सेना के जाबांज सिपापी कैप्टन विक्रम बत्रा को नमन!

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पूण्यतिथि पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आज ही के दिन यानी की 7 जुलाई को पालमपुर के वीर सिपाही कैप्टन विक्रम बत्रा ने वीरगति प्राप्त की थी। दुश्मन विक्रम बत्रा के नाम से थर-थर कांपते थे।12वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में ग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू की। इसी दौरान वह एनसीसीए एयर विंग में शामिल हो गए।

विक्रम बत्रा ने एनसीसीए एयर विंग को सी सर्टिफिकेट से क्वालिफाई किया। एनसीसी में ही उन्हें कैप्टन विक्रम बत्रा की रैंक मिली। जिसके बाद साल 1994 में विक्रम बत्रा ने गणतंत्र दिवस परेड में एनसीसी कैडेट के रूप में भाग लिया था। कॉलेज के दौरान विक्रम बत्रा को शिपिंग कंपनी के साथ मर्चेंट नेवी के लिए चुना गया था, लेकिन उन्होंने इस इरादे को बदल दिया।

कारगिल युद्ध

साल 1999 में बत्रा की टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों पर विजय मिलने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाकिस्तान की सेना से मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस दौरान वह अपनी टुकड़ी के साथ पूर्व दिशा की तरफ से आगे बढ़े और शत्रुसेना को बिना भनक लगे बिना उनके नजदीक पहुंच गए।

चोटी पर पहुंचने के बाद कैप्टन बत्रा की टुकड़ी ने पाक सेना के जवानों पर हमला बोल दिया। इस दौरान कैप्टन बत्रा ने सबसे आगे रहकर अपनी सेना का नेतृत्व की किया और निडरता के साथ दुश्मन सेना को पीछे धकेलते रहे। आमने-सामने की इस लड़ाई में चार दुश्‍मनों को मौत के घाट उतार दिया।

विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह 5140 चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। जब कैप्टन बत्रा ने इस चोटी से रेडियो के द्वारा अपनी सेना की जीत की खबर ‘यह दिल मांगे मोर’ कहकर सुनाई। जिसके बाद विक्रम बत्रा का नाम न सिर्फ भारतीय सेना बल्कि पूरे देश में छा गया। इसी दौरान उनको कोड नाम शेरशाह के साथ ही कारगिल के शेर की उपाधि दी गई। चोटी 5140 से भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में छा गया।

प्वाइंट 4875 चोटी पर फतह 

इस चोटी पर विजय पाने के बाद विक्रम बत्रा की सेना द्वारा 7 जुलाई 1999 को प्वाइंट 4875 चोटी को कब्ज़े में लेने का अभियान शुरू किया गया। बता दें यह चोटी ऐसी मुश्किल जगह पर थी, जहां पर दोनों तरफ खड़ी ढलान थी। उसी रास्ते पर दुश्मनों ने नाकाबंदी की हुई थी। लेकिन कैप्टन विक्रम बत्रा ने इस अभियान को पूरा करने के लिए संर्कीण पठार के पास से दुश्‍मन ठिकानों पर हमला करने का फैसला लिया।

इस दौरान आमने-सामने के युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा ने पॉइंट ब्लैक रेंज में पांच दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। लेकिन इस दौरान कैप्टन बत्रा खुद दुश्मन स्‍नाइपर के निशाने पर आ गए और वह बुरी तरह से जख्मी हो गए। लेकिन इसके बाद भी वह दुश्मनों पर ग्रेनेड से हमला करते रहे। इस युद्ध में कैप्टन बत्रा ने सबसे आगे रहकर असंभव कार्य को भी संभव कर दिया। अपनी जान की परवाह किए बिना कैप्टन विक्रम बत्रा ने विजय हासिल की। लेकिन गंभीर रूप से जख्मी होने के कारण 7 जुलाई 1999 को भारत मां के इस वीर सपूत ने अपनी आखें सदा के लिए बंद कर ली।

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