शरद पूर्णिमा: चांदनी रात होगी अमृत की बरसात

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सनातन धर्म में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा की मान्यता शरद पूर्णिमा की है। आरोग्य-ऐश्वर्य व सुख-समृद्धि कामना का यह पर्व इस बार नौ अक्टूबर को पड़ रहा है। पूर्णिमा तिथि नौ अक्टूबर की भोर 3.29 बजे लग रही है जो 10 अक्टूबर की भोर 2.24 बजे तक रहेगी। नौ अक्टूबर को शरद पूर्णिमा के साथ ही कोजागरी व्रत की पूर्णिमा भी मनाई जाएगी।

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार शास्त्र सम्मत है कि शरद पूर्णिमा पर प्रदोष व निशिथ काल में होने वाली पूर्णिमा ली जाती है। वहीं कोजागरी व्रत की पूर्णिमा निशिथ व्यापिनी होनी चाहिए। अत: शरद पूर्णिमा व कोजागरी व्रत की पूर्णिमा दोनों ही नौ अक्टूबर को मनाई जाएगी।

संपूर्ण वर्ष भर में चंद्रमा षोडश कलाओं से युक्त होता है

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वर्ष में सिर्फ एक बार शरद पूर्णिमा पर ही संपूर्ण वर्ष भर में चंद्रमा षोडश कलाओं से युक्त होता है। इस विशेषता के कारण शृंगार रस के साक्षात स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने इसी अवसर को रासोत्सव के लिए उपयुक्त माना था। मान्यता है कि इस रात्रि में चंद्र किरणों से अमृत वर्षा होती है।

शरद पूर्णिमा को प्रातःकाल आराध्य देव को श्वेत वस्त्र-आभूषण से सुशोभित कर पंचोपचार-षोडशोपचार पूजा करना चाहिए। रात में गाय के दूध की घी-मिष्ठान मिश्रित खीर प्रभु को अर्पित करना चाहिए। मध्याकाश में स्थित पूर्ण चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। साथ ही खीर का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। दूसरे दिन इसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करना चाहिए। आयुर्वेद शास्त्र ने औषधियों का स्वामी नक्षत्राधिपति चंद्रमा को माना है। इसीलिए इस रात चंद्र किरणों में औषधीय अमृत गुण आ जाता है। इसके सेवन से जीवन शक्ति मजबूत होती है।

मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी ऐरावत पर सवार हो पृथ्वीलोक पर भ्रमण के लिए आती हैं और पूछती हैैं- ‘को जागृयेति’। व्रत व भजन-पूजन के साथ रतजगा कर रहे भक्तों को यश-कीर्ति व समृद्धि का आशीष देती हैैं। स्थिर लक्ष्मी के रूप में घर में विराजती हैं। इस पूजा को ‘कोजागरी उत्सव’ के नाम से जाना जाता है। तिथि विशेष पर ऐरावत पर सवार भगवान इंद्र व माता लक्ष्मी का पूजन और उपवास करना चाहिए।

हिंदू धर्म में सभी पूर्णिमा तिथियों में अश्विन माह की शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। शारदीय नवरात्रि के खत्म होने के बाद अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर शरद पूर्णिमा या कोजागर पूर्णिमा मनाई जाती है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा 09 अक्तूबर, रविवार को है। शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस रात को सुख और समृद्धि प्रदान करने वाली रात माना जाता है, क्योंकि कोजागरी पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और घर-घर भ्रमण करती हैं।

शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है और इस दिन घर की साफ-सफाई करते हुए मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप किया जाता है। मान्यता है कि जिन घरों में सजावट और साफ-सफाई रहती है और रातभर जागते हुए मां लक्ष्मी की आराधना होती है वहां पर देवी लक्ष्मी जरूर वास करती हैं और व्यक्ति को सुख, धन-दौलत और ऐशोआराम का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इसके अलावा शरद पूर्णिमा पर रातभर खुले आसमान के नीचे खीर रखी जाती है।

मान्यता है कि रात भर चांद की रोशनी में शरद पूर्णिमा पर खीर रखने से उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं। फिर अगले दिन सुबह-सुबह इस खीर का सेवन करने पर सेहत अच्छी रहती है। आइए विस्तार से जानते हैं आखिरकार शरद पूर्णिमा की रात्रि पर खीर रहने और खाने के कौन-कौन से फायदे हैं।

शरद पूर्णिमा पर खीर का महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार चन्द्रमा को मन और औषधि का देवता माना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात को चांद अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है। इस दिन चांदनी रात में दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है इससे विषाणु दूर रहते हैं।

शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में खीर रखने का विधान है। खीर में मौजूद सभी सामग्री जैसे दूध,चीनी और चावल के कारक भी चन्द्रमा ही है,अतः इनमें चन्द्रमा का प्रभाव सर्वाधिक रहता है। शरद पूर्णिमा के दिन खुले आसमान के नीचे खीर पर जब चन्द्रमा की किरणें पड़ती है तो यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है।

प्राकृतिक चिकित्सालयों में तो इस खीर का सेवन कुछ औषधियां  मिलाकर दमा के रोगियों को भी कराया जाता है। यह खीर पित्तशामक,शीतल,सात्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है। इससे चित्त को शांति मिलती है।

शरद पूर्णिमा पर क्या करें
– शरद पूर्णिमा पर रात भर जागते हुए मां लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए।
– व्यक्ति को शरद पूर्णिमा की रात को कम से कम कुछ घंटों के लिए चंद्रमा की शीतल चांदनी में बैठना चाहिए।
– इस दिन बनने वाला वातावरण दमा के रोगियों के लिए विशेषकर लाभकारी माना गया है।
– शास्त्रों के अनुसार लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। मान्यता है कि इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी।
– चांदनी रात में कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है,जिससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
– शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा की तरफ एकटक निहारने से या सुई में धागा पिरोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
– शरद पूर्णिमा की रात को 10 से 12 बजे का समय जब चंद्रमा की रोशनी अपने चरम पर होती हैं, इसलिए इस दौरान चंद्रमा के दर्शन जरूर करना चाहिए।

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