International Yoga day: भगवान शिव के पश्चात ऋषि-मुनियों ने योग को अपनाया,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय संस्कृति में योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। योग शब्द संस्कृत के युज से बना है। युज का अर्थ है शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों को एकत्रित करना। योग साधक को उसकी आत्मा से जोड़ता है। योग के द्वारा साधक अपनी मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों को एकत्रित कर लेता है। योग का संबंध शरीर एवं मन दोनों से है। यह अध्यात्म से भी जुड़ा है। योग के आठ अंग हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि। योग एक कला, साधना एवं विद्या है। योग की चार विधियां हैं, जिनमें कर्म योग, भक्ति योग, राज योग एवं ज्ञान योग सम्मिलित हैं।

योग अति प्राचीन है। मान्यता है कि जब सभ्यता ने जन्म लिया, तब योग का भी जन्म हुआ। योग एक प्राचीन विद्या है। कैलाश पर निवास करने वाले भगवान शिव को आदि योगी एवं आदि गुरु माना जाता है। भगवान शिव के पश्चात वैदिक काल के ऋषि-मुनियों ने योग को अपनाया। उन्होंने इसका संरक्षण किया था तथा इसके साथ-साथ इसका प्रचार-प्रसार भी किया। भगवान श्रीकृष्ण योगराज माने जाते हैं। वेदों, उपनिषदों, महाभारत एवं भगवद्‌गीता में भी योग का उल्लेख है। श्रीमद् भगवद्गीता में कहा गया है-

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।

सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।

अर्थात हे धनंजय ! आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित होकर तुम कर्म करो। यह समभाव ही योग कहलाता है।

मध्य युग में पतंजलि ने योग को सुव्यवस्थित रूप प्रदान करके इसका प्रचार- प्रसार किया। इसके पश्चात विभिन्न पंथों ने योग का विस्तार किया तथा इसका प्रचार- प्रसार करते हुए इसे लोकप्रिय बनाया। इनमें सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ, वैष्णव एवं शाक्त पंथ आदि सम्मिलित हैं।

गीतोपदेश में भगवान श्रीकृष्ण ने पांडव पुत्र अर्जुन को विस्तार से योग का महत्व बताया। उन्होंने कर्मयोग, भक्तियोग एवं ज्ञानयोग का वर्णन करते हुए अर्जुन से कहा-

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।

विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।

अर्थात् हे अर्जुन! मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।

इस श्लोक से योग की महत्ता का पता चलता है।

सिन्धु घाटी की सभ्यता से प्राप्त वस्तुओं से पता चलता है कि उस समय भी लोग योग करते थे। हड़प्पा एवं  मोहनजोदड़ो में खुदाई में योग मुद्राओं वाली वस्तुएं प्राप्त हुईं। इसका अर्थ है कि भारत में हजारों वर्षों से लोग योग करते आ रहे हैं।

वास्तव में योग भारत की अमूल्य धरोहर है, जो उसने विश्व को प्रदान की है। योग मनुष्य के तन एवं मन दोनों को स्वस्थ रखता है। योग करने से जहां मन- मस्तिष्क को शान्ति प्राप्त होती है, वहीं इससे शरीर भी स्वस्थ रहता है। देश के महापुरुषों ने योग को अति आवश्यक बताते हुए इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला है।

वास्तव में योग हमारे मन- मस्तिष्क को स्थिरता प्रदान करता है, शान्ति प्रदान करता है, धैर्य प्रदान करता है। योग मनुष्य के आत्मबल में वृद्धि करता है, उसका आत्मविश्वास बढ़ाता है। आज के तनाव के युग में योग और भी महत्वपूर्ण एवं उपयोगी हो जाता है। हमें अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ समय योग के लिए भी अवश्य निकालना चाहिए। 24 घंटे में एक घंटा स्वयं के लिए अर्थात शरीर के लिए देना चाहिए। करे योग रहे निरोग।

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