बेंजामिन नेतन्याहू के मार्मिक भाषण के दुर्लभ प्रसंग

बेंजामिन नेतन्याहू के मार्मिक भाषण के दुर्लभ प्रसंग

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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75 साल पहले हमें मरने के लिए यहां लाया गया था। हमारे पास न कोई देश था न कोई सेना थी। सात देशों ने हमारे विरुद्ध जंग छेड़ दी। हम सिर्फ 65000 थें। हमें बचाने के लिए कोई नहीं था। हम पर हमलें होतें रहे, होते रहे। लेबनान, सीरिया, इराक़, जॉर्डन,मिश्र, लीबिया, सऊदी, अरब जैसे कई देशों ने हमारे उपर कोई दया नहीं दिखाई। सभी लोग हमें मारना चाहते थे, किंतु हम बच गए।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने हमें धरती दी,
वह धरती जो 65 प्रतिशत रेगिस्तान थी।
हमने उसको भी अपने खून से सींचा।
हमने उसे ही अपना देश माना क्योंकि हमारे लिए वही सबकुछ था।
हम कुछ नहीं भूलें। हम फिर इन से बच गए।
हम स्पेन से बच गए। हम हिटलर से बच गए।
हम अरब से बच गए।
हम सद्दाम हुसैन से बच गए।
हम गद्दाफी से बच गए।
हम हमास से भी बचेंगे,
हम हिज्बुल्लाह से भी बचेंगे और हम ईरान से भी बचेंगे।

हमारे जेरुसलम पर अब तक 52 बार आक्रमण किया गया, 23 बार घेरा गया,
39 बार तोड़ा गया, तीन बार बर्बाद किया गया, 44 बार कब्जा किया गया..
लेकिन हम अपने जेरुसलम को कभी नहीं भूले वह हमारे हृदय में हैं, वह हमारे मस्तिष्क में हैं और जब तक हम रहेंगे जेरुसलम हमारी आत्मा में रहेगा।
संसार यें याद रखें कि जिन्होंने हमें बर्बाद करना चाहा वह आज स्वयं नहीं है। मिश्र, लेबनान, वेवीलोन, यूनान, सिकंदर, रोमन सब खत्म हो गयें है।
हम फिर भी बचे रहें।

हमें वे (इस्लाम) खत्म करना चाहते हैं।
उन्होंने हमारें रस्म रिवाज को कब्जाया।
उन्होंने हमारें उपदेशों को कब्जाया। उन्होंने हमारी परंपरा को कब्जाया। उन्होंने हमारें पैगंबर को कब्जाया। कुछ समय पश्चात अब्राहम इब्राहिम कर दिया गया, सोलोमन, सुलेमान हो गया, डेविड, दाऊद बना दिया गया। मोजेज मूसा कर दिया गया। फिर एक दिन उन्होंने कहा – तुम्हारा पैगंबर (मुहम्मद) आ गया है। हमने इसे नहीं स्वीकार किया। करते भी कैसे ? उनके आने का समय नहीं आया था। उन्होंने कहा स्वीकार करो़, कबूल लो। हमने नहीं कबूला। फिर हमें मारा गया। हमारे शहर को कब्जाया गया।
हमारे शहर यसरब को मदीना बना दिया गया। हम क़त्ल हुए,भगा दिए गए।

मक्का के काबा में हम दों लाख थें, मार दिए गए। हमें दुश्मन बता कर क़त्ल किया गया।
फिर सीरिया में, ओमान में यही हुआ।
हम तीन लाख थें मार दिए गए इराक़ में हम दों लाख थें, तुर्की में चार लाख हमें मारा जाता रहा, मारें जाता रहा। वें हमें मार रहे हैं, मारते जा रहें हैं। हमारे शहर,धन, दौलत, घर, पशु, मान सम्मान सब कुछ कब्जाये़ जातें रहें, फिर भी हम बचें रहें। 1300 सालों में करोड़ों यहूदियों को मारा गया, फिर भी हम बचें रहें। 75 साल पहले वें हम पर थूकते थें, ज़लील करतें थें, मारते थे।हमारी नियति यही थी किंतु हम स्वयं पर, अपने नेतृत्व पर, अपने विश्वास पर टिके रहे हैं।

आज हमारे पास एक अपना देश है।
एक स्वयं की सेना है, एक छोटी अर्थव्यवस्था है। इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम, फेसबुक जैसी कई संस्थाएं हमने इस दौर में बनाई।
आज हमारे चिकित्सक दवा बना रहे हैं,
लेखक किताबें लिख रहें हैं। यें सबके लिए है,
यह मानवता के कल्याण के लिए है।
हमने रेगिस्तान को हरियाली में बदला,
हमारे फल, दवाएं, उपकरण, उपग्रह सभी के लिए है। हम किसी के दुश्मन नहीं है,
हमने किसी को खत्म करने की क़सम नहीं खाई है। हमें किसी को बर्बाद नहीं करना, हम साजिश भी नहीं करते, हम जीना चाहते हैं सिर्फ सम्मान से, अपने देश में, अपनी जमीन पर, अपने घर में।

पिछले हजार सालों से हमें मिटाया गया,
खदेड़ा गया, कब्जाया जाता रहा, हम मिटे नहीं, हारे नहीं और न आगे कभी हारेंगे। हम जीतेंगे, हम जीत कर रहेंगे। हम 3000 सालों से यरुसलम में ही थें। आज़ हम अपने पहले देश इजरायल में है। यह हमारा ही था, हमारा ही है और हमारा ही रहेगा। यरुसलम हमसे है और हम यरुसलम से है।

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