूपेश बघेल के भांजे को लेकर आरोप लगते रहे हैं, उससे कांग्रेस असहज हो सकती है और बीजेपी इसे उठा भी रही है।

कांग्रेसी राज में कुछ अधिकारियों पर रिश्वतखोरी के आरोप लगे, उनके यहां छापे भी पड़े। उसकी वजह से चुनाव अभियान तेज होने पर पार्टी को जवाब देना मुश्किल हो सकता है। कांग्रेस को इस तथ्य की ओर भी ध्यान देना होगा। वैसे बीजेपी भी पीछे नहीं रहने वाली है। वह अपनी पूरी ताकत झोंकेगी। यह भी तय है कि इस बार बीएसपी भी अपनी पिछली बार की सीटों को बढ़ाना चाहेगी। अगर उसकी सीटें बढ़ीं और विधानसभा में ऐसी स्थिति बनी कि उसके समर्थन से सरकार बने तो वह कांग्रेस की बजाय बीजेपी को चुनना ज्यादा पसंद करेगी।

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