पुरुष: एक अनकही कहानी

पुरुष: एक अनकही कहानी

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श्रीनारद मीडिया :  लेखक – नवनीत द्विवेदी :

आजकल के इस दौर में जब हर तरफ नारी उत्थान, नारी शिक्षा, नारी का अधिकार, नारी की प्रताड़ना, नारी का अस्तित्व इत्यादि विषयों पर बात करते तर्क-वितर्क करते हुए पुरुष को एक ऐसे स्थान में डाल दिया गया है जहाँ पुरुष का शब्द का अर्थ ही एक ऐसे व्यक्तित्व से होता है जिसमें क्रोध, अहंकार और पशुता भरी हुई है।

पुरुष शब्द की उत्पत्ति ही संस्कृत के “पुर” और “उष” शब्दों से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है वह जो सब कुछ में व्याप्त है या वह चेतना जो विषयों का अनुभव करता है। पुरुष वह व्यक्तित्व होता है जिसको बचपन से अपने ऊपर आश्रित लोगों का रक्षण, भरण, और पोषण करना सिखाया जाता है। पुरुष को पुरुष कहलाने या बनने के लिए अथक परिश्रम करना पड़ता है, क्योंकि उसे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करके एक कठोर और शक्तिशाली व्यक्तित्व बनाना  पड़ता है, जो बिना थके निरंतर परिश्रम करता है और दूसरों की रक्षा करने के लिए धन उपार्जन के लिए और अपने अंदर के मासूम और भावुक हृदय से लड़ने के लिए तैयार रहता है।

 

लेकिन क्या सचमुच पुरुष इतना ही कठोर होता है? नहीं, पुरुष भी एक कोमल और अबोध बालक होता है जो दर्द होने पर रोता है, परिश्रम करने से थकता है और एक ऐसे स्थान की खोज करता है जहाँ वो सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो सके।

जब मैं यह समझने की कोशिश करता हूँ कि पुरुषत्व क्या है, तो मेरे मन में यही आता है कि वह कौन सी अनिवार्यता है जो इस सारे दर्द को पाने की चाहत और संयम, इस दिखावटी तपस्या और जोरदार चुप्पी को जन्म देती है। तो इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि पुरुषत्व रक्षा करने का एक अमूर्त क्रोध है।

समाज में कुछ रूढ़िवादी लोग आधुनिक पुरुषों की कुछ कमियों का उपहास उड़ाते हैं, जैसे सारी शारीरिक श्रम करने में, आंसू रोकने में, और कई कमियाँ। लेकिन सबसे अधिक वो खुद के लिए शोक प्रकट करते हैं क्योंकि उनके अंदर की भावनाओं का नाश हो चुका है।

पुरुष सोचता है कि सुंदरता के सभी वर्णन सिर्फ स्त्री के लिए ही क्यों हैं? नहीं, पुरुष भी सुंदर हैं – उनकी नींद भरी आवाजों में, बिखरे बालों में, उनकी शरद ऋतु जैसी मुस्कानों में। जब वो अपनी प्रेमिका की याद आती है, जब वो दर्शाते हैं कि वो सबकी परवाह करते हैं। पुरुष अपने मजबूत भुजाओं और शांत व्यक्तित्व से सुंदर दिखता है।

पुरुष भी प्रेम करते हैं, और वो पुरुष ही पूर्ण पुरुष होता है जिसके अंदर प्रेम, सम्मान, हर प्रकार की भावनाएं और दूसरों की रक्षा करने का बाहुबल होता है। पुरुष की असली ताकत उसकी भावनाओं को समझने और उन्हें व्यक्त करने में है, न कि सिर्फ शारीरिक शक्ति में।

पुरुष की दुनिया में भी एक अनोखी सुंदरता है, जो उसकी कविताओं में, उसकी संगीत में, उसकी कला में झलकती है। पुरुष की भावनाएं भी उतनी ही गहरी और विविध होती हैं जितनी कि स्त्री की।

आइए, हम पुरुष को एक नए दृष्टिकोण से देखें, जिसमें उसकी भावनाएं, उसकी सुंदरता, और उसकी ताकत को भी पहचाना जाए। तभी हम एक सच्चे अर्थ में समानता और सम्मान की दिशा में कदम बढ़ा पाएंगे।

 

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