भारत में आ रहे घुसपैठिए और हमारी सरकार

भारत में आ रहे घुसपैठिए और हमारी सरकार

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन में घुसपैठ की समस्या के जिक्र के पीछे गहरे सियासी संदेश छिपे हैं। प्रधानमंत्री ने घुसपैठियों पर लगाम लगाने के लिए ‘हाई पावर डेमोग्राफी मिशन’ शुरू करने का ऐलान करके NRC के जिन्न को बाहर निकाल दिया है। प्रधानमंत्री मोदी का ये कहना कि, ‘सीमावर्ती इलाकों में डेमोग्राफी बदल रही है और हम अपना देश घुसपैठियों के हवाले नहीं कर सकते’, साफ संकेत देता है कि भाजपा अब RSS के एजेंडे को नये तेवरों के साथ लागू करने जा रही है।

बिहार विधानसभा चुनाव प्रक्रिया के दौरान SIR को लेकर छिड़ी तकरार के बीच लाल किले से घुसपैठ का मुद्दा उठाए जाने के गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। बिहार में SIR प्रक्रिया के दौरान मतदाता सूची में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल जैसे देशों के विदेशी नागरिकों के नाम मिलने का दावा भाजपा कर रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घुसपैठ को डेमोग्राफी चेंज किए जाने की साजिश बताकर दो माह बाद बिहार और अगले साल की शुरुआत में पश्चिम बंगाल और असम में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण का नया मॉडल पेश कर दिया है।

घुसपैठ की समस्या को मुद्दा बनाकर ध्रुवीकरण की कोशिश करना भाजपा की कोई नई सियासी जुगतबाजी नहीं है। पिछले साल भाजपा ने झारखंड में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की ओर से आदिवासियों का हक छीने जाने को प्रमुख मुद्दा बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि भाजपा को झारखंड में सत्ता तो नहीं मिली लेकिन वो अवैध घुसपैठ को दूसरे प्रभावित राज्यों में भी चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयोग जारी रखना चाहती है।

बिहार में चल रहा विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कार्यक्रम अवैध विदेशी नागरिकों से वोटिंग पावर छीनने की एक कवायद के रूप में ही देखा जा रहा है। गृहमंत्री अमित शाह खुद 8 अगस्त को सीतामढ़ी की सभा में कह चुके हैं कि, ‘जो भारत में नहीं जन्मा, हमारा संविधान उसे भारत में वोट देने का अधिकार नहीं देता है।’ उन्होंने आरोप लगाया था कि विपक्ष SIR का इसीलिए विरोध कर रहा है क्योंकि घुसपैठिए उसका वोट बैंक हैं। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से घुसपैठ का मुद्दा उठाकर SIR को ‘हाई पावर डेमोग्राफी मिशन’ के रूप में नया रूप देने का दांव चला है।

भाजपा की बिहार के बाद पश्चिम बंगाल और असम में होने वाले चुनाव में भी अवैध घुसपैठ को एजेंडे के तौर पर स्थापित करने की पूरी तैयारी दिख रही है। भाजपा की कोशिश TMC और कांग्रेस को अपनी पिच पर खिलाने की है। इन दोनों राज्यों में पहले से ही ‘आबादी के असंतुलन’ का मुद्दा गरमाया हुआ है। NRC को लेकर दोनों ही राज्यों में भाजपा और विपक्ष के बीच तीखी तकरार चल रही है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी NRC के बाद अब SIR को केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की साजिश बताते हुए इसे भी पश्चिम बंगाल में लागू नहीं करने का ऐलान कर चुकी है। जाहिर है कि केंद्र ने ‘हाई पावर डेमोग्राफी मिशन’ का दांव चलकर पश्चिम बंगाल में टकराहट का नया मोर्चा खोल दिया है।

लेकिन हैरानी की बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये पता लगने में 11 साल लग गए कि अवैध घुसपैठ की वजह से उनके देश की डेमोग्राफी बदल रही है। उन्हें इतने साल बाद ये बात समझ में आई कि, ‘घुसपैठिए मेरे देश के नौजवानों की रोजी रोटी छीन रहे हैं। ये घुसपैठिए मेरे देश की बहन बेटियों को निशाना बना रहे हैं, जो बर्दाश्त नहीं होगा।’

लेकिन सवाल उठता है कि सीमा से होने वाली घुसपैठ को रोकने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? ये घुसपैठिए अब अगर सीमावर्ती इलाकों के अलावा देश के अंदरूनी इलाकों तक में अपना ठिकाना बना चुके हैं, तो जिम्मेदार कौन है? सियासी दलों की ओर से इनकी घुसपैठ को वैधानिक दर्जा दिला कर अपना वोट बैंक बनाने का सभी दस्तावेजी इंतजाम किया जा चुका है। अब जबकि इनकी पहचान घुसपैठिए की बजाए ‘वोट बैंक’ के रूप में परिवर्तित हो गई है, भाजपा को इससे होने वाले सियासी नुकसान की चिंता सता रही है।

सब कुछ लुटा कर होश में आए तो क्या किया।

 

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