चौदह वर्ष की लड़ाई से उजागर हुआ पीएससी घोटाला

चौदह वर्ष की लड़ाई से उजागर हुआ पीएससी घोटाला

कार्यकर्ता ने रिकार्ड 200 आरटीआई आवेदन लगाए

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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कुछ कहानियां सिर्फ घटनाओं को नहीं बतातीं, बल्कि साहस, न्याय और समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के एक युवा रविंद्र सिंह की कहानी ऐसी ही है।

यह उस अकेले शख्स का संघर्ष है जिसने न केवल सीजीपीएससी भर्ती परीक्षा 2003 में एक बड़े प्रशासनिक घोटाले का राजफाश किया, बल्कि सैकड़ों युवाओं के लिए न्याय की लड़ाई लड़कर उनके भविष्य को सुरक्षित किया। रविंद्र ने खुद भले ही सरकारी नौकरी नहीं पाई, लेकिन उन्होंने ‘सूचना का अधिकार’ को एक शक्तिशाली हथियार बनाकर दिखाया कि कैसे एक आम इंसान भी पूरे सिस्टम को चुनौती दे सकता है।

वर्ष 2003 की पीएससी भर्ती परीक्षा में गड़बड़ियों को देखकर रविंद्र सिंह के भीतर अन्याय के खिलाफ आक्रोश जागा। 148 पदों के लिए हुई इस परीक्षा में धांधली की बू पहले ही लग गई थी।

वे बताते हैं, जब नतीजों में मेरा चयन नहीं हुआ तो थोड़ी निराशा हुई। लेकिन, इससे ज्यादा मेरे भीतर इस बात को लेकर आक्रोश था कि कई योग्य अभ्यर्थियों का हक छीना गया था। पहले तो उन युवाओं ने बोर्ड गठन के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और जब इसके बाद उनका अवसर आया था उन्हें हाशिए पर धकेल दिया गया।

रविंद्र ने इस राजफाश के लिए रिकार्ड 200 आरटीआई आवेदन लगाए। इन आवेदनों से मिली जानकारी ने वो चौंकाने वाले सबूत दिए कि 300 नंबर की परीक्षा में कई अभ्यर्थियों को 304 और 307 नंबर दिए गए थे।

हाईकोर्ट में मिली जीत, पीएससी को झुकना पड़ा

इस जानकारी को जुटाने में उन्होंने दो साल से अधिक का समय लगाया। सूचना का अधिकार अधिनियम आने के बाद उनके हाथ और मजबूत हुए। आखिरकार, वे अपनी लड़ाई को लेकर हाईकोर्ट पहुंचे और वहां पुख्ता सबूतों के साथ साबित कर दिया कि परीक्षा में बड़े स्तर पर धांधली की गई थी। उनके अथक संघर्ष और दस्तावेजों के सामने पीएससी बोर्ड को भी अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी। 14 साल लंबी चली यह कानूनी लड़ाई अंततः न्याय के हक में गई।

शिक्षा और न्याय की सच्ची मिसाल

रविंद्र एक सामान्य परिवार से आते हैं। उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में पीएससी प्री और मेंस की परीक्षा पास कर ली थी। वे किताबों में समय बिताने वाले व्यक्ति हैं। वे सभी के लिए समान शिक्षा के पक्षधर हैं।

रविंद्र सिंह का मानना है कि शिक्षा से मिला आत्मविश्वास ही किसी भी व्यक्ति को शिखर तक पहुंचा सकता है। वह कहते हैं कि स्वतंत्रता का सही अर्थ तभी है, जब हर किसी को उसके अधिकारों का वास्तविक लाभ मिले। उनकी यह कहानी उन सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है, जो मानते हैं कि एक व्यक्ति भी चाहे तो पूरे सिस्टम को बदल सकता है, बस हौसला और न्याय की जिद नहीं टूटनी चाहिए।

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