अब! सावन समाप्त हो गया है।

अब! सावन समाप्त हो गया है।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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बड़ी कोलाहल सुनाई दे रही है, क्या हुआ! एकदम से हमारे बॉडे़ के पास इतनी गाड़ियों का जमावड़ा क्यों बढ़ गया है, बात कुछ समझ में नहीं आ रही है, तुम्हें बात कैसे समझ में आएगी! तुम्हारा मस्तिष्क तो मोटी चमड़ी का है, किसी बात का सूक्ष्म पड़ताल नहीं करता है। तब तक एक मंगरु फुदकता हुआ आ पहुंचा। अरे! क्या बात हो रही है और इतना शोर- गुल क्यों मचा रखा है।

बारिश का मौसम है, कभी गर्मी, कभी ठंड‌ तो कभी उमस जैसी स्थिति तो बनी ही रहेगी। तब तक पतलू ने कहा देखिए ! मंगरु चाचा आज हम सभी के बाड़े के निकट कई गाड़ियों का जमावड़ा हो गया है, तो यह मोटा इसे ही देखकर अंचभित है। अरे! मोटा बात तो इतनी सी है लेकिन बहुत बड़ी है। अब हम सभी कभी एक दूसरे के साथ नहीं रह सकते और ना ही कभी मिल सकते हैं।

मोटा ने उत्सुकता से मंगरु चाचा के मुंह को निहारते हुए कहा, ऐसी क्या बात आज से होने वाली है,अरे! मोटा तुझे पता नहीं आज सावन समाप्त हो रहा है, कल से भादो प्रारंभ हो जाएगा और कल रविवार भी है यानी छुट्टी का दिन। रविवार से ही अगले 15 दिनों तक सभी अपनी कंठी-माला, पूजा-जप-तप को एक कोने में रखकर प्याज-लहसुन एवं कई प्रकार के गरम मसाले के साथ हमारे मांस का भक्षण करेंगे।

अरे! मंगरु चाचा यह तो बड़े पते की बात आपने बताई। उनकी बात सब धैर्य पूर्वक सुन रहे थे और बात सुनते-सुनते सब शांत हो गए। सभी ने एक-दूसरे को बढ़िया से निहारना प्रारंभ किया, जैसे कि आज से पहले उन्होंने देखा ही नहीं था,सभी प्रकार के गिले-शिकवे मिट‌‌ गये। तभी शांत वातावरण को चीरते हुए मोटा बोला, मैं तो नहीं कटूंगा! मेरा वजन तो ढाई से तीन किलो हो गया है। मुझे कोई नहीं खरीदेगा? अभी बात पूरी भी नहीं होती हुई थी कि पतलू बोला, तू भी ना पार्टनर! एकदम मोटा ही हो गया है, अरे तू तो सबसे पहले कटेगा और सभी तेरा आधा-आधा किलो मांस लेकर अपने-अपने घर जाएंगे। बात तो सत्य है,पर मैं दुबला पतला हूं। दुकानदार के पास कोई विकल्प नहीं होने की स्थिति में मुझे काट डालेंगे।


तभी संविधान प्रदत्त भारतीय नागरिकों का हाथ बाड़े में प्रवेश करता है। चार-पांच की संख्या में हम पकड़े जाते हैं हमें पिंजरे में डालकर‌ हमें तौला जाता है, फिर गाड़ी पर रखें पिजड़े में भर दिया जाता है। हम एकदम से कभी अपने एवं कभी उस बाड़े को निहारते हुए उस अनंत यात्रा पर निकल पड़ते हैं। अपने दोस्त- साथियों को यह दिलासा दिलाते हुए कि अब इस जन्म में नहीं, पर अच्छे कर्म हुए तो अगले जन्म में अवश्य मिलेंगे। वहीं ये मनुष्य अपने को ईश्वर का रुप, मानवता का पुजारी, श्रेष्ठ बुद्धिमान, दयालु व कृपालु मानता है। इनसे लाख गुना बढ़िया तो हम पशु व पक्षी हैं जिन्हें प्रकृति के साथ मिलकर रहने में बहुत आनन्द आता है।

बहरहाल मनुष्य के रूप में संसार को मानवता का पाठ पढ़ाते हुए ये मनुष्य अपने समारोह एवं दावत का प्रारंभ चिकेन एवं मटन से कर रहे हैं। जीवों पर दया करो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो। यह कोरा बकवास है। अब हम सभी को इस बात की प्रतीक्षा है कि मनुष्य कब मानव का मांस खाएगा, तब उसे जीव एवं प्राणियों के प्राण की मार्मिकता का आभास होगा।

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