क्या इंटरनेट हमसे बहुत कुछ छुपा रहा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

इंटरनेट मानवजाति के इतिहास में एक जगह पर संजोया गया सबसे बड़ा ज्ञान का भंडार है। लेकिन कहीं उसका विशाल आकार ही तो एक बाधा नहीं बन गया है? इसमें जंक के पहाड़ के नीचे मूल्यवान डाटा छुपा हो सकता है। मान लीजिए आप इंटरनेट पर किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में सर्च करना चाहते हैं। ऐसे में इंटरनेट उस व्यक्ति की जो छवि प्रस्तुत करता है, वह सच्ची है या मैनिपुलेट की गई है? ये प्रश्न नए नहीं हैं।

मैं इनके बारे में तब से सोच रहा हूं, जब से डिजिटल वर्ल्ड को कवर कर रहा हूं। और जैसे-जैसे इंटरनेट बदलता जाता है, जवाब भी बदलते रहते हैं। टाइम्स की रिपोर्टर कारेन वीज ने एक सीईओ के एब्यूसिव व्यवहार के बारे में पिछले सप्ताह एक स्टोरी की थी। उन्होंने बताया कि उस व्यक्ति ने अपने सेलेब्रिटी-स्टेटस का फायदा उठाकर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया था। इस स्टोरी के लिए वीज ने एक दर्जन से अधिक महिलाओं से बात की थी।

वीज इससे पहले भी वर्ष 2015 में उस सीईओ के बारे में स्टोरी कर चुकी थीं, जो तब काफी चर्चित हुई थी और उस पर बहुत टिप्पणियां आई थीं। लेकिन तब से अब तक वह व्यक्ति ट्विटर पर लाखों फॉलोअर जुटा चुका था और उसका ऑनलाइन-व्यक्तित्व बहुत बड़ा हो गया था।

धीरे-धीरे उसके बारे में सामने आने वाली बुरी खबरें पृष्ठभूमि में चली गईं। यह कैंसल-कल्चर के विपरीत था। जिस प्रकार सोशल मीडिया किसी भी चीज को नष्ट कर सकता है, वह समय के साथ किसी व्यक्ति के स्याह अतीत को बहुत गहरे में दफना भी सकता है। लेकिन इंटरनेट को तो ऐसे काम नहीं करना चाहिए।

गूगल, ट्विटर, फेसबुक जैसी बड़ी टेक-कम्पनियों ने अलग-अलग तरीकों से इसे अपना मिशन बना लिया है कि ऑनलाइन डाटा को कैसे प्रसारित और संगठित करना है। लेकिन जब वीज ने 2015 में उस सीईओ के बारे में स्टोरी की थी, तो तब से अब तक उसकी फॉलोइंग में बढ़ोतरी के बाद उस स्टोरी को और हाईलाइट होना था, उसे ओझल नहीं हो जाना था।

ऐसे में यह चिंताजनक सवाल उठता है कि आज यह कितने बड़े पैमाने पर हो रहा होगा? इस सवाल का जवाब देना नामुमकिन है, क्योंकि इंटरनेट आपसे क्या-क्या छुपा रहा है, इसकी सूची नहीं बनाई जा सकती। इसे हमें इन्फॉर्मेशन-बरीइंग कहना चाहिए, यानी सूचनाओं को ठिकाने लगाना। कुछ कारण हैं, जो बताते हैं कि यह कवायद लगातार चल रही है। जैसे कि तात्कालिकता का रुझान। गूगल का फोकस वर्तमान की इन्फॉर्मेशन को हाईलाइट करने पर है।

मैं कई वर्षों से इस बात का विरोध कर रहा हूं कि गूगल की एल्गोरिदम हाल ही में पोस्ट किए गए कंटेंट को ज्यादा सपोर्ट करती है, बनिस्बत अतीत के कंटेंट के- फिर भले ही अतीत वाला कंटेंट कहीं बेहतर हो। शायद गूगल को लगता है कि कोई भी बासी खबरें नहीं पढ़ना चाहता। अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सर्च करना चाहते हैं, जिसकी ऑनलाइन-उपस्थिति बहुत एक्टिव है और जो बहुत ट्वीट करता है तो परिणाम बहुत अस्पष्ट हो जाते हैं। जरा एलन मस्क को गूगल करके देखें।

आपको उनका विकीपीडिया पेज दिखाई देगा, उनके सोशल मीडिया और कॉर्पोरेट-बायो के लिंक मिलेंगे, उनके बारे में विभिन्न मीडिया-साइटों पर लिखे गए लेखों के इंडेक्स-पेजेस मिलेंगे और मस्क की ताजातरीन गतिविधियों के बारे में खूब सारी सूचनाएं मिलेंगी। लेकिन क्या मस्क जैसे विवादित व्यक्तित्व के लिए यह सच में ही मददगार है कि गूगल उनकी किसी नई गतिविधि के बारे में एक के बाद एक अनेक पेज हमारे सामने खोलता चला जाए?

अगर वह नई गतिविधि बहुत महत्व की न हो तो? मसलन, मस्क के बारे में सर्च करने पर आपको गूगल एक फ्लाइट-अटेंडेंट के साथ उनके द्वारा किए दुर्व्यवहार के बारे में नहीं बताता है, न ही थाइलैंड की एक गुफा में फंसे 12 बच्चों को बचाने वाले व्यक्ति के बारे में मस्क की अभद्र टिप्पणी को प्रदर्शित करता है।

मस्क ने जानबूझकर उन चीजों को छुपाने का प्रयास नहीं किया होगा। लेकिन वे इतने ऑनलाइन रहते हैं कि जब भी वे कुछ नया कहते हैं, पुरानी बात इंटरनेट के मलबे में और गहरे धंस जाती है। लेकिन चीजें तब और बदतर हो जाती हैं, जब न्यस्त स्वार्थों वाली कोई पार्टी इस बात को नियंत्रित करने लग जाती है कि इंटरनेट हमें क्या दिखाएगा और क्या नहीं।

इसे हमें इन्फॉर्मेशन-बरीइंग कहना चाहिए, यानी सूचनाओं को ठिकाने लगाना। यह लगातार हो रहा है। पुरानी बात इंटरनेट के मलबे में और गहरे धंसती चली जाती है, क्योंकि वह नए कंटेंट को सपोर्ट करता है।

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