जस्टिस बीआर गवई होंगे देश अगले CJI

जस्टिस बीआर गवई होंगे देश अगले CJI

जस्टिस गवई देश के 51वें CJI होंगे

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने औपचारिक रूप से न्यायमूर्ति बी.आर. गवई Justice  gavai, को अपना उत्तराधिकारी बनाने का प्रस्ताव दिया है। नियुक्ति प्रक्रिया के तहत यह सिफारिश विधि मंत्रालय को भेजी गई है।
न्यायमूर्ति गवई वर्तमान में सीजेआई खन्ना के बाद सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि वो देश के 52वें मुख्य न्यायधीश होंगे। वो 14 मई को CJI के रूप में शपथ लेंगे।
परंपरा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस ही अपने उत्तराधिकारी का नाम सरकार को भेजते हैं। इस बार भी यही प्रक्रिया अपनाई गई है। कानून मंत्रायल ने औपचारिक तौर पर जस्टिस खन्ना से उनके उत्तराधिकारी का नाम पूछा था, जिसके जवाब में उन्होंने जस्टिस गवई का नाम आगे बढ़ाया।

कौन हैं जस्टिस गवई?

जस्टिस गवई को 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। उनका जन्म 24 नवंबर को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वे दिवंगत आर.एस. गवई के बेटे हैं, जो बिहार और केरल के राज्यपाल रह चुके हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज के रूप में उन्होंने 14 नवंबर 2003 को अपनी न्यायिक करियर की शुरुआत की थी। बतौर जज वो मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी के विभिन्न पीठों पर काम कर चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इन अहम फैसलों का हिस्सा थे गवई

  • आर्टिकल 370 हटाए जाने वाले फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की जिन पांच मेंबर वाली संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही थी, उनमें जस्टिस गवई भी थे।
  • राजनीतिक फंडिंग के लिए लाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को खारिज करने वाली बेंच का भी गवई हिस्सा थे।
  • नोटबंदी के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुनवाई करने वाले बेंच में भी वो शामिल थे।
  • जस्टिस गवई ने अपने न्यायिक करियर की शुरुआत 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज के रूप में की थी. 12 नवंबर 2005 को वे स्थायी जज बने. उन्होंने 15 साल से ज़्यादा समय तक मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी में विभिन्न पीठों पर काम किया.

    एक खास बात यह भी है कि वे सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाले केवल दूसरे अनुसूचित जाति (SC) जज हैं. इससे पहले जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन 2010 में सेवानिवृत्त हुए थे.

    महत्वपूर्ण फैसले   

    नोटबंदी पर फैसला: जस्टिस बी.आर. गवई ने 2016 की नोटबंदी योजना को वैध ठहराते हुए बहुमत की राय लिखी थी. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास मुद्रा अमान्य घोषित करने का अधिकार है और यह योजना ‘प्रोपोर्शनैलिटी टेस्ट’ (संतुलन की कसौटी) पर खरी उतरती है.

    बिना प्रक्रिया के बुलडोजर कार्रवाई पर रोक: एक ऐतिहासिक फैसले में उन्होंने कहा कि किसी भी आरोपी की संपत्ति को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के गिराना असंवैधानिक है. उन्होंने साफ किया कि कार्यपालिका (Executive) न तो न्यायाधीश बन सकती है और न ही कानून की प्रक्रिया के बिना तोड़फोड़ कर सकती है.

    इलेक्टोरल बॉन्ड केस: जस्टिस गवई उस पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की संवैधानिकता की जांच की थी. यह मामला राजनीतिक चंदों में पारदर्शिता को लेकर उठी चिंताओं से जुड़ा था.

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