रेणु-साहित्य के आलोकन, अवलोकन, आलोचना से जुड़ना आवश्यक है।-प्रो.संजीव कुमार शर्मा.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिंदी विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार के तत्वावधान में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम श्रृंखला के अंतर्गत ‘फणीश्वरनाथ रेणु के साहित्य में गाँव’ विषयक राष्ट्रीय परिसंवाद कार्यक्रम का आयोजन आभासीय मंच के माध्यम से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति आदरणीय प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने की। प्रति-कुलपति प्रो.जी.गोपाल रेड्डी का सान्निध्य सभी को प्राप्त हुआ।

मुख्य अतिथि के रूप में प्रो.योगेंद्र प्रताप सिंह(आचार्य, हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज) विशिष्ट अतिथि के रूप प्रो.जितेंद्र श्रीवास्तव(आचार्य, हिंदी विभाग, इंदिरा राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली) एवं मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.सतीश कुमार राय(अध्यक्ष, हिंदी विभाग, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर) के वक्तव्य से हम सभी समृद्ध हुए।

स्वागत वक्तव्य देते हुए परिसंवाद कार्यक्रम के संयोजक एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार प्रो.राजेंद्र सिंह ने कहा कि रेणु अपने रचनाकर्म से प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।’आज़ादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम समिति के अध्यक्ष एवं प्रति-कुलपति प्रो.जी.गोपाल रेड्डी ने आशीर्वचन प्रदान करते हुए भारतीय स्वाधीनता की ऐतिहासिक यात्रा को रेखांकित किया।

मुख्य-वक्तव्य देते हुए प्रो.सतीश कुमार राय (अध्यक्ष, हिंदी विभाग, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर) ने कहा कि, रेणु अपने साहित्य में ‘हृदय-परिवर्तन’ की बात करते हैं। रेणु ने कई संस्कृतियों को देखा है और उसे अपनी रचना का स्वर बनाया है। राजनीति के प्रवेश के बाद भी रेणु-साहित्य के ‘गाँव’ का भरोसा ‘मोहब्बत’ में है। मनुष्यता के उसी भरोसे को जिंदा रखने के लिए हमें बार-बार रेणु-साहित्य को पढ़ना होगा।

विशिष्ट-अतिथि के रूप में प्रो.जितेंद्र श्रीवास्तव(आचार्य, हिंदी विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय,नई दिल्ली) ने कहा कि, भारत का ‘अधिकांश’ गाँवों से जुड़ा है। आज़ादी के बाद के गाँवों के तीक्ष्ण यथार्थ को रेणु ने अपनी रचना का स्वर बनाया है। रेणु के यहाँ कोई ‘पर्दा’ नहीं है। वह अपने अनुभवों पर भरोसा रखते हैं। लेखक किसी एक निश्चित भू-भाग का हिस्सा नहीं होता। समग्रता ही लेखन को प्रासंगिक बनाती है। रेणु की रचनाओं में यही ‘विश्व-दृष्टि’ है।

कार्यक्रम के मुख्य-अतिथि प्रो.योगेंद्र प्रताप सिंह(आचार्य, हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज) ने रेणु के कथेतर-साहित्य पर अपना व्याख्यान दिया। आपने कहा कि रेणु ने रिपोतार्ज-लेखन को अपने सृजन से शिखर पर पहुँचाया है। रेणु गाँवों के स्वतः बदलाव का चित्रण करते हैं। ‘सत्य’ से भटकी ‘तथ्य’ में उलझी आज की पत्रकारिता को रेणु-साहित्य के सत्य के विभन्न रंगों से मिलना बहुत ज़रूरी है। रेणु की कलम युगों-युगों तक जानी जायेगी।

अध्यक्षीय-वक्तव्य देते हुए प्रो.संजीव कुमार शर्मा(माननीय कुलपति, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार) ने कहा कि, रेणु और नागार्जुन हिंदी साहित्य के नक्षत्र हैं। आज अलोकन, अवलोकन एवं आलोचना के माध्यम से इनके साहित्य से हमें गुजरना होगा।

सभी के प्रति धन्यवाद-ज्ञापन परिसंवाद कार्यक्रम के सह-संयोजक एवं हिंदी विभाग के सह-आचार्य डॉ.अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने किया। हिंदी विभाग के शोधार्थी साथियों बिना बड़ाईक, विकास गिरी, सुजाता कुमारी, अशर्फी लाल एवं मनीष कुमार भारती ने सम्मानित अतिथि-शिक्षकों का व्यवस्थित परिचय प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग की शोधार्थी रश्मि सिंह ने किया।

आभार-रश्मि सिंह
शोधार्थी, हिंदी विभाग
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार।

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