गुरु से भेंट होना आत्मिक सुख है- मनोज भावुक

गुरु से भेंट होना आत्मिक सुख है- मनोज भावुक

आचार्य की स्मृतियां सदैव जीवंत बनाये रखती है

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अवधेश सर ! …माने श्री अवधेश सिंह, प्राचार्य, जीआईसी, तुर्रा, पिपरी, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश।
उस कॉलेज में पढ़ाई और अनुशासन का नाम ही अवधेश सिंह था। स्टूडेंट थर-थर काँपते थे सर के नाम से ही। सर अंग्रेजी पढ़ाते थे। अब तो रिटायर हो चुके, …कब के। 91 की उम्र हो गई लेकिन फुर्ती, तेजी और बात-बतकही वही है। तेवर वही है।

गाजियाबाद में अपनी छोटी बेटी के पास आये हैं। फोन आया, मुझे याद किये और मैं मिलने चला गया।

मैं सर का स्टूडेंट कभी नहीं रहा। दसवीं हिंडाल्को से करने के बाद कानपुर आ गया बीएनएसडी कॉलेज में। …लेकिन सर से जुड़ा रहा। सर का मेरे बाबूजी ( स्व. रामदेव सिंह, नेताजी) से आत्मीय रिश्ता था। घर आना-जाना था। मेरे ससुर जी ( स्व. प्रभु सिंह ) से भी दोस्ती थी। तो सर मेरे तिलक, शादी और रिसेप्शन में भी आशीर्वाद देने उपस्थित रहे। मेरी पत्नी अनिता सर की स्टूडेंट रही हैं। फिर हम दोनों गए सर से मिलने।

सर की खुशी का ठिकाना नहीं। दुनिया भर की बातें हुईं- बाबूजी से जुड़ी, रेनुकूट, तुर्रा और वहां से निकलकर दुनिया भर में फैले उनके शिष्यों से जुड़ी, उनकी और अपनी। सर बलिया के रहने वाले हैं। बलिया में मेरी बहुत रिश्तेदारी है तो वहां की बातें। रेनुकूट के बलियाटिक काशी चाचा, कुबेर भैया, बच्चा बाबू, ओबरा के सुदामा पाठक जी ……आदि, इत्यादि।

”बतकही बुढ़ापे का सुख होता है। सुख के संसाधनों से भी वह सुख नहीं मिलता जो किसी आत्मीय से बतियाने में मिलता है।” सर का हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, भोजपुरी अनेक भाषाओं पर समान अधिकार है। तो आज सुबह-सुबह अमृतपान किया। न मेरा मन भर रहा था, न सर का। लेकिन कल सुबह की फ्लाइट है। बनारस निकलना है – गाजीपुर लिटरेचर फेस्टिवल के लिए। फेस्टिवल में बीएचयू के सदानंद शाही सर और प्रभाकर सिंह सर भी शिरकत कर रहे हैं।

बातचीत में पता चला कि अवधेश सिंह सर की बेटी मीनाक्षी सिंह बीएचयू और जेएनयू से पढ़ीं हैं। फिर उनकी बातचीत कराया शाही सर और प्रभाकर सर से।

17 को पुनः मिलने और एक लंबी बातचीत रिकॉर्ड करने का वादा करके निकल आया।

रूप ढल गइल त का, धूप चल गइल त का
बूढ़ भइल आदमी, अनुभवी किताब ह.

 

 

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