महाशिवरात्रि पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द, PM मोदी ने दी शुभकामनाएं.

महाशिवरात्रि पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द, PM मोदी ने दी शुभकामनाएं.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

Mahashivratri 2021: आज यानी 11 मार्च को देशभर में महाशिवरात्रि मनाई जा रही है। इस पावन अवसर पर  राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविन्द (Ram Nath Kovind) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सहित देश के कई दिग्गज नेताओं ने देशवासियों को शुभकामनाएं दी है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने शुभकामनाएं देते हुए लिखा है, ‘महाशिवरात्रि के पुनीत अवसर पर सभी देशवासियों को शुभकामनाएं। देवी पार्वती और भगवान शिव के विवाह के पावन स्मरण स्वरुप मनाया जाने वाला यह उत्सव सम्पूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी हो’।

वहीं प्रधानमंत्री ने भी देशवासियों को ट्वीट कर इस पावन अवसर पर शुभकामनाएं दी। उन्होंने लिखा,’ देशवासियों को महाशिवरात्रि पर ढेरों शुभकामनाएं। हर-हर महादेव’।

बता दें कि कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते इस उत्सव पर काफी सावधानी बरती जा रही है। महामारी के इस दौर में उत्‍तराखंड के हरिद्वार में कुंभ का आयोजन किया गया है। इस मौके पर हजारों श्रद्धालुओं ने हर की पौड़ी में गंगास्‍नान किया।

भक्तों में उत्साह

इस पावन अवसर पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक भक्तों का उत्साह देखने को मिल रहा है। भोले बाबा की पूजा-अर्चना करने के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ शिवालयो में नजर आ रही है। बता दें कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने के 14वें दिन अंधेरे पखवाड़े में प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, बेर और भांग चढ़ाने से भक्‍तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

बता दें कि कोरोना वायरस महामारी के बीच राज्य सरकारों की तरफ से श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई प्रतिबंध और दिशानिर्देश भी जारी किए गए हैं। वहीं, काठमांडू का प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर, जो आमतौर पर महाशिवरात्रि के मौके पर हजारों तीर्थयात्रियों से भरा रहता है। इस साल स्वास्थ्य संकट के कारण लोगों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक भक्तों का उत्साह देखने को मिल रहा है। इस अवसर पर भोले बाबा की पूजा अर्चना करने के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ शिवालयो में नजर आ रही है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने के 14वें दिन अंधेरे पखवाड़े में हर साल महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, बेर और भांग चढ़ाने से भक्‍तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

कोरोना वायरस महामारी के बीच, राज्य सरकारों की तरफ से श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई प्रतिबंध और दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। वहीं, काठमांडू का प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर, जो आमतौर पर महाशिवरात्रि के मौके पर हजारों तीर्थयात्रियों से भरा रहता है, इस साल स्वास्थ्य संकट के कारण लोगों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है।

इस बीच, हर साल की तरह इस बार भी उत्तराखंड के हरिद्वार में हजारों शिव भक्तों ने महाशिवरात्रि के अवसर पावन डुबकी लगाई। हरिद्वार में आयोजित कुंभ-2021 मेले में आज महाशिवरात्रि को पहला शाही स्नान है।

उत्तर प्रदेश के कानपुर के आनंदेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुओं ने पूजा की। एक श्रद्धालु ने बताया कि यहां प्राचीन समय से शिवरात्रि का मेला लगता है। लोग यहां दर्शन के लिए रात से ही लाइन में लग जाते हैं।

शिव का अभिषषेक करने से ऐश्वर्य की होगी प्राप्ति

भगवान शिव जल से प्रसन्न होने वाले देव हैं। इसलिए शिवलिंग का जलाभिषेक करने की परंपरा है। शहद, गन्ने का रस, नारंगी का रस, अंगूर का रस और नारियल पानी से भोले बाबा का अभिषेक करने से धन, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति भी होती है।

ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में भस्मारती की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। सत्यम, शिवम सुंदरम की अवधारणा को प्रतिपादित करती इस परंपरा का मुख्य आधार ब्रह्म परम सत्य है और जगत मिथ्या है। तात्पर्य यह कि जगत का अंतिम सत्य भस्म है। नश्वर संसार में सब कुछ नष्ट हो जाता है। शिव इसी सत्य को स्वीकार कर भस्म रमाते हैं।

महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीतगिरी महाराज के अनुसार भस्म बनाने से रमाने तक की संपूर्ण प्रक्रिया वैदिक व गोपनीय है। परिसर स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के पीछे भस्मी कक्ष में अखंड धूना प्रज्जवलित है। इस धूने में प्रतिदिन औषधि मिश्रित गाय के गोबर से निíमत कंडों को जलाकर भस्म तैयार की जाती है। इस भस्म को कपड़े से छाना जाता है। सुबह भस्मारती के समय भस्म को गर्भगृह में ले जाया जाता है। भगवान को वैदिक मंत्रों के द्वारा भस्म रमाई जाती है।

शिवलिंग पर किस मंत्र के माध्यम से, किस ओर भस्म रमाई जाएगी इसका पूरा विधान गोपनीय है। इस गोपनीय प्रक्रिया को महाकाल मंदिर समिति महानिर्वाणी अखाड़े के महंत अपने प्रतिनिधि को सिखाते हैं। इसके अतिरिक्त यह शिक्षा कहीं ओर नहीं दी जाती है। अखाड़े की परंपरा अनुसार गादीपति महंत भगवान महाकाल को भस्म रमाते हैं, या फिर उनके प्रतिनिधि (वर्तमान में महंत विनीतगिरी महाराज) भगवान को भस्म अर्पित करते हैं। इसके अलावा उनके प्रतिनिधि गणोशपुरी महाराज यह दायित्व निभा सकते हैं।

भगवान महाकाल को रोजाना तड़के भस्म अर्पित की जाती है। यह परंपरा सिर्फ उज्जैन महाकाल मंदिर में ही निभाई जाती है।

अर्धनारीश्वर, गणोश तथा कृष्ण रूप में भी होते हैं दर्शन: मंदिर के पुजारी प्रदीप गुरु के अनुसार भगवान महाकाल का रूप पुजारी के मनोभाव तथा पर्व व त्योहारों के अनुसार निखरता है। भगवान अवंतिकापुर के राजा हैं इसलिए आमतौर पर उन्हें राजाधिराज के रूप में श्रृंगारित किया जाता है। श्रृंगार करने वाले पुजारी भांग से मुखाकृति बनाकर सूखे मेवे से श्रृंगारित करते हैं, भगवान का यह रूप राजा की तरह नजर आता है। इसके अलावा जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण, चतुर्थी पर गणपति, मास शिवरात्रि पर अर्धनारीश्वर, सोमवार को चंद्र, रविवार को सूर्य रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं।

शिवनवरात्रि में यह रूप विशेष: शिवनवरात्रि के नौ दिन भगवान का शेषनाग, घटाटोप, छबीना, होल्कर, मनमहेश, उमा-महेश, शिव तांडव तथा महाशिवरात्रि की रात सप्तधान रूप में श्रृंगार किया जाता है। यह सभी मुखोटे चांदी से निíमत हैं।तीन किलो भांग से होता है श्रृंगार : नित्य संध्या को भगवान महाकाल के भांग श्रृंगार में तीन किलो भांग का उपयोग होता है।

महाशिवरात्रि पर सवा मन फूलों का सेहरा सजता है: महाकालेश्वर मंदिर की पूजन परंपरा अनूठी है। इस मंदिर में प्रतिदिन होने वाली पांच आरती में भगवान के श्रृंगार की परंपरा है। पुजारी प्रत्येक आरती से पहले चंदन, कुमकुम, भांग व सूखे मेवे से भगवान का दिव्य स्वरूप में श्रृंगार करते हैं। पर्व, त्योहार तथा वार के अनुसार भगवान का श्रृंगार किया जाता है। इसके अलावा शिवनवरात्रि के नौ दिनों में भगवान का चांदी के मुखारविंदों से दूल्हा रूप में श्रृंगार किया जाता है। भगवान महाकाल के श्रृंगार में शिव सहस्त्रनामावली में उल्लेखित रूपों का समावेश भी किया जाता है। इसके लिए चांदी के मुखारबिंदों का उपयोग होता है। महाशिवरात्रि पर रात्रि पर्यंत पूजा के बाद तड़के चार बजे भगवान के शीश सवा मन फूल, फल से बना सेहरा सजाया जाता है। महाशिवरात्रि के तीन दिन बाद चंद्र दर्शन की दूज पर साल में एक बार भगवान पंच मुखारविंद रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं।

महाकाल मंदिर के पुजारी पं. महेश ने बताया कि भगवान महाकाल के श्रृंगार की परंपरा पुरातन है। पुजारी मन के भाव व हाथों की कुशलता से भगवान महाकाल को निराकार से साकार रूप प्रदान करते हैं। श्रृंगार में केसर, चंदन, भांग, सूखे मेवे, वस्त्र,आभूषण आदि का उपयोग होता है। शिवनवरात्रि में चांदी के मुखोटे व ऋतु अनुसार फल, फूल श्रृंगार सामग्री का हिस्सा होते हैं। महाशिवरात्रि के बाद दूज पर भगवान का एक साथ पांच रूप में श्रृंगार किया जाता है।

परंपरा अनुसार भस्म रमाते समय महिलाएं निकालती हैं घूंघट: महाकाल मंदिर में प्रतिदिन तड़के चार बजे भस्मारती के रूप में मंगला आरती होती है। इसे भस्मी स्नान भी कहा जाता है। यही वह पल है, जब आरती दर्शन करने वाली महिलाएं घूंघट निकाल लेती हैं। मान्यता है कि भस्म रमाते समय महाकाल दिगंबर रूप में रहते हैं। भगवान के दिगंबर रूप के दर्शन महिलाओं के लिए वर्जति हैं। भगवान को भस्म अर्पित करने के बाद भांग व चंदन से श्रृंगार कर उन्हें नवीन वस्त्र, आभूषण धारण कराकर आरती की जाती है। सुबह भोग, शाम संध्या तथा रात को शयन आरती के दौरान श्रृंगार होता है।

 

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