परंपरा और पर्यावरण का संरक्षण ही होगी बिरसा मुंडा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि: गणेश दत्त पाठक

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सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन किया गया अर्पित

श्रीनारद मीडिया,  सीवान (बिहार):

ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार के विरुद्ध आदिवासियों को एकत्रित कर एक लंबे महासंग्राम के महानायक बने बिरसा मुंडा आज भी ऊर्जा और प्रेरणा के प्रखर स्रोत हैं। बिरसा मुंडा ने आदिवासी परंपरा को सहेजने, मद्य पान से दूर रहने और अंधविश्वास के दायरे से बचने का संदेश अपने अनुयायियों को दिया। उन्होंने जल, जंगल और जमीन के प्रति अनुयायियों को सजग रहने का संदेश दिया। वर्त्तमान दौर में परंपरा और पर्यावरण के संरक्षण का प्रयास ही आबा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियों के संदर्भ में आबा के विचारों की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है। ये बातें शिक्षाविद गणेश दत्त पाठक ने सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर महान योद्धा बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कही। इस अवसर पर संस्थान के कुछ सदस्य और अभ्यर्थी मौजूद थे।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि बिरसा मुंडा एक युगांतरकारी शख्सियत थे, उन्होंने आदिवासी जनजीवन के कल्याण एवं उत्थान के लिये बिहार, झारखंड और ओडिशा में जननायक की पहचान बनाई। वे महान् धर्मनायक थे, तो प्रभावी समाज-सुधारक थे, वे राष्ट्रनायक थे, जन-जन की आस्था के केन्द्र भी थे। सामाजिक न्याय, आदिवासी संस्कृति एवं राष्ट्रीय आन्दोलन में उनके अनूठे एवं विलक्षण योगदान के लिये न केवल आदिवासी जनजीवन बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति सदा उनकी ऋणी रहेगी।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि बिरसा मुंडा, एक ऐसे आदिवासी नायक हैं, जिन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आदिवासी समाज की दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया। अंग्रेजों द्वारा थोपे गए काले कानूनों को चुनौती देकर बर्बर ब्रिटिश साम्राज्य को सांसत में डाल दिया।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि बिरसा मुंडा ने महसूस किया कि आचरण के धरातल पर आदिवासी समाज अंधविश्वासों की आंधियों में तिनके-सा उड़ रहा है तथा आस्था के मामले में भटका हुआ है। आबा ने यह भी अनुभव किया कि सामाजिक कुरीतियों के कोहरे ने आदिवासी समाज को ज्ञान के प्रकाश से वंचित कर दिया है।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि बिरसा जानते थे कि आदिवासी समाज में शिक्षा का अभाव है, गरीबी है, अंधविश्वास है। बलि प्रथा पर भरोसा है, हड़िया कमजोरी है। समाज बंटा है, लोगों के झांसे में आ जाते हैं। धर्म के बिंदु पर आदिवासी कभी मिशनरियों के प्रलोभन में आ जाते हैं, तो कभी ढकोसलों को ही ईश्वर मान लेते हैं। इन समस्याओं के समाधान के बिना आदिवासी समाज का भला नहीं हो सकता इसलिए उन्होंने एक बेहतर नायक और समाज सुधारक की भूमिका अदा की। अंग्रेजों और शोषकों के खिलाफ संघर्ष भी जारी रखा।

श्री पाठक ने कहा कि आबा को पता था कि बिना धर्म के सबको साथ लेकर चलना आसान नहीं होगा। इसलिए बिरसा ने सभी धर्मो की अच्छाइयों से कुछ न कुछ निकाला और अपने अनुयायियों को उसका पालन करने के लिए प्रेरित किया।

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