मोदी को बंगाल के नतीजों से नहीं मिली ऑक्सीजन,अब आगे क्या?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

खेला होबे…। हां, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने खेला कर दिखाया है। TMC ने भाजपा का बंगाल जीतने का गुरूर तोड़ दिया है। वहीं, कोरोना त्रासदी के बीच जब देश भर में जब मोदी सरकार की जमकर आलोचना हो रही है, यहां तक कि भाजपा समर्थक भी सरकार और पार्टी नेतृत्व से नाराज हैं। इस सबके बीच पश्चिम बंगाल की हार भाजपा के लिए कोरोना की पॉजिटिव रिपोर्ट जैसी है। यहां भाजपा को वोटों की पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाई है। हालांकि, असम में भाजपा जीत रही है। ऐसे में पार्टी वेंटिलेटर पर जाने से जरूर बच गई है।

कोरोना की सुनामी के बीच लग रहा है कि मोदी लहर ठहर गई है। इन नतीजों का क्या मोदी के कद पर कोई असर पड़ेगा? इस पर राजनीतिक विश्लेषक एस अनिल कहते हैं कि मोदी और भाजपा ने अपनी पूरी ताकत बंगाल में झोंक रखी थी। ऐसा माहौल भी बनाया कि भाजपा जीत रही है। इसके बावजूद TMC की जीत भाजपा और मोदी के लिए किसी सेटबैक से कम नहीं है। हां, दीदी ममता बनर्जी यदि नंदीग्राम में हार जाती तो भाजपा को खुश होने का मौका जरूर मिल सकता था, लेकिन ये भी नहीं हो पाया। भाजपा की इस हार के पीछे कई वजह हैं, सबसे बड़ी वजह है अति आत्मविश्वास।

बंगाल में कोरोना मुद्दा नहीं बन पाया, लेकिन यूपी में इसका बड़ा इम्पैक्ट होगा
पश्चिम बंगाल में हार का क्या मोदी के कद पर क्या असर पड़ेगा? इस पर राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन कहते हैं कि निश्चित तौर पर असर पड़ेगा। बंगाल चुनाव में कोरोना का असर शुरुआती समय में बहुत कम रहा है, लेकिन आगामी यूपी चुनाव में तो ये बहुत बड़ा मुद्दा बनने वाला है। यूपी में कोरोना को लेकर जिस तरह का सरकार फेल्योर है, उसका तो लॉन्ग टर्म असर होगा ही।

आइए राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन और एस अनिल से समझते हैं नतीजों के तीन मायने-

1. अब यूपी में नए समीकरण बनेंगे-
बंगाल में हार के बाद यूपी में अब नए समीकरण भी देखने को मिल सकते हैं। कुछ समय से बसपा का रुख बहुत हद तक भाजपा के प्रो हो गया था, लेकिन अब बीएसपी का रुख बदलेगा। वो एग्रेसिव होगी। नए गठबंधन बनेंगे। बंगाल की तरह यूपी में भी मुस्लिम एकजुट हो सकते हैं। कांग्रेस सपा या बसपा के साथ गठबंधन कर सकती है। लेकिन भाजपा का चुनावी मैनेजमेंट अभी भी अच्छा है, इनके पास रिसोर्स भी हैं।

2. बंगाल का मिजाज, भाजपा से मेल नहीं खाया-
बंगाल का मिजाज, भाजपा से मेल नहीं खाया। भाजपा ने बाहरी राज्यों से करीब पांच लाख वर्कर वहां भेजे थे। ये भाजपा का भीड़ जुटाने का काम था। इसीलिए बंगाल में पहली बार लोग यह बोलते दिखाई दिए कि देखो- यूपी वाला आ गया है। इसका लोकल पब्लिक में भाजपा के खिलाफ रिएक्शन भी देखने को मिला।

3. दीदी को नीचा दिखाने की नीति पसंद नहीं आई-
भाजपा द्वारा दीदी को नीचा दिखाने की नीति बंगाली लोगों को पसंद नहीं आई। पीएम मोदी ने अपनी रैली में जो दीदी वो दीदी किया। उसका असर भाजपा के खिलाफ हुआ। दूसरा सादगी का मसला भी है, बंगाली लोग सादगी पसंद होते हैं। भाजपा ने बड़े पैपाने पर धन-बल का इस्तेमाल किया, इसके मुकाबले टीएमसी का खर्च कम रहा। नतीजों से लग रहा है कि लोगों को ये बात भी अखरी है। साथ ही भाजपा के पास कोई बड़ा लोकल लीडर नहीं था, जो कुछ एक थे वो अपनी सीट भी संभाल नहीं पाए। ज्यादातर प्रत्याशी भी बाहर से आए थे।

सुर बदले: भाजपा के पास खोने को कुछ नहीं था
हालांकि नतीजों के बाद भाजपा नेताओं के बंगाल को लेकर सुर बदल गए हैं। बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं कि हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं था। ऐसा इतिहास में नहीं हुआ होगा कि कोई पार्टी 3 से 100 सीटों के पास पहुंच गई हो। हम तो परिवर्तन के लिए लड़ रहे थे।

अब अगले साल 3 राज्यों में जीतने के लिए उतरेगी भाजपा-
बंगाल पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा राज्य है। विधानसभा सीटों के लिहाज से भी UP के बाद सबसे ज्यादा 294 सीटें यही हैं। ऐसे में देश के दूसरे सबसे बड़े सियासी राज्य को जीतना मोदी और भाजपा के लिए सपने के सच जैसा होना ही था। इसके साथ ही भाजपा के लिए अगले साल मार्च-अप्रैल में यूपी, उत्तराखंड और पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में दोगुने मनोबल के साथ जाने का रास्ता खुल जाता, लेकिन बंगाल में हार के बाद इन राज्यों में भाजपा को वोटों के वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी।

  • अब अगली बारी उत्तर प्रदेश की

देश के सबसे बड़े सियासी राज्य UP में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा ने 2017 में यहां 403 में से 312 सीटें जीती थीं। 2014 और 2019 में आम चुनाव में मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में भी UP का बड़ा योगदान रहा है। 2014 में NDA UP में 80 में 73 सीटें जीती थीं। 2019 में NDA को 62 सीटों पर जीत मिलीं। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव मोदी और भाजपा के भविष्य के लिए काफी अहम हैं। मोदी खुद भी UP से ही सांसद हैं, ऐसे में भाजपा का UP में सबकुछ दांव पर रहेगा।

  • उत्तराखंड को उत्तर का इंतजार है

देवभूमि उत्तराखंड में भाजपा के लिए सबकुछ सामान्य नहीं है। भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में यहां की 70 में से 57 सीटें मिली थीं। इसके बावजूद आगामी चुनाव से पहले पार्टी को अपना मुख्यमंत्री बदलना बड़ा है। त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया है। अब देखना है कि क्या नए मुख्यमंत्री दोबारा भाजपा को सत्ता में वापस ला पाएंगे? भाजपा को 2019 आम चुनाव में भी राज्य की सभी 5 सीटों पर जीत मिली थी। यहां भी 2022 में मार्च-अप्रैल में चुनाव होने हैं। ऐसे में उत्तराखंड को बचाना मोदी और भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है।

  • पंजाब को फतह करना नहीं है आसान

पंजाब में भी UP और उत्तराखंड के साथ अगले साल चुनाव होने हैं। यहां भाजपा हमेशा से अकाली दल के साथ गठबंधन में रही है। अब यहां किसान आंदोलन के चलते अकाली दल भाजपा से अलग हो चुकी है। ऐसे में भाजपा के लिए यहां सीटें जीतना बिल्कुल आसान नहीं है। भाजपा के पास राज्य में कोई चेहरा भी नहीं है। ऐसे में भाजपा यहां मोदी के चेहरे के साथ ही मैदान में जाएगी।

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