नेपाल की हस्तियों ने सरकार को दी चेतावनी,क्यों?
Gen-Z श्रीलंका और बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन करवा चुके हैं
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
नेपाल की प्रमुख हस्तियों ने सरकार और राजनीतिक दलों को चेतावनी दी है कि वे युवाओं की परेशानियों को कम न समझें। जेन-जी की मांगों की अनदेखी करना खतरनाक साबित होगा। इन हस्तियों में लेखक, डॉक्टर, कलाकार, पूर्व नौकरशाह और अन्य लोग शामिल हैं।उनका कहना है कि सोमवार की घटनाएं भ्रष्टाचार, कुशासन, सत्ता के दुरुपयोग और सरकारों व राजनीतिक पार्टियों के लगातार अहंकार से युवाओं में इकट्ठा हुई निराशा का नतीजा है।
‘गुलाम नहीं आज के युवा’
‘काठमांडू पोस्ट’ से मेडिकल इंस्टीट्यूट के पूर्व डीन डॉ. अरुण सायमी ने कहा, ‘नेता सोचते हैं कि अगर संसद में उनका बहुमत है तो वे कुछ भी कर सकते हैं। आज के युवा उनके गुलाम नहीं हैं। ज्ञानेंद्र शाह (जिन्हें 2008 में सत्ता से हटा दिया गया था) की तरह बर्ताव करना बंद करें और तुरंत इंटरनेट मीडिया पर से प्रतिबंध हटा दें।’
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डा. अरुणा उप्रेती ने कहा, ‘आज की घटना ने मुझे राजा ज्ञानेंद्र के शासन के आखिरी दिनों की याद दिला दी, जब उन्होंने बिना सोचे-समझे बल प्रयोग किया था।’उन्होंने कहा, ‘वर्तमान सरकार, सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-यूएमएल ने अहंकार दिखाया और देश के भविष्य युवाओं के खिलाफ जबरदस्त बल प्रयोग किया।’ लेखक खगेंद्र संग्रौला ने कहा कि इन घटनाओं ने सत्तारूढ़ पार्टियों का असली चेहरा दिखाया है।
उन्होंने कहा, ‘केवल पुष्प कमल दहाल (पूर्व प्रधानमंत्री), आरएसपी और काठमांडू के मेयर बलेंद्र शाह ही युवाओं को नहीं भड़का रहे थे; बल्कि दुर्गा प्रसाद, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और अन्य राजशाही समर्थक भी मौके का इस्तेमाल कर रहे थे।’
विदेश मंत्रालय का बयान
विदेश मंत्रालय का कहना है कि नेपाल का पड़ोसी और करीबी मित्र होने के नाते भारत उम्मीद करता है कि वहां हालात जल्द ही सामान्य हो जाएंगे। सभी मामलों को शांतिपूर्ण बातचीत से सुलझाना बेहतर होगा।
विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, नेपाल की राजधानी काठमांडू समेत कई शहरों में कर्फ्यू लगा है। नेपाल में मौजूद भारतीय नागरिकों को भी एहतियात बरतने की सलाह दी गई है। उन्हें स्थानीय गाइडलाइंस को फॉलो करने के लिए कहा गया है।
Gen-Z श्रीलंका और बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन करवा चुके हैं
नेपाल में अतीत में कई विद्रोह हुए हैं, जिनमें युवाओं की भूमिका अहम रही है। पिछले वर्ष प्रदर्शनकारियों ने फिर से राजशाही की मांग की थी क्योंकि यहां राजनीतिक अस्थिरता के चलते 16 वर्षों में 13 बार सरकारें बदल चुकी हैं, लेकिन वर्तमान विरोध प्रदर्शन श्रीलंका और बांग्लादेश में भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद के विरुद्ध युवाओं के आंदोलन जैसा लगता है।
नेपाल की तरह श्रीलंका (2022) और बांग्लादेश (2024) के आंदोलन में भी ‘जेन-जी’ सबसे आगे थी। जेनरेशन-जी का मतलब 1997 और 2012 के बीच पैदा हुई पीढ़ी से है। इन्हें इंटरनेट और इंटरनेट मीडिया सहित आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए बड़ी हुई पहली पीढ़ी माना जाता है।
श्रीलंका और बांग्लादेश की फ्लैशबैक कहानी
श्रीलंका और बांग्लादेश में इसी पीढ़ी ने विद्रोह की अगुआई की थी। नेपाल की तरह इन दोनों देशों में विरोध प्रदर्शन तत्कालीन सरकार के विरुद्ध थे। दोनों मामलों में विरोध प्रदर्शन शुरू में राजनीतिक नहीं रहे और नेपाल में भी ऐसा ही है।
श्रीलंका में हुए विरोध प्रदर्शन
श्रीलंका में हिंसा – श्रीलंका में ईंधन और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कमी ने जेन-जी को प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया। प्रदर्शन शुरू में शांतिपूर्ण थे, लेकिन बाद में राष्ट्रपति भवन पर कब्जे में बदल गए, जिसके बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया था।
प्रदर्शनकारियों ने बाद में राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री कार्यालय पर हमला कर दिया, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आंदोलन पर गया। कई रिपोर्टों में कहा गया कि प्रदर्शनकारियों में राजनीतिक ताकतें भी थीं, जिनके अपने स्वार्थ थे। 2024 में नई सरकार के सत्ता में आने के बाद नीति और शासन में कुछ बड़े बदलाव हुए हैं।
बांग्लादेश में हुए विरोध प्रदर्शन
बांग्लादेश में हिंसा- बांग्लादेश में छात्रों ने तत्कालीन सरकार की नौकरी में कोटा नीति के विरुद्ध बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का तर्क था कि आरक्षण से योग्य लोगों के बजाय राजनीतिक निष्ठावानों को फायदा होता है। प्रदर्शन बढ़ने पर सुरक्षा बलों ने बल प्रयोग किया।
अंत में प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास घेर लिया, जिससे शेख हसीना को 5 अगस्त 2024 को देश छोड़कर भागना पड़ा और उनकी 16 वर्ष की सत्ता का अंत हो गया। इसके बाद छात्र नेताओं ने भविष्य के चुनाव लड़ने के लिए नेशनल सिटीजन पार्टी बनाई और नोबेल पुरस्कार विजेता डा. मुहम्मद यूनुस की देखरेख वाली अंतरिम सरकार में शामिल हो गए।
नेपाल में हिंसा
नेपाल की तरह बांग्लादेश में भी यह आंदोलन डिजिटल रूप से जानकार युवा कार्यकर्ताओं ने चलाया, जिन्होंने विरोध प्रदर्शनों के लिए पारंपरिक पार्टी संरचनाओं को दरकिनार कर वायरल वीडियो और इंक्रिप्टेड चैट का इस्तेमाल किया। श्रीलंका की तरह बांग्लादेश के छात्रों ने लगातार प्रदर्शन और जन आंदोलन के माध्यम से सरकार गिरा दी थी।
आंदोलन में शामिल हुए अराजक तत्व
नेपाल के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने बताया,
देशव्यापी जेन-जी आंदोलन में अराजक और प्रतिक्रियावादी तत्व शामिल हो गए थे। जेन-जी आंदोलन की मांगें भ्रष्टाचार की जांच और प्रतिबंधित इंटरनेट मीडिया की बहाली थी, लेकिन सरकारी कार्यालयों को निशाना बनाकर तोड़फोड़ की गई, इसके बाद कई दुखद घटनाएं हुईं।
जेन-जी आंदोलन के नेताओं ने भी कहा कि बाहरी तत्वों की घुसपैठ के कारण हिंसा हुई। उन्होंने (बाहरी तत्वों ने) तोड़-फोड़ की और जबरन संसद भवन में घुसने की कोशिश की, जिससे हिंसा भड़क गई।
पूर्व डीआइजी हेमंत मल्ला ने कहा, “सरकार की खुफिया एजेंसी ने स्थिति का सही आकलन नहीं किया, जिसके कारण जानमाल का नुकसान हुआ। अगर उन्होंने प्रदर्शन के पैमाने का सही आकलन और तैयारी की होती, तो वे स्थिति को बेहतर ढंग से संभाल सकते थे।”