सात प्रधानमंत्रियों ने पूरा करने की कोशिश की लेकिन सफलता पीएम मोदी को मिली,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कश्मीर से कन्याकुमारी तक रेल संपर्क का सपना अब एक हकीकत है, लेकिन इस सपने को साकार करना आसान नहीं था। इस सपने को पूरा करने की कोशिश सात प्रधानमंत्रियों ने की, लेकिन इनमें से दो- अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह ही एक हद सफल रहे और कामयाबी की पूरी कहानी लिखी पीएम मोदी ने। जम्मू तक तो रेल 1972 में पहुंच गई थी। जम्मू से कश्मीर को रेल नेटवर्क से जोड़ने का काम प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1983 में अपने हाथ लिया।

उन्होंने जम्मू- उधमपुर उन्होंने जम्मू-उधमपुर के बीच 54 किमी की रेलवे लाइन पूरा करने के लिए एक परियोजना का शिलान्यास किया और इसे पांच साल में पूरा करने का एलान किया, लेकिन शिलान्यास के बाद कुछ नहीं हो सका। जम्मू से उधमपुर तक रेलवे लाइन 54 किमी लंबी है। इसके आगे उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना 272 किमी लंबी है।
इंदिरा जी के बाद के कई प्रधानमंत्रियों ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया, लेकिन अटल जी के पीएम बनने तक केवल शिलान्यास ही होते रहे। इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने अपनी मां के सपने को साकार करने का प्रयास किया। 1986 में उन्होंने इस परियोजना के निर्माण के लिए शिलान्यास किया। यह वही निर्माण था, जिसका शिलान्यास इंदिरा जी कर चुकी थीं। राजीव गांधी भी इस परियोजना को आगे नहीं बढ़ा पाए।
1991 में जब नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने, तब 1995 में उनकी ओर से रेलमंत्री सुरेश कलमाडी ने तीसरी बार जम्मू-उधमपुर रेलवे लाइन का शिलान्यास किया। इसके अगले साल 1996 में राव सरकार ने जम्मू-उधमपुर रेलवे लाइन को बारामुला तक ले जाने की एक परियोजना को मंजूरी दी। उस समय इसकी अनुमानित लागत लगभग 26 हजार करोड़ रूपये थी। 1996 में एचडी देवेगौड़ा पीएम बने।
उन्होंने मार्च 1997 में चौथी बार उधमपुर-जम्मू रेलवे लाइन का शिलान्यास किया। उनके बाद प्रधानमंत्री बने इंद्र कुमार गुजराल। उन्होंने पीएम पद संभालने के लगभग तीन माह बाद बारामुला में इस परियोजना का शिलान्यास किया। इस परियोजना में काफी कुछ ठोस प्रगति हुई अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में। 

2002 में उन्होंने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया। मार्च 2003 में उन्होंने श्रीनगर की एक रैली में कश्मीरियों का दिल जीतने वाली इंसानियत,जम्हूरियत और कश्मीरियत की बात कही और अगले दिन काजीगुंड में राष्ट्रीय महत्व की इस परियोजना का शिलान्यास किया। इसके बाद ही जम्मू से उधमपुर और उधमपुर से आगे परियोजना पर काम शुरु हुआ। 

वाजपेयी सरकार ने इस परियोजना के लिए पर्याप्त धन का भी प्रंबध किया। इसीलिए गत छह जून को कटड़ा-श्रीनगर के लिए वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा झंडी दिखाने और इस परियोजना के संपन्न होने पर आयोजित समारोह में उमर अब्दुल्ला ने उनके योगदान को खास तौर पर याद किया।
अटल जी ने इस परियोजना की समय सीमा 2007 तय की थी,लेकिन इसमें 18 वर्ष की देर हो गई। वाजपेयी के बाद प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह ने 2005 में जम्मू-उधमपुर रेलवे लाइन का उदघाटन किया और फिर रेल उधमपुर पहुंच गई। इसके बाद अक्टूबर 2008 में उन्होंने अनंतनाग-श्रीनगर-मजहोम बडगाम रेलवे लाइन राष्ट्र को समर्पित की। 

इसके बाद फरवरी 2009 में उन्होंने ही मजहोम-बारामुला रेलवे लाइन और उसके कुछ ही माह बाद काजीगंड-अनंतनाग रेलवे लाइन जनता को समर्पित की। इससे दक्षिण से उत्तर कश्मीर तक रेल चलने लगी। इसके बावजूद घाटी का जम्मू से कोई रेलसंपर्क नहीं था। इसमें एक बड़ी बाधा पीरपंजाल पर्वत श्रृंखला थी। इस पर्वत श्रृंखला में इस 11.7 किमी लंबी सुरंग बनाई गई। यह जम्मू क्षेत्र के बनिहाल से कश्मीर के काजीगुंड तक है। जून 2013 में मनमोहन सिह ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। 

2014 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। जुलाई 2014 में उन्होंने कटड़ा-उधमपुर रेलवे लाइन राष्ट्र को समर्पित की। अब सिर्फ कटड़ा से बनिहाल तक रेल सफर रह गया था। कश्मीर से बनिहाल तक रेल आ रही थी और दूसरी तरफ जम्मू से कटड़ा तक रेल का आवागमन जारी था। मोदी सरकार की सक्रियता से कटड़ा से बनिहाल तक के जटिल भाग को दो चरणों में पूरा किया गया। बनिहाल से संगलदान तक रेलवे लाइन को 2023 में तैयार कर लिया गया और फरवरी 2024 में इस पर रेल परिचालन शुरु हो गया। इसी भाग में सुंबड़ और खड़ी के बीच भारत की सबसे लंबी 12.77 किलोमीटर लंबी रेलवे सुरंग है। 

अब रेल संगलदान से बारामुला तक तो चलने लगी, लेकिन कश्मीर से कन्याकुमारी तक रेल संपर्क के सपने में कटड़ा-संगलदान सेक्शन बाधा बना हुआ था, जिस पर चिनाब नदी और अंजी खड्ड सबसे बड़ी मुश्किल पैदा कर रहे थे।इस मुश्किल को चिनाब पर दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे आर्च ब्रिज और अंजी खड्डी पर 725 मीटर लंबा और 96 उच्च-तनाव वाले केबलों द्वारा टिका हुआ भारत का पहला केबल-स्टेड रेलवे पुल निर्माण सेआसान बनाया गया और छह जून को प्रधानमंत्री मोदी ने कटड़ा से श्रीनगर के लिए रेल सेवा को हरी झंडी दिखाकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक के रेल यात्रा के सपने को सच कर दिखाया। 

जम्मू कश्मीर में आर्थिक -सामाजिक विकास की एक नई कहानी लिखने वाली यह परियोजना इंजीनियरिंग और प्रकृति से पार पाने की मानवीय दृढ़ता है,लेकिन उससे भी ज्यादा यह राजनीतिक इच्छाशक्ति की मुहंबोलती तस्वीर है। इस परियोजना के काजीगुंड-श्रीनगर-बारामुला सेक्शन को पूरा करना जितना आसान था, उससे कहीं ज्यादा दुष्कर इसके अंतिम खंड कटड़ा-संगलदान को पूरा करना। यह मात्र 63 किलोमीटर है और इसी पर चिनाब दरिया पुल, अंजी खड्ड केबल ब्रिज और 20 सुरंगें है। 

उधमपुर से बारामुला तक इस रेलवे लाइन पर कुल 36 सुरंगें हैं और इनमें 10 सुरंगें कटड़ा-उधमपुर के बीच हैं,पांच संगलदान-बनिहाल के बीच और एक बनिहाल व काजीगुंड के सुरंग लगभग 11.7 किलोमीटर लंबी है । कटड़ा-संगलदान-बनिहाल के बीच 35 सुरंगें हैं और इस पूरे खंड की लंबाई 111 किलोमीटर है। इसी भाग में 12.77 किलोमीटर लंबी रेलवे सुरंग है। 

जम्मू-कश्मीर मामलों के जानकार संत कुमार शर्मा ने कहा कि इस परियोजना के लिए पैसा और दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति चाहिए था, जिसके अभाव काम नींव पत्थर तक ही सीमित रह जाता था। इसलिए वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सच्चाई को समझा और उन्होने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया। 

मार्च 2003 में उन्होंने कश्मीर में अपनी यात्रा के पहले दिन श्रीनगर में इंसानियत,जम्हूरियत और कश्मीरियत का नारा दिया था और अगले दिन काजीगुंड में उन्होंने भी रेल परियोजना का नींव पत्थर रखा और उसके बाद ही जम्मू से उधमपुर और उधमपुर से आगे परियोजना पर काम शुरु हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी ने इस पूरी परियोजना की समय सीमा वर्ष 2007 तय की थी,लेकिन इसमें 18 वर्ष की देरी हो गई।

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