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सआदत हसन मंटो ऐसे साहित्यकार रहे जो अपने समय से आगे की रचनाएँ लिख डाले. - श्रीनारद मीडिया

सआदत हसन मंटो ऐसे साहित्यकार रहे जो अपने समय से आगे की रचनाएँ लिख डाले.

सआदत हसन मंटो ऐसे साहित्यकार रहे जो अपने समय से आगे की रचनाएँ लिख डाले.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सआदत हसन मंटो की गिनती ऐसे साहित्यकारों में की जाती है जिनकी कलम ने अपने वक़्त से आगे की ऐसी रचनाएँ लिख डालीं जिनकी गहराई को समझने की दुनिया आज भी कोशिश कर रही हैप्रसिद्ध कहानीकार मंटो का जन्म 11 मई 1912 को पुश्तैनी बैरिस्टरों के परिवार में हुआ था। उनके पिता ग़ुलाम हसन नामी बैरिस्टर और सेशन जज थे। उनकी माता का नाम सरदार बेगम था, और मंटो उन्हें बीबीजान कहते थे। मंटो बचपन से ही बहुत होशियार और शरारती थे। मंटो ने एंट्रेंस इम्तहान दो बार फेल होने के बाद पास किया। इसकी एक वजह उनका उर्दू में कमज़ोर होना था। मंटो का विवाह सफ़िया से हुआ था। जिनसे मंटो की तीन पुत्री हुई।

सआदत हसन मंटो  जन्म:11 मई, 1912, समराला, पंजाब; मृत्यु: 18 जनवरी, 1955, लाहौर कहानीकार और लेखक थे। मंटो फ़िल्म और रेडियो पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे। मंटो की कहानियों की बीते दशक में जितनी चर्चा हुई है, उतनी शायद उर्दू और हिन्दी और शायद दुनिया के दूसरी भाषाओं के कहानीकारों की कम ही हुई है। आंतोन चेखव के बाद मंटो ही थे, जिन्होंने अपनी कहानियों के दम पर अपनी जगह बना ली।

1948 के बाद मंटो पाकिस्तान चले गए। पाकिस्तान में उनके 14 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें 161 कहानियाँ संग्रहित हैं। इन कहानियों में सियाह हाशिए, नंगी आवाज़ें, लाइसेंस, खोल दो, टेटवाल का कुत्ता, मम्मी, टोबा टेक सिंह, फुंदने, बिजली पहलवान, बू, ठंडा गोश्त, काली शलवार और हतक जैसी चर्चित कहानियाँ शामिल हैं। जिनमें कहानी बू, काली शलवार, ऊपर-नीचे, दरमियाँ, ठंडा गोश्त, धुआँ पर लंबे मुक़दमे चले। हालाँकि इन मुक़दमों से मंटो मानसिक रूप से परेशान ज़रूर हुए लेकिन उनके तेवर ज्यों के त्यों थे।

“ज़माने के जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं, अगर आप उससे वाकिफ़ नहीं हैं तो मेरे अफसाने पढ़िये और अगर आप इन अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है कि ज़माना नाक़ाबिले-बर्दाश्त है.”सआदत हसन मंटो.

मंटो के 19 साल के साहित्यिक जीवन से 230 कहानियाँ, 67 रेडियो नाटक, 22 शब्द चित्र और 70 लेख मिले। तमाम ज़िल्लतें और परेशानियाँ उठाने के बाद 18 जनवरी, 1955 में मंटो ने अपने उन्हीं तेवरों के साथ, इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

मंटो की प्रसिद्ध रचनाएँ

 

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