मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का प्रसार किया जाना चाहिए.

मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का प्रसार किया जाना चाहिए.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वैश्विक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं जिस गति से बढ़ती जा रही हैं, उस स्तर पर उनके समाधान के प्रयास नहीं हो रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में 194 सदस्य देशों में केवल 51 प्रतिशत ने सूचित किया है कि उनकी नीतियां या योजनाएं अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप हैं. यह आंकड़ा 80 प्रतिशत के निर्धारित लक्ष्य से बहुत कम है.

पिछले वर्ष से अब तक दुनिया का बड़ा हिस्सा कोरोना महामारी के संक्रमण तथा उसकी रोकथाम के लिए लिए पाबंदियों के असर से जूझ रहा है. इस महामारी ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को भी गहरे तौर पर प्रभावित किया है. ऐसे में इस ओर अधिक ध्यान देना आवश्यक हो गया है. भारत समेत अनेक देशों में मानसिक समस्याओं से निपटने के लिए कोशिशें हो रही हैं, पर वे अपर्याप्त हैं. यह संतोषजनक है कि दुनियाभर में महामारी के दौर के बावजूद आत्महत्या की घटनाओं में 10 प्रतिशत की कमी आयी है, पर केवल 35 देश ही ऐसे हैं, जहां इन्हें रोकने के लिए विशेष रणनीति या योजना लागू है.

आत्महत्याओं की बड़ी संख्या इंगित करती है कि अवसाद, चिंता और तनाव किस हद तक वैश्विक जनसंख्या को अपनी जकड़ में ले चुके हैं. हमारे देश में स्वास्थ्यकर्मियों तथा अस्पतालों की कमी है. मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह अत्यधिक चिंताजनक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, भारत में इस क्षेत्र में प्रति एक लाख आबादी पर मनोचिकित्सक 0.3, मनोवैज्ञानिक 0.07, नर्स 0.12 तथा सामाजिक कार्यकर्ता 0.07 ही हैं, जबकि औसतन तीन से अधिक मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की उपलब्धता होनी चाहिए.

किसी न किसी स्तर पर आबादी का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा किसी मानसिक समस्या से ग्रस्त हो सकता है. साल 2017 में प्रकाशित वैश्विक बीमारी की एक रिपोर्ट में तो कहा गया था कि हर सात में एक भारतीय मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहा है. स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दुनिया की 36.6 प्रतिशत आत्महत्याएं भारत में घटित होती हैं. औरतों और किशोर लड़कियों की मौत का यह सबसे बड़ा कारण है.

विभिन्न कोशिशों के बावजूद हमारे देश में बीते कुछ दशकों में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी ही हैं. मानसिक समस्याएं जानलेवा तो हैं ही, ये अरबों रुपये के नुकसान की वजह भी हैं. बीते वर्षों में केंद्र और राज्य सरकारों ने इस ओर अधिक ध्यान देना शुरू किया है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में भी इसे प्राथमिकता दी गयी है. मेडिकल शिक्षा पर जोर देने से धीरे-धीरे विशेषज्ञों की कमी दूर होने की उम्मीद जगी है.

लेकिन संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए त्वरित प्रयासों की आवश्यकता है. मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का प्रसार किया जाना चाहिए क्योंकि हमारे समाज में इसे लेकर वर्जनाएं हैं. हमें यह समझना होगा कि किसी शारीरिक समस्या की तरह ही इसे गंभीरता से लेते हुए चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

Leave a Reply

error: Content is protected !!