देश के 9वें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को नमन

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आज 15 वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

युवा तुर्क के नाम से मशहूर रहे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की आठ जुलाई को पुण्यतिथि है। चंद्रशेखर से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं, जिन्हें आज भी सुना-सुनाया जाता है।

बलिया के इब्राहिमपट्टी में 17 अप्रैल 1927 को जन्म लिए चंद्रशेखर ने वर्ष 2007 में आज ही के दिन अंतिम सांसें ली थीं। वह पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने सीधे प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। चंद्रशेखर अंतिम बार 2006 में बलिया आए थे। बलिया के लोग आज भी उनके उस मानवीय पक्ष को याद कर भावुक हो जाते हैं।

बलिया पहुंचते ही रो पड़े थे चंद्रशेखर

आज शनिवार को 14वीं पुण्यतिथि पर चंद्रशेखर के किरदार को सभी याद कर रहे हैं। बात 10 अक्टूबर 2006 की है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर आखिरी बार बलिया आए थे। उन्हें बलिया की मिट्टी से कितना लगाव था इसका उदाहरण भी वह अंतिम यात्रा ही थी। अस्वस्थ हाल में ही उन्होंने दिल्ली से बलिया आने का मन बना लिया था।

स्टेशन परिसर भीड़ से खचाखच भरा था। दो घंटे के इंतजार के बाद स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन स्टेशन पहुंची। हजारों की भीड़ ट्रेन के उस डिब्बे की ओर बढ़ चली, जिसमें चंद्रशेखर सवार थे। चंद्रशेखर धीरे-धीरे गेट पर आए और भीड़ को देख ट्रेन के गेट पर ही फफक-फफक कर रो पड़े। कुछ देर के लिए वहां अजीब सा सन्नाटा पसर गया। सबकी आंखें द्रवित हो गईं थीं।

वह ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने युवा साथियों के माध्यम से देश को समाजवादी दिशा में ले जाने का प्रयास किया। देश को उबारने के लिहाज से जयप्रकाश नारायण के साथ आकर खड़े हो गए। इसकी कीमत उन्हें जेल में नजरबंदी के रूप में चुकानी पड़ी। इसके बावजूद भी वे झुके नहीं बल्कि समाजवाद के प्रति उनकी धारणा और बढ़ गई।

कैसे बने प्रधानमंत्री

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने लोकसभा में 400 से अधिक सीटें जीती थी। लेकिन राजीव गांधी सरकार पर लगे बोफोर्स घोटाले के आरोपों के बाद 1989 के चुनावों में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और जनता दल की सरकार बनी।

एक वर्ष के अंतराल में ही भाजपा के समर्थन वापस लेने के कारण वीपी सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई और उनकी पार्टी के 64 सांसद अलग हो गए। कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बन गए। 3 महीने के बाद ही कांग्रेस ने राजीव की जासूसी कराने के आरोप में चंद्रशेखर की पार्टी से समर्थन वापस ले लिया। आदर्शवादी नेता के रूप में पहचान वाले चंद्रेखर 21 जून 1991 को इस्तीफा देना पड़ा।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ली एम.ए. की डिग्री

दिवंगत चंद्रशेखर सिंह ने भीमपुरा के राम करन इण्टर कॉलेज से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद ‘पूर्व का ऑक्सफोर्ड’ कही जाने वाली इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री प्राप्त की थी. उन्होंने 1950-51 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में यह डिग्री प्राप्त की थी. छात्र जीवन में उन्होंने एक फायर ब्रान्ड नेता के तौर पर पहचान बना ली थी. जिसके बाद वह समाजवादी राजनीति में सक्रिय रूप से जुड़ गए थे.

1977 में वह पहली बार लोकसभा सांसद

इसके बाद उन्हें सक्रिय राजनीति में कदम रखने के साथ ही 195-56 में उत्तर प्रदेश के राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के महासचिव का पद भी संभाला था. जिसके बाद वह 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए. इसके बाद उन्होंने 1965 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का हाथ थाम लिया और 1967 में उन्हें कांग्रेस संसदीय दल का महासचिव चुना गया. साल 1977 में वह पहली बार बलिया से लोकसभा सदस्य चुने गए.

कांग्रेस में पद पर रहने के बाद आपातकाल में हुई जेल

चंद्रशेखर सिंह ने 1969 में दिल्ली से प्रकाशित होने वाली एक साप्ताहिक पत्रिका ‘यंग इंडियन’ के संस्थापक और संपादक का पद भी संभाला. फिलहाल अपने खुलकर बोलने और तीखे व्यक्तित्व के कारण कांग्रेस में रहने के बाद भी उन्हें आपातकाल के दौरान जेल में डाल दिया गया था. जिस दौरान 1975 से 1977 ‘यंग इंडियन’ का प्रकाशन रोक दिया गया था.

1990 में काग्रेस के समर्थन से बने प्रधानमंत्री

वहीं आपात काल के बाद चंद्रशेखर सिंह ने विपक्षी दलों के द्वारा बनाई गई जनता दल का अध्यक्ष चुना गया था.  वहीं 1977 में जब उनकी पार्टी सत्ता में आई तो उन्होंने मंत्री पद से इंकार दिया था. वहीं साल 1990 में उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला. उस वक्त राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने उनका समर्थन किया था. जिसके बाद वह 7 महीने ही सरकार चला सके, कांग्रेस की बात मानने से इंकार करने पर राजीव गांधी ने उनसे अपना समर्थन वापस ले लिया था.

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