प्रकृति शाश्वत सत्य है, पंचतत्व में एक जल है।

प्रकृति शाश्वत सत्य है, पंचतत्व में एक जल है।

हमारा समाज जागरूक क्यों नहीं हो रहा है?

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क्या प्रशासन अपना विवेक खोकर आदेश पर निर्भर हो गया है?

✍🏻 राजेश पाण्डेय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रकृति की लीला अपरंपार है। सृष्टि के पांच तत्वों में से एक जल ने व्यक्ति और शासन को आप्लावित कर दिया है। पन्द्रह घंटों की बारिश ने सीवान‌ व छपरा को जलमग्न कर दिया। सरकारी संस्थाओं के कार्यालय में घुटनों से लेकर कमर तक पानी एवं सड़कों एवं दुकानों में नाले का घुसा पानी अपने प्रकृति के प्रकोप और हमारी असक्षम व्यवस्था की कहानी बयां कर रहा है।

अतिवृष्टि से व्यक्ति और प्रशासन की जागरूकता सामने आई है। अब हम मोबाइल से तरह-तरह के वीडियो एवं फोटो बनाकर अपने व्यथा को दर्शा रहे हैं।अति दृष्टि के बाद जिला शासन की सलाहकार आदेश जारी हुआ है। इस बारिश ने विकास एवं जन जागृति का भंडाफोड़ भी किया है। वहीं सनातनी पंचांग के अनुसार यह हस्त नक्षत्र है जिसमें बारिश होना निश्चित माना जाता है। दूसरी ओर मौसम विभाग की ओर से बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव का क्षेत्र वर्षा का कारण बना, साथ ही नमी के कारण खूब वर्षा हुई है।

सीवान व छपरा की लगभग 300 मिलीमीटर बारिश ने हमारे समाज को कुछ समय के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ कर दिया। कार्यालय में प्रवेश कर गया पानी सारे दस्तावेज, रिकॉर्ड को ध्वसत कर दिया है, दुकानों में पानी ने पंसारी के सारे माल को सड़ने हेतु मजबूर किया है। आम घरों में घुसा पानी कई प्रकार के नुकसान को नेवता दिया है।

नाली पानी से सराबोर है निकास के सारे मार्ग अवरुद्ध हैं। सरकारी अस्पतालों में प्रवेश कर गया पानी अब भगवान भरोसे निकालने की प्रतीक्षा कर रहा है। नुक्कड़ पर रखा कूड़ा बजबज़ा रहा है। नगर परिषद का सरकारी महकमा ‘नरक परिषद’ में बदल चुका है। इसके पास नगर को लेकर कोई योजना नहीं है, अगर‌‌ है‌ भी‌ तो, केवल एक योजना है पैसों का बंदरबांट।

योजना, सूचना एवं संवाद संप्रेषण घोर कमी।

जिला प्रशासन की सबसे बड़ी विफलता यह है की वृष्टि को लेकर त्यौहार के मौसम में अलर्ट नहीं थी। उसने मौसम विभाग से त्वरित संपर्क स्थापित नहीं किया था। आपदा मोचन दल शिथिल रहा। प्रशासन निरंतर मुख्यालय (पटना व छपरा) से आने वाले आदेशों की प्रतीक्षा करता रहा। उसके पास अगर सूचना होती तो वह समय रहते समाज को सूचित करता। त्योहारों में बड़ी संख्या में भक्त सड़क पर निकलती है इसे लेकर प्रशासन कई प्रकार की कठिनाइयों में पड़ जाती है इसलिए वह चाहती है कि इन भक्तों को इस प्रकार की समस्या का सामना करना पड़े कि यह दोबारा मेला में नहीं आए।

साहब को मेरी फ़िक्र है लेकिन आराम के साथ।

वर्षा अनिवार्य है परंतु अतिवृष्टि जान- माल के लिए क्षतिपूर्ण है। ऐसे में प्रशासन का दायित्व होता है कि समाज को संभावित खतरों से जागरूक करें, आगाह करें। सांप के चले जाने के बाद लकीर पिटती हुई जिला प्रशासन सलाहकार आदेश जारी करके अपनी इतिश्री कर ली है। अब आप अपने क्षति का आकलन करते रहें और अपने त्यौहार को लेकर छाती पीटते रहे।

बहरहाल हिमाचल प्रदेश, पंजाब व उत्तराखंड के बाद हम सभी ने वर्षा की भयावहता को अनुभव किया है, प्रकृति के प्रकोप को समझा है। परन्तु हम और हमारी सरकार जागरूक हो तो इन आपदाओं से कुछ राहत अवश्य मिल सकती है।

 

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