लौह पुरुष ने अंग्रेजों को लगाई थी फटकार.

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सरदार पटेल की जन्म जयंती.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

(15 दिसंबर, 1946 को सर स्टैफोर्ड क्रिप्स को लिखा गया पत्र). अपने पिछले पत्र में मैंने आपको यह बतलाने की थोड़ी कोशिश की थी कि हम लोगों पर यहां कितना दबाव डाला जा रहा है। उसके बाद से एक के बाद एक घटनाएं होती रहीं और अंतत: हम लोगों को विचार-विमर्श के लिए लंदन आमंत्रित किया गया था। इसका चरमोत्कर्ष तो तब हुआ जब जवाहर लाल विदीर्ण हृदय के साथ वापस लौटे।

जब निमंत्रण (लंदन के लिए) आया तो हम लोगों की पहली सहज प्रतिक्रिया यह थी कि इसे स्वीकार न किया जाए। किंतु हम लोगों के टेलीग्राम के प्रत्युत्तर में प्रधानमंत्री की अपील और उनके आश्वासन से पं. नेहरू के मन में यह भावना जगी कि निमंत्रण को अस्वीकार करना अशिष्टता होगी। वह सद्भावना और सहानुभूति लिए पूर्ण आशा के साथ भारत से गए, परंतु दुखी और निराश लौटे। अब वह अपनी गलती और निमंत्रण स्वीकार करने से हुई क्षति को महसूस करते हैं।

हम लोग आपकी वहां की कठिनाइयों को अच्छी तरह समझते हैं। परंतु मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि हम लोगों की यहां की कठिनाइयों के बारे में आप लोगों को बहुत कम ज्ञान है। आपने लीग के शिष्टमंडल को उस समय बुलाया, जब यह महसूस किया जा रहा था कि हिंसा का खेल दोनों पार्टियां खेल सकती हैं और नरम स्वभाव वाले हिंदू भी, निराश किए जाने पर, कट्टर मुसलमानों की तरह उतने ही हिंसक तरीके से प्रतिकार कर सकते हैं। ठीक उसी समय जब समझौते का अवसर आया, जिन्ना को निमंत्रण मिला और वह एक बार फिर मुसलमानों को यह समझा सके कि वह कष्ट हिंसा पैदा करके और रियासत पा सकते हैं।

मुझे विश्वास है कि सुधीर (घोष) ने लंदन वापस पहुंचकर यहां जो हुआ, उसका विवरण आपको अवश्य दिया होगा और मुझे फिर विस्तार से उन विवरणों को लिखकर आपको परेशान करने की आवश्यकता नहीं है। परंतु मैं इतना ही कहूंगा कि जब ‘सीधी कार्रवाई का दिन’ मुसलिम लीग के द्वारा निश्चित किया गया था और जब प्रदर्शन के लिए 16 अगस्त का दिन तय किया गया तो यदि कड़ी कार्रवाई की गई होती अथवा उसकी इजाजत दी गई होती तो इतनी बड़ी संख्या में लोगों की हत्याएं और संपत्ति का इतना विनाश नहीं होता तथा ऐसी उत्तेजक घटनाएं नहीं घटतीं। यहां वाइसराय ने इस संबंध में विपरीत दृष्टिकोण रखा और ‘कलकत्ते की भीषर्ण हिंसाओं’ के बाद से उनकी प्रत्येक क्रिया मुसलिम लीग को प्रोत्साहित करने वाली तथा हम लोगों को शांत करने के लिए दबाव बनाने वाली रही।

लंदन में व्यवस्था हम लोगों के विरुद्ध थी और मैं नहीं जानता कि वक्तव्यों और अनुवर्ती वाद-विवाद से जो कुचेष्टाएं की गई हैं, उनका कोई अनुमान उन लोगों को है या नहीं। अत्यधिक कठिनाई से, अपने सम्मिलित प्रयासों के द्वारा हम लोगों ने इंग्लैंड और भारत के बीच सेतु का निर्माण किया था और आप मेरे योगदान को जानते हैं। मुझे लिखते हुए खेद है कि ब्रिटेन की सत्यनिष्ठा के बारे में विश्वास और भरोसे की भावना का, जिसे हम लोगों के समझौते के द्वारा निर्मित किया गया था, बड़ी तेजी से क्षय हो रहा है और इस सेतु में दरार पड़ने या इसके गिरने की स्थिति आ गई है।

आपकी व्याख्या का अर्थ है कि बंगाल के मुसलमान असम के लिए संविधान का प्रारूप तैयार कर सकते हैं। यह आश्चर्यजनक है! क्या आप समझते हैं कि ऐसा वीभत्स प्रस्ताव असम के हिंदुओं द्वारा स्वीकार कर लिया जाएगा खासतौर से बड़ी संख्या में जबरदस्ती कराए गए धर्म-परिवर्तन, अग्निकांड, लूटपाट और बलपूर्वक की गई शादियों के बाद आपकी इस व्याख्या पर जोर दिए जाने के कारण लोगों में उत्पन्न नाराजगी और क्रोध का अंदाजा आप नहीं लगा सकते।

यदि आप समझते हैं कि असम को बंगाल की प्रधानता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जा सकता है तो जितनी जल्दी आप इस भ्रम से छुटकारा पा जाएं उतना ही बेहतर होगा। हम सिक्खों को संतुष्ट करने के लिए क्या कर सकते हैं, जिनके साथ निश्चित रूप से अन्यायपूर्ण व्यवहार हुआ है। यदि वे असम के लिए एक ऐसा संविधान तैयार करते हैं, जिससे निकल पाना असम के लिए असंभव हो तो उसके लिए आपके वक्तव्य में क्या उपाय है?

आप जानते हैं कि 77 साल की उम्र में गांधी जी अपनी सारी शक्ति पूर्वी बंगाल में बरबाद हो चुके घरों में लगा रहे हैं और खोई हुई लड़कियों को ढूंढ़ने की कोशिश करने के साथ-साथ उन लोगों को वापस अपने मूल धर्म में लाने का प्रयास कर रहे हैं, जिनका बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन कर दिया गया है। परंतु वह अत्यधिक कठिनाइयों के बीच कार्य कर रहे हैं और मुझे आशंका है कि वह इस प्रभावशून्य कार्य में अपना जीवन समाप्त कर लेंगे। वह एक बड़े ही आक्रामक वातावरण से घिरे हुए हैं।

इन परिस्थितियों में वहां उनकी मृत्यु हो जाने की स्थिति में क्या होगा, यह कोई नहीं कह सकता। मैं उसके परिणामों के बारे में सोचकर कांप जाता हूं। ऐसी स्थिति में संपूर्ण भारत की नाराजगी और क्रोध केवल मुसलमानों के विरुद्ध ही नहीं होगा, बल्कि काफी हद तक अंग्रेजों के विरुद्ध भी होगा।

बहस के तुरंत बाद लंदन में जिन्ना ने जो कहा, उसे आपने अवश्य देखा होगा। वह पाकिस्तान में विश्वास करते हैं और उन्हें जो कुछ प्रदान किया जा रहा है, उन सबका उपयोग इस उद्देश्य के लिए भारोत्थापक (लीवर) के रूप में किया जाना है। आप चाहते हैं कि हम उनके इस पागलपन भरे स्वप्न को साकार करने में मदद करें? इस तनाव की घड़ी में आपको लिखते हुए मुझे खेद है, किंतु इस पूरे मामले में मैं दुखी महसूस करता हूं। आप जानते हैं कि जब गांधी जी हम लोगों के समझौते का दृढ़ता से विरोध कर रहे थे, तब मैंने इसके पक्ष में अपनी शक्ति लगा दी थी। आपने मेरे लिए एक बड़ी ही अप्रिय स्थिति पैदा कर दी है। यहां हम सभी महसूस कर रहे हैं कि हमारे साथ धोखा हुआ है।

समाधान अब काफी मुश्किल हो गया है, बल्कि असंभव हो गया है। समझौता तभी हो सकता है जब बाहरी हस्तक्षेप न हो और पार्टियों को अकेला छोड़ दिया जाए। वायसराय हम लोगों को शांति से नहीं रहने देंगे। वह और उनके सभी सलाहकार लीग के समर्थक हैं। हम लोगों को उनके बीच काम करना है। यह एक असंभव स्थिति है, किंतु मैं नहीं जानता कि इस विषय में आप कुछ कर सकते हैं।

आशा है, आप स्वस्थ होंगे। 

भवदीय,

वल्लभभाई पटेल

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