क्या अध्यात्म पर भौतिकता भारी पड़ रहा है?
बिजली कटौती एक मुद्दा बन गई है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हमारे बिहार के एक जिले सीवान नगर में त्योहारों की धूम है। भक्ति, शक्ति व भावना के साथ श्रद्धालुओं का इन अवसरों पर जमावड़ा होता है। अखाड़ा की परिधि में यह यात्रा संपन्न होती है, जो नगर के विभिन्न मुहल्लों से आती है और अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचती है। प्रत्येक यात्रा दो दिन होती है। पहले रात में डागा यानी ढोल की थाप पर सांस्कृतिक जुलूस निकाली जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में गवांरा कहा जाता है। फिर एक दिन के विश्राम के बाद पूरे दिन अखाड़ा पूरे दलबल के साथ भव्य यात्रा का रूप लेते हुए निकलती है। यह वर्ष में एक बार होता है। यह कब से प्रारंभ हुआ इसके बारे में प्रमाण नहीं है, परन्तु डेढ़ सौ वर्षो से यात्रा निर्वाण रूप से हो रही है। इसके पीछे मूल तथ्य है कि अपनी धार्मिक भावना व परंपरा के अनुसार संस्कृतिक झांकी का प्रदर्शन किया जाए। समय के साथ यह बदलता रहाहै। जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ और कोई कारणों से यह उमंग व उन्माद के केंद्र में आ गया।
अखाड़ा यात्रा को लेकर हो रही कठिनाई।
पिछले कुछ वर्षों से यात्रा को लेकर कठिनाई हो रही है। अपने नगर सहित जिले में 24 घंटे में से निश्चित रूप से 20 से 22 घंटे बिजली की निर्बाध आपूर्ति हो रही है। व्यक्ति ने अपने सुख सुविधा के लिए कई बिजली चालित उपकरण एवं यंत्र को लगा रखा है। अखाड़ा यात्रा के समय लगभग 12 घंटे बिजली काट दी जाती है। मुद्दा यह है कि हम कुछ ही वर्षों में इस भौतिक उपकरण के इतने अभ्यास हो चुके हैं कि इसके बिना जीना दुभर हो गया है। बिजली की कटौती को लेकर सोशल मीडिया में हजारों प्रकार की टिप्पणी देखने- पढ़ने को मिलती है, क्योंकि आज भी बिजली के तार सड़क के बगल में लगे खम्भों पर से होकर गुजरती है, जिसकी वजह से किसी भी अप्रिय घटना को टालते हुए प्रशासन बिजली आपूर्ति को कुछ घंटे के लिए बाधित कर देता है। ऐसे में जनता अपने अध्यात्म को अदृश्य करके भौतिकता को प्राथमिकता देते हुए प्रशासन से इसके वैकल्पिक उपाय करने को कह रही है। इसके लिए बिजली के तारों को जमीन के नीचे से यानी अंडरग्राउंड होकर बिछाना चाहिए। ऐसा करने के लिए बड़े-बड़े महानगरों का उदाहरण दिया जा रहा है। परन्तु यक्ष प्रश्न यह है की क्या अध्यात्म पर भौतिकता ने आवरण चढ़ा दिया है, महज कुछ ही वर्षों में निर्बाध बिजली की आपूर्ति ने हमारे मानसिकता को बदल दिया है।
प्रशासन का धर्म संकट।
प्रशासन जनता की बातों को लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ है। वह किधर जाए किसकी सुने। परन्तु जो आदेश राजधानी से आएगा वही होगा। प्रशासन को भी इस अखाड़ा यात्रा को सुगमतापूर्वक करने के लिए महीनों से तैयारी करनी पड़ती है। अर्धसैनिक बल,बिहार विशेष पुलिस दस्ता एवं अन्य जिलों से पुलिस व जवान बुलाए जाते हैं, क्योंकि सीवान का वातावरण पिछले कुछ वर्षों से अत्यंत संवेदनशील हो गया है। सांप्रदायिक सौहार्द को लेकर प्रशासन बेहद चौकन्ना होता है क्योंकि विगत वर्षों में कई घटनाएं प्रशासनिक चाक-चौबंद में पैबंद लगाया है।
नगर की हृदयस्थली बड़ी मस्जिद को लक्ष्मण रेखा मानते हुए पूरा प्रशासन क्षेत्र को अदृश्य रूप से सील कर देता है। प्रशासन के आला अधिकारी एवं नगर के तथाकथित प्रबुद्ध जन यहां बनाए गए अस्थाई शिविर में बैठकर अखाड़ा यात्रा के जमवाड़ा का संचालन करते है। प्रशासन की तीसरी आंख सीसीटीवी कैमरे एवं ड्रोन से भी निगरानी रखी जाती है। किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए तंत्र पूरी व्यवस्था करता है।
जनता की प्रतिक्रिया।
हमारा समाज उमंग में नहीं उन्माद में विश्वास करता है, उसे घट रही अखाड़ा यात्रा में नहीं, इसके कौतूहल में आनंद आता है। मेला होंगे, पूरे नगर से लोग जुटेंगे लेकिन कुछ नया क्या होगा, इसकी प्रतीक्षा सभी को होती है। परन्तु नगर की जनता इस यात्रा में उतनी रुचि नहीं दिखाती, जितनी दिखानी चाहिए। महिलाओं एवं किशोर बच्चों की भागीदारी न के बराबर होती है। यह कहा भी जाता है कि मेले में नहीं जाना चाहिए क्योंकि यहां हुड़दंग होता है चोट लग जाती है एवं कई प्रकार की दुर्घटनाएं होती हैं। जनता छुट्टी का दिन मानकर घर में आराम करती है या सीवान से कई कार्यो को लेकर बाहर चली जाती है।
फिर इतनी जनसंख्या मेले में कहां से आती है? तो यह जमवाड़ा नगर से सटे गांव की होती है जो अखाड़ा यात्रा देखने आते हैं और इनकी इतनी आबादी होती है कि वातावरण एकदम से उत्साह-उमंग एवं पर्व में बदल जाता है, यह पिछले कई वर्षों से देखने में आ रहा है।
बहरहाल यक्ष प्रश्न यह है कि बिजली को लेकर हमारी मानसिकता को भौतिकता ने आच्छादित कर दिया है। हम अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित उमंग व उत्साह को भूलते जा रहे हैं। अखाड़ा यात्रा हमारे समृद्ध सांस्कृतिक समाज की प्रतिकृति है। इसे किसी भी परिस्थिति में निर्बाध रूप से प्रवाहमय रखना हम सब की जिम्मेदारी है। बिजली जैसी भौतिकता के आगे अपने आध्यात्मिकता को छोड़ना अच्छी बात नहीं है।
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