नव वर्ष:विक्रम संवत 2082 प्रारम्भ हो गया है

नव वर्ष:विक्रम संवत 2082 प्रारम्भ हो गया है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पंचांग के अनुसार यह नववर्ष ‘2082 नाम संवत्सर कहलाएगा। हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। इसे गुड़ी पड़वा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से नौ दिवसीय चैत्र नवरात्रि के पावन पर्व की भी शुरुआत होती है।

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विक्रम संवत् की स्थापना इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने की थी, जो आज भी हिंदू पंचांग का आधार है। इसी दिन विक्रम संवत को शुरू करने का भी एक धार्मिक कारण माना जाता है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।  इसके अलावा भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था।

नवसंवत्सर के राजा, मंत्री और सेनापति सूर्यदेव रहने वाले हैं। कालयुक्त नामक संवत्सर में कोषाध्यक्ष और फसलों के स्वामी बुध और सुख-समृद्धि के स्वामी शुक्र होंगे। हिंदू धर्म में विक्रम संवत को मान्यता मिली है और नेपाल में यह सरकारी कैलेंडर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

इस त्योहार को मराठी नववर्ष के रूप में भी जाना जाता है, जो मराठियों और कोंकणी हिंदुओं के लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक मानते हैं। गुड़ी का अर्थ होता है, भगवान ब्रह्म का ध्वज और पड़वा का अर्थ एक नया चंद्रमा चरण है। हिंदू नववर्ष की शुभकामनाएं भेजकर सभी को आज के दिन का महत्व समझाएं। साथ ही गुड़ी पड़वा और नवरात्रि का पर्व भी धूमधाम से मनाएं। यहां हिंदू नववर्ष के सुंदर संदेश दिए जा रहे हैं।

संवत्सर का अर्थ क्या है?
संवत्सर का अर्थ ‘पूरे साल’ से है जो द्वादश मासाः वस्तरः यानी 12 महीने का विशेष काल है। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन की थी। विक्रम संवत से पहले युधिष्ठिर संवत, कलियुग संवत, सप्तर्षि संवत आदि प्रचलन में आए थे। समझा जाता है कि सभी संवत की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होती थी लेकिन बाकी बातों को लेकर स्पष्टता नहीं थी। इसके बाद विक्रम संवत आया जिसमें वार, तिथियों और नक्षत्र की स्पष्टता के साथ जानकारी थी।

विक्रम संवत की शुरुआत कब हुई थी
बताया जाता है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर विक्रम संवत की शुरुआत हुई थी। उनके शासनकाल में भारतवर्ष के एक बड़े हिस्से पर विदेशी शासक शकों का आधिपत्य था। वे प्रजा के साथ अन्याय करते थे। क्रूर आचरण की वजह से प्रजा में भय का माहौल था। तब विक्रमादित्य ने शकों का शासन खत्म कर अपना राज स्थापित किया था। इस जीत की स्मृति में विक्रम संवत बनवाया गया। राजा विक्रमादित्य ने यह पंचांग शुरू करवाया गया था। ज्योतिर्विदाभरण ग्रंथ के अनुसार, विक्रमादित्य ने 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया।

कल्हण की राजतरंगिणी के मुताबिक, 14वीं ईसवीं के आसपास कश्मीर में अंध्र युधिष्ठिर वंश के एक राजा हुआ करते थे। राजा हिरण्य बिना संतान के मर गए थे। इसके बाद अराजकता फैल गई थी। इसके बाद राजा विक्रमादित्य ने वहां के मंत्रियों की सलाह सुनी और मातृगुप्त कश्मीर की सत्ता की जिम्मेदारी दी।

नव वर्ष 2082 के होने वाले प्रभाव

उक्त समय में ग्रहों की स्थिति राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज और प्राकृतिक घटनाओं को प्रभावित करेगी।

● सरकार के बड़े फैसलों और नीतियों में बदलाव हो सकते हैं।
● यह संवत्सर भारत के लिए आर्थिक रूप से स्थिरता और विकास लेकर आएगा।
● न्यायपालिका से जुड़े बड़े फैसले आ सकते हैं।
● प्राकृतिक आपदाओं, खासकर गर्मी और बारिश के असामान्य प्रभाव की संभावना रहेगी।
● विश्व स्तर पर कुछ देशों में राजनीतिक अस्थिरता और युद्ध जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।
● अमेरिका, चीन और रूस के संबंधों में उतार-चढ़ाव रहेगा।
● जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ेगा और अप्रत्याशित मौसम देखने को मिल सकता है।
● शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव रहेगा, लेकिन डिजिटल करेंसी और टेक्नोलॉजी सेक्टर में तेजी आ सकती है।

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