13 अगस्त 1942 को जब सीवान में आया था क्रांतिकारी उबाल
सीवान के शहीद सराय पर तीन युवाओं ने दिया मां भारती के चरणों में सर्वोच्च बलिदान
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सिवान। फिरंगी हुकूमत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन के शुरू होते ही फिरंगी हुकूमत ने भारतीय राष्ट्रीय आंदेलन से जुड़े सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। फिर जनता ने भारत छोड़ो आंदोलन की बागडोर अपने हाथ में ले ली। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के साथ सिवान भी उबल पड़ा था।
यहां के मां भारती के महान क्रांतिकारी सपूतों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर फिरंगी हुकूमत को जबरदस्त चुनौती दी। 13 अगस्त 1942 को सिवान क्रांतिकारी प्रतिशोध की ज्वाला में उबल पड़ा था।
11 अगस्त 1942 को पटना सचिवालय पर तिरंगा फहराने के क्रम में बिहार के सात सपूत फिरंगी गोलियों के शिकार हो गए। इस क्रम में सिवान के नरेन्द्रपुर के मात्र 19 साल के उमाकांत सिंह ने अपना सर्वोच्च बलिदान मां भारती के चरणों में समर्पित कर दिया था। सिवान जब यह खबर पहुंची तो यहां भी क्रांतिकारी भावनाएं उबल पड़ी। 12 अगस्त 1942 को कुछ उत्साही युवकों ने अनुमंडल पदाधिकारी के कार्यालय कुछ अन्य सरकारी संस्थापनाओं पर तिरंगा फहरा दिया। 12 अगस्त 1942 को फिरंगी अधिकारियों ने सरकारी कार्यालयों पर फहराए गए तिरंगों को हटा दिया। आम जनमानस में फिरंगी हुकूमत के ऊपर गुस्सा चरम पर था।
13 अगस्त 1942 को सिवान के गली गली गांव गांव से उत्साही आजादी के दीवानों का जत्था सिवान की तरफ बढ़ने लगा। आज के शहीद सराय चौक पर उत्साही युवाओं की फिरंगी पुलिस से मुठभेड़ हो गई। जिसमें फिरंगी पुलिस ने गोलियां चलाई और छठू गिरी, झगड़ू साह, बच्चन प्रसाद ने फिरंगी गोलियां खाकर मां भारती के चरणों में अपना सर्वोच्च बलिदान कर दिया।
कई अन्य उत्साही युवा घायल हो गए। इस दिन सिवान में कानून व्यवस्था का शासन ध्वस्त हो गया था। जगह जगह तोड़ फोड़ हुई। महाराज गंज में फुलेना बाबू और उनकी पत्नी तारा देवी के नेतृत्व में क्रांतिकारी आंदोलन चला और फुलेना बाबू ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया तो जीरादेई में अंग्रेज सेना को लेकर जा रहे ट्रेन को रोकने के क्रम में बोधा बरई ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सिवान में आए क्रांतिकारी उबाल ने फिरंगी अफसरों को खासी चुनौती दिया था।