Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
संसदीय विशेषाधिकार की मर्यादा का ध्यान रखें सदस्य–अश्विनी चौबे - श्रीनारद मीडिया

संसदीय विशेषाधिकार की मर्यादा का ध्यान रखें सदस्य–अश्विनी चौबे

संसदीय विशेषाधिकार की मर्यादा का ध्यान रखें सदस्य–अश्विनी चौबे

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार विधानसभा भवन के शताब्दी वर्ष एवं स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में संबोधन के दौरान केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन तथा उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि संसदीय विशेषाधिकार की मर्यादा का पालन सदस्यगण अवश्य करें। केंद्रीय मंत्री श्री चौबे आज बिहार विधान मंडल के सेंट्रल हॉल में “संसदीय विशेषाधिकार और समिति प्रणाली” विषय पर संबोधन कर रहे थे।

केंद्रीय मंत्री उने कहा कि बिहार के वैशाली का लिच्छवी गणराज्य “गणतंत्र” का जन्म स्थान रहा है। हमारे वैदिक ग्रंथ से जानकारी मिलती है कि प्राचीन काल से ही विचार,विमर्श,तर्क और बातचीत को हमेशा प्रधानता दी गई। लोकतंत्र को जीवंत रखने में बिहार की अभूतपूर्व भूमिका रही है और लोकतंत्र यहां के जीवन शैली में रही है।

केंद्रीय मंत्री श्री चौबे ने कहा कि “देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। वहीं बिहार विधान सभा का स्वर्णिम वर्ष पूरा कर अपनी 101वीं वर्षगांठ मना रहा है। दुनिया को लोकतंत्र से परिचय इस धरती से हुआ है। आजादी के 75 साल में भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ें और मजबूत हुई है। यह प्रसंता का विषय है। यह अमृतकाल है। भगवान श्रीराम ने सुशासन का जो मॉडल दिया। आचार्य चाणक्य ने जो राजनीति व राष्ट्र नीति की बात कही है। उसका मूल का आधार जनता का कल्याण है। आज यही वजह है कि मजबूत लोकतंत्र से भारत का मान देश दुनिया में बढ़ा है। ऐसा हम सभी को जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में जो ताकत मिली है, उसका देन है।

हजारों साल पहले हमारे ऋषि-मुनियों ने कहा था:-
सम्-गच्छ-ध्वम् ,
सम्-व-दद्वम् ,
सम् वो मानसि जानताम्।

श्री चौबे ने कहा कि सम्-गच्छ-ध्वम् यानि सभी साथ मिलकर चलें। सम्-व-दद्वम् यानि सभी मिल-जुलकर आपस में संवाद करें और सम् वो मनानसि जानताम् यानि सभी के मन भी आपस में मिले रहें। यह मंत्र लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ों को मजबूती प्रदान करने में सहायक है। मुझे याद है, 1995 में जब जनता जनार्दन के आशीर्वाद से निर्वाचित होकर बिहार विधानसभा में आया था। मुझे प्राइवेट मेंबर बिल्स, नेचर कंजर्वेशन पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी आदि का चैयरमेन रहने का मौका मिला था। मेरा ध्येय था कि ये कमिटी सफेद हाथी बने न रहें।

एक जनप्रतिनिधि के नाते जनता के प्रति हम तभी संवेदनशील हो सकते हैं, जब हम कर्तव्यों के प्रति भी संवेदनशील हो। उ उन्होंने कहा कि मुझे बताते अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि माननीय लोकसभा अध्यक्ष जी के नेतृत्व में बेहतरीन लोक सभा की कार्यवाही हो रही है। बिहार विधानसभा में यह मुझे देखने को मिल रहा है। हाल ही बजट सत्र का पहला चरण की कार्यवाही निर्विघ्नं चला। जब हम जनता के कार्यों के लिए काम करते हैं तो जो हमें संसदीय विशेषाधिकार मिला है।उसका सही सदुपयोग कर पाते हैं जब हम इसका बेजा इस्तेमाल कर सदन के अंदर कार्यवाही को प्रभावित करते हैं तो उसका नकारात्मक असर पड़ता है।

– सदनों का व्यवधान राष्ट्रीय चिंता कभी कभी बन जाता है।

सदन में संवाद की ही उपयोगिता है। इस पर अधिक फोकस रहने की जरूरत है। इसी से सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित होती है, लेकिन कुछ समय से सदन में बाधा डालने, नियमावली को तार-तार करने का चलन बढ़ा है। ऐसा नहीं होना चाहिए, मेरा मानना है कि जो विचार की स्वतंत्रता है वह शोर की स्वतंत्रता में नहीं बदलना चाहिए।
संसद को सर्वोच्च विधायी अधिकार प्राप्त हैं। संसद के अपने विशेषाधिकार हैं। विशेषाधिकार संसद सदस्यों को भी प्राप्त हैं। उसका सदुपयोग होना चाहिए।

विशेषाधिकारों का उद्देश्य संसदीय स्वतंत्रता, प्राधिकार और गरिमा की रक्षा रहा है। संसदीय विशेषाधिकार मूलतः ऐसे विशेष अधिकार हैं जो प्रत्येक सदन को सामूहिक और सदन के सभी सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से प्राप्त होते हैं।

इस तरह ये अधिकार संसद के अनिवार्य अंग के रूप में होते हैं। इन अधिकारों का उद्देश्य संसद के सदनों, समितियों और सदस्यों को अपने कर्तव्यों के क्षमतापूर्ण एवं प्रभावी तरीके से निर्वहन हेतु निश्चित अधिकार और उन्मुक्तियाँ प्रदान करना है। संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 में क्रमशः संसद एवं राज्य विधानमंडल के सदनों, सदस्यों तथा समितियों को प्राप्त विशेषाधिकार उन्मुक्तियों का उल्लेख किया गया है। इस तरह संसदीय विशेषाधिकार का मूल भाव संसद की गरिमा, स्वतंत्रता और स्वायत्तता की सुरक्षा करना है। लेकिन संसद सदस्यों को यह अधिकार उनके नागरिक अधिकारों से मुक्त नहीं करता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!