मोदी का संदेश, देश पहले व्यापार बाद में
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। अमेरिका ने आज से भारत पर 25% एक्सट्रा टैरिफ लगाया दिया है। इसके पीछे की वजह अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने को बताया है। हालांकि, भारतीय तेल रिफाइनरी कंपनियों का कहना है कि रूस से कच्चा तेल खरीदना बंद नहीं होगा। उनका मानना है कि सरकार अमेरिकी दबाव के आगे झुकेगी नहीं। अधिकारियों का साफ संदेश है कि ‘देश पहले-व्यापार बाद में’।
सरकार से नहीं मिला कोई आदेश
तेल कंपनियों के अधिकारियों ने बताया कि सरकार की तरफ से रूस से तेल खरीद बंद करने का कोई आदेश नहीं मिला है। सितंबर महीने में ऑर्डर थोड़े कम जरूर हुए हैं, लेकिन इसका कारण अमेरिकी टैरिफ नहीं बल्कि रूस की तरफ से कम डिस्काउंट मिलना है।
पिछले साल रूसी कच्चा तेल 2.5 डॉलर से लेकर 3 डॉलर प्रति बैरल तक सस्ता मिल रहा था, लेकिन अब यब छूट घटकर सिर्फ 1.5 डॉलर से लेकर 1.7 डॉलर प्रति बैरल रह गई है। अधिकारी मानते हैं कि अक्टूबर से ऑर्डर फिर बढ़ सकते हैं, क्योंकि रूस फिर से छूट बढ़ाने की तैयारी कर रहा है।
रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करेगा भारत
एक उद्योग अधिकारी ने कहा, “सरकार का संदेश साफ है कि हम झुकेंगे नहीं। अगर अभी तेल आयात रोक दिया तो अमेरिका और शर्तें थोपेगा।” तेल उद्योग से जुड़े जानकार मानते हैं कि अगर भारत चाहे तो दूसरे देशों से भी आसानी से कच्चा तेल खरीद सकता है।
लेकिन ऐसा करना अमेरिका के दबाव में झुकना माना जाएगा। इसलिए सरकार इस विकल्प से फिलहाल बचना चाहती है। उन्होंने कहा कि अगर भारत तुरंत रूसी तेल खरीदना बंद कर देता है तो वैश्विक तेल बाजार पर बहुत बड़ा असर नहीं पड़ेगा।
बदल सकता है सप्लाई चेन
ऐसा इसलिए, क्योंकि रूस फिर तेल किसी और देश को बेचेगा और बाकी तेल भारत खरीद लेगा। बस सप्लाई चेन थोड़ी बदलेगी। फिलहाल, भारतीय रिफाइनरियां हालात पर नजर बनाए हुए हैं और उनका ध्यान सिर्फ इतना है कि पर्याप्त और लगातार तेल मिलता रहे।
यह अच्छा है कि भारत पहले दिन से ट्रंप की मनमानी टैरिफ नीति का मुकाबला करने की दृढ़ता दिखा रहा है। अब इस दृढ़ता के अनुरूप हरसंभव कदम भी उठाने होंगे, क्योंकि अमेरिका निर्यात होने वाली भारतीय वस्तुओं पर कुल टैरिफ 50 प्रतिशत हो गया है। ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ पहले ही इसलिए लगा दिया था, क्योंकि तय समयसीमा में द्विपक्षीय व्यापार समझौता नहीं हो पाया।
यह इसीलिए नहीं हो पाया, क्योंकि भारत उनकी मनमर्जी वाले समझौते पर हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं था। इसी से चिढ़े ट्रंप ने एक तो यह राग अलापना शुरू किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम कराया और दूसरे, इस हास्यास्पद आरोप के साथ सामने आ गए कि यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध के लिए भारत जिम्मेदार है।
ट्रंप ने उस चीन को बख्श दिया है, जिसके खिलाफ वह गर्जन-तर्जन करते रहते हैं और जो भारत के मुकाबले रूस से कहीं अधिक तेल खरीदता है। चूंकि ट्रंप में इतना साहस नहीं कि वे चीन पर भारत जितना टैरिफ लगा सकें, इसलिए उनके सहयोगी तरह-तरह के कुतर्क देने में लगे हुए हैं। इसके कारण उनकी जगहंसाई ही हो रही है, पर शायद उन्हें इसकी परवाह नहीं। जो भी हो, भारत को जहां आत्मनिर्भरता के अपने प्रयासों को गति देनी होगी, वहीं स्वदेशी के मंत्र को भी प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाने के साथ उनकी निरंतर समीक्षा भी करनी होगी।
इसलिए करनी होगी, क्योंकि स्वदेशी अपनाने और आत्मनिर्भर बनने की बातें कोविड महामारी के बाद से ही हो रही हैं और सब जानते हैं कि उनके अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सके। कम से कम अब तो वांछित नतीजे हासिल करने के लिए ठोस उपाय किए ही जाने चाहिए। ये उपाय तब सफल होंगे, जब हमारे कारोबारी ट्रंप की ओर से पेश की गई टैरिफ की चुनौती का सामना करने के लिए अपनी उत्पादकता एवं गुणवत्ता को बेहतर बनाएंगे।
वे सरकार से सहायता की अपेक्षा तो कर सकते हैं, लेकिन उन्हें अपने हिस्से की जिम्मेदारी खुद उठानी होगी। लड़ाई केवल कारोबार की नहीं, आत्मसम्मान की भी है। सरकार, कारोबार जगत के साथ देश की आम जनता को इसके लिए भी तैयार रहना होगा कि ट्रंप का भारत विरोधी रवैया लंबे समय तक कायम रह सकता है।