मणिपुर में शांति बहाल करना केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है-जयराम रमेश

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी के मणिपुर पर दिए बयान को लेकर कांग्रेस के विरोध का स्वर बुलंद हो गया है। पार्टी ने कहा है कि केंद्र सरकार अमेरिकी राजदूत को तलब कर उनके बयान पर कड़ा विरोध जताए और कहे कि मणिपुर में हो रही घटनाएं भारत का आंतरिक मामला है और उसमें अमेरिका की कोई भूमिका उसे स्वीकार नहीं है।

शांति बहाली केंद्र और राज्य की जिम्मेदारी

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा की मणिपुर में शांति बहाल करना केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, उसमें किसी अन्य की भूमिका स्वीकार नहीं की जा सकती है। विदित हो कि मणिपुर में तीन मई से रह-रहकर हिंसक घटनाएं हो रही हैं।

इससे पहले कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि भारत ने बीते समय में विभिन्न मोर्चों पर कई तरह की समस्याओं का सामना किया है, लेकिन आंतरिक मामलों में कभी भी इस तरह के बयान को स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने राजदूत के बयान को भारत के आंतरिक मामले में अमेरिका का हस्तक्षेप बताया।

‘नस्लभेद के चलते US में होते हैं दंगे’

अमेरिका में लाइसेंस मुक्त हथियारों से होने वाली हिंसक घटनाओं का उल्लेख करते हुए तिवारी ने कहा, हमने तो कभी नहीं कहा कि अमेरिका को इस मामले में हमसे सीखना चाहिए। अमेरिका में अक्सर नस्लभेद के चलते हिंसा और दंगे होते हैं, लेकिन भारत ने कभी भी उसे अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाया।

गार्सेटी ने गुरुवार को कोलकाता में मणिपुर में जारी हिंसा पर चिंता जताते हुए उसे भारत का आंतरिक मामला बताया था। उन्होंने कहा था कि अमेरिका वहां शांति के लिए प्रार्थना करता है, लेकिन यह भी कहा था कि भारत अगर समस्या के निदान में किसी भी तरह की मदद मांगेगा तो अमेरिका उसे देने के लिए तैयार है।

अमेरिकी राजदूत ने गुरुवार को कहा था कि भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में काफी विकास हुआ है और विकास के लिए शांति जरूरी है। जब शांति रहती है तब बहुत सारी अच्छी चीजें पैदा होती हैं। गार्सेटी ने मणिपुर के बारे में संवाददाता सम्मेलन में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में यह बात कही थी।

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि मणिपुर का मामला भारत की अंदरूनी चुनौती है और इससे भारत के लोगों को ही संवेदनशीलता और दृढ़ता से निपटना होगा. पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने शुक्रवार (7 जुलाई) को कहा कि अतीत में भारत के आंतरिक मामलों पर किसी अमेरिकी राजदूत की ओर से ऐसी टिप्पणी नहीं सुनी गई जैसी अमेरिका के वर्तमान राजदूत एरिक गार्सेटी ने मणिपुर की स्थिति को लेकर कथित तौर पर की है.

खबरों के मुताबिक, गार्सेटी ने गुरुवार (6 जुलाई) को कोलकाता में कहा था कि मणिपुर में हिंसा और हत्या ‘मानवीय चिंता’ का विषय हैं और अगर अमेरिका से कहा जाता है तो वह स्थिति से निपटने के लिए भारत का सहयोग करने को तैयार है.

जयराम रमेश बोले- यह भारत की चुनौती है…

जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘‘क्या विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिकी राजदूत को तलब करके उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहेंगे कि मणिपुर मामले में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं है? मणिपुर में शांति और सद्भाव वापस लाने की जिम्मेदारी विशेष रूप से केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सिविल सोसाइटी और राज्य के राजनीतिक दलों की है.’’

रमेश ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री चुप हैं और गृहमंत्री निष्फल रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि यहां किसी अन्य देश के लिए कोई अवसर है. यह भारत की चुनौती है और इससे हम भारतीयों को ही संवेदनशीलता और दृढ़ता से निपटना होगा.’’

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने क्या कुछ कहा?

इसको लेकर लोकसभा सदस्य तिवारी ने ट्वीट किया, ‘‘चार दशक के अपने सार्वजनिक जीवन में मैंने कभी नहीं सुना कि अमेरिका के किसी राजदूत ने भारत के आंतरिक मामलों के बारे में इस तरह का बयान दिया हो. हमने पंजाब, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में चुनौतियों का सामना किया और बुद्धिमत्ता के साथ सफलता हासिल की.’’

उनका कहना था कि 1990 के दशक में जब रॉबिन राफेल ने जम्मू-कश्मीर पर बयानबाजी की थी तो कुछ भी कहने से पहले भारत में अमेरिकी राजदूत सजग रहते थे. राफेल अमेरिका की पूर्व राजनयिक हैं जिन्होंने दक्षिण और मध्य एशिया मामलों की जिम्मेदारी संभाली थी.

कांग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने पीएम मोदी पर किया कटाक्ष

कांग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने अमेरिकी राजदूत के कथित बयान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष किया. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘‘मणिपुर हिंसा पर अमेरिकी राजदूत ने कहा है कि यह मानवीय चिंता की बात है. जब हिंसा में बच्चों या व्यक्तियों की मौत होती है तो इसकी चिंता करने के लिए भारतीय होना जरूरी नहीं है. दुख की बात है कि प्रधानमंत्री की ओर से एक बार भी मानवीय चिंता नजर नहीं आई.’’

मणिपुर में मेइती और कुकी समुदायों के बीच झड़पों में 120 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. पहली बार हिंसा तीन मई को तब भड़की जब मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च आयोजित किया गया था.

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