ज्ञान और लेखन कौशल के शाश्वत हस्ताक्षर थे श्यामदेव नारायण पाण्डेय: राजेश पाण्डेय

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32वीं पुण्यतिथि पर परिवार ने श्रद्धा सुमन किया अर्पित

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

“माधव कत तोर करब बढ़ाई
उपमा तोर कहब ककरा हम
कहितहुॅ अधिक लजाई”।
( अर्थात मेरी कथनी अतिशयोक्ति प्रतीत होगी और उसका आधा अधूरा वर्णन करना उस महान व्यक्तित्व के प्रति अन्याय होगा)

मेरे दादाजी स्वर्गीय श्याम देव नारायण पाण्डेय की आज 32वीं पुण्यतिथि है। आपका स्वर्गारोहण 26 मई, 1990 को हुआ था। जब जब दादाजी की याद आती है,तब तब सीवान जिले में गंगपुर सिसवन गांव स्थित संत हरेराम ब्रह्मचारी व दुली बाबा के व्यक्तित्व व कृतित्व की भी याद आती है।

लेकिन इससे पहले गांव में सिसोदिया वंश के राजपूत भाई बंधुओं के अतीत को स्मरण करना आवश्यक है, जो महाराणा प्रताप के निधन से अनाथ होकर राजस्थान की धरती को त्याग कर सीवान जिले में तब का सारण जिला की धरती गंगपुर सिसवन को अपना सदन बनाया, तब से यह गांव प्रकृति के सुरम्य गोद में सरयू नदी के तट पर बसा व आबाद है।

यह गांव हम पाण्डेय परिवार के पूर्वजों का पुण्य स्थल है। हम सभी मूलतः सारण जिले में एकमा के निकट जोगिया गांव के रहवासी थे लेकिन प्रभु की इच्छा से परिवार के एक पूर्वज तिलकधारी पाण्डेय यानी श्याम देव नारायण पाण्डेय के दादाजी का विवाह गंगपुर सिसवन निवासी तिवारी परिवार की बेटी बेउरा देवी से हुआ, तभी से यह धरती हमारी पुण्यभूमि हो गई। आज हम सभी छठी पीढ़ी के रूप में यहां निवास कर रहे हैं।

दादाजी श्याम देव नारायण पाण्डेय अपने चार भाइयों में कुशाग्र बुद्धि के धनी व्यक्ति थे। आपकी शिक्षा परिवार व गांव में ही हुई, गांव में स्थित हरेराम ब्रह्मचारी उच्च विद्यालय से 1939 में दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1944 में सारण के राजेंद्र कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन स्वतंत्र भारत में ही सरकारी नौकरी करने का मौका मिला,जब आप 1951 में भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रूप में चयनित हुए और 1951 से 1978 तक देश की विभिन्न नगरो में उत्कृष्ट सेवा दी। इसके बाद सेवानिवृत्त होकर गांव पर ही रहने लगे। अपने छह बेटे और बेटियों के चिंताओं से मुक्त स्वतंत्र व उन्मुक्त तेवर वाले आप व्यक्ति रहे। अपने अध्ययन,लेखन व तीक्ष्ण व्यवहार से आप सदैव समाज में एक स्थान प्राप्त करते रहे।

हम सभी पौत्र छोटका बाबा के लेखनी के कायल थे, अंग्रेजी तो आपको विरासत में मिली थी। आप कहा करते थे कि “language is a doorstep of knowledge” आप कानून के भी अच्छे जानकार थे,कई बार न्यायालयों में वकीलों की सहायता हेतु आपको बड़े आदर और सम्मान के साथ बुलाया जाता था। हम सभी को यह गौरव बोध है कि हमारे पूर्वज समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति रहे हैं हमें परिचय देने की आवश्यकता नहीं, आज भी गांव के रहवासी हम सभी को भरा पूरा, शिक्षित व आबाद मानते हैं जिसकी जड़ आप में निहित है,हम सभी को आपसे शिक्षा विरासत में मिली है,जिसका हम सभी को स्वाभिमान प्राप्त है।

आज भी जब मैं अपने बचपन के दिनों को याद करता हूं तो मुझे लगता है कि दादा जी यह कह रहे हैं कि…
“मैं तेरा श्याम हूं,
मैं तेरा देव हूं
मैं ही तेरा नारायण भी हूं,
तुम सभी मुझसे हो,
तुम सभी सदा सुखी रहो,
मेरा स्नेह,आशीष,आशीर्वाद सदैव तुम सभी पर बना रहेगा।

दादा जी की 32वीं पुण्यतिथि पर शत-शत नमन।

आपका पौत्र,
राजेश पाण्डेय

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