मतदाता सूची के प्रारूप प्रकाशन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया-सुप्रीम कोर्ट
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सुप्रीम कोर्ट में आज SIR से जुड़े मामले में सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने विपक्ष को एक और झटका दिया है।शीर्ष न्यायालय ने चुनावी राज्य बिहार में मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और कहा कि वह निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ याचिकाओं पर एक बार निर्णय करेगा।दरअसल, इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ कर रही है। पीठ ने कहा कि वह 29 जुलाई को मामले की अंतिम सुनवाई के लिए समय तय करेगी।
वोटर लिस्ट के प्रकाशन पर रोक से इनकार
जानकारी दें कि एक गैर सरकारी संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ने गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि मतदाता सूचियों को अंतरिम रूप से अंतिम रूप नहीं दिया जाना चाहिए और मसौदा सूचियों के प्रकाशन पर अंतरिम रोक लगा दी जानी चाहिए। इसके बाद मामले की सुनवाई कर रही पीठ ने कोर्ट के पूराने आदेश पर गौर किया। जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता अंतरिम राहत के लिए दबाव नहीं डाल रहे हैं और इसलिए अभी ऐसा नहीं किया जा सकता और मामले की एक बार में ही व्याख्या की जाएगी।
आधार को भी किया जाए शामिल
इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार और मतदाता पहचान पत्रों को डॉक्यूमेंटेशन की लिस्ट में शामिल करें। वहीं, राशन कार्ड को लेकर कोर्ट ने कहा कि जहां तक राशन कार्डों का सवाल है, हम कह सकते हैं कि उन्हें आसानी से जाली बनाया जा सकता है, लेकिन आधार और मतदाता पहचान पत्रों की कुछ सत्यता होती होती है और उनकी असली होने की धारणा होती है। आप इन दस्तावेजों को स्वीकार करना जारी रखें।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाले मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि ‘इसमें किसी तरह की गड़बड़ी पाए जाने पर इसे रद्द कर दिया जाएगा। इसके साथ ही, शीर्ष अदालत ने भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए आधार और मतदाता फोटो पहचान पत्र को स्वीकार्य दस्तावेजों में शामिल करने का निर्देश दिया है। जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि ‘ किसी भी सरकारी दस्तावेज की सत्यता यानी असली होने की धारणा होती है, ऐसे में निर्वाचन आयोग एसआईआर के लिए आधार और वोटर कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेजों में शामिल करने का निर्देश दिया है।
इससे पहले, बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाले गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआआर) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने निर्वाचन आयोग को मतदाता सूचियों को अंतरिम रूप देने और 1 अगस्त को मसौदा मतदाता सूचियों के प्रकाशन पर अंतरिम रोक लगाने का आग्रह किया। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने शीर्ष अदालत के 10 जुलाई के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि चूंकि याचिकाकर्ताओं ने अंतरिम राहत की मांग नहीं की थी, ऐसे अब किसी तरह की अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती है।
साथ ही कहा कि अब हम सभी पक्षों को सुनने के बाद मामले में अंतिम निर्णय ही पारित करेंगे। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायणन ने कहा कि मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन पर रोक लगाने की अंतरिम राहत की मांग नहीं की गई थी क्योंकि शीर्ष अदालत ने आश्वासन दिया था कि मामले को 1 अगस्त से पहले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। रोक लगाने से इनकार करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा है कि ‘हमने निर्वाचन आयोग के इस कथन पर भी विचार किया है, जिसमें कहा गया है कि एसआईआर के लिए गणना प्रपत्र मसौदा मतदाता सूचियों के प्रकाशन के बाद भी जमा किए जा सकते हैं।
जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी साफ किया कि ‘इस अदालत की शक्ति को कम मत समझिए। हम पर भरोसा कीजिए। यदि अदालत आपकी दलीलों से सहमत होती है और यह पता चलता है कि एसआईआर में कोई गड़बड़ी या अवैधता पाई जाती है, तो यह अदालत तुरंत पूरी प्रक्रतया को रद्द कर देगी। जस्टिस सुधांशु धूलिया की अगुवाई वाली पीठ ने 10 जुलाई को निर्वाचन आयोग से एसआईआर के लिए आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश देते हुए, इस प्रक्रिया को रखने की अनुमति दे दी।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वह प्रथम दृष्टया 10 जुलाई के आदेश से सहमत है और आयोग ने अपने जवाबी हलफनामे में स्वीकार किया है कि आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड स्वीकार किए जा सकते हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने राशन कार्ड पर अपनी आपत्ति व्यक्त करते हुए अन्य दो दस्तावेजों की वास्तविकता की धारणा का समर्थन किया। इस पर एडीआर की ओर से शंकरनारायणन ने कहा कि आधार और मतदाता पहचान पत्र स्वीकार करने के चुनाव आयोग के जवाबी हलफनामे में दिए गए दावे के बावजूद, ज़मीनी स्तर पर कुछ और ही पता चलता है।
इस पर पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने एसआईआर के लिए 11 दस्तावेजों की जो सूची तैयार की थी, वह समावेशी नहीं, बल्कि संपूर्ण थी और वे पहचान के उद्देश्य से आधार और मतदाता पहचान पत्र दोनों का उपयोग कर रहे थे। दुनिया का कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है- जस्टिस सूर्यकांत भारत के निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है और मतदाता पहचान पत्र पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एक संशोधन प्रक्रिया है, अन्यथा ऐसी प्रक्रिया का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ‘दुनिया का कोई भी दस्तावेज़ जाली हो सकता है। निर्वाचन आयोग जालसाजी के मामलों को केस-दर-केस आधार पर निपटा सकता है। उन्होंने कहा कि सामूहिक बहिष्कार के बजाय, सामूहिक समावेशन होना चाहिए। वहीं, जस्टिस बागची ने निर्वाचन आयोग का हवाला देते हुए कहा कि एसआईआर के लिए 11 दस्तावेजों में से कोई भी निर्णायक नहीं था। साथ ही आयोग से सवाल किया कि केवल आधार अपलोड करने वाले व्यक्ति को मतदाता सूची में शामिल क्यों नहीं किया जा सकता?
इस पर आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता द्विवेदी ने कहा कि आयोग आधार और मतदाता पहचान पत्र, दोनों स्वीकार कर रहा है, लेकिन कुछ सहायक दस्तावेजों के साथ। अब पीठ ने सभी पक्षों की ओर से पेश वकीलों से 29 जुलाई तक समय-सीमा और बहस के लिए आवश्यक समय प्रस्तुत करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में कराए जा रहे मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
याचिकाओं में एसआईआर को मनमाना बताते हुए कहा गया है कि यदि एसआईआर आदेश को रद्द नहीं किया गया, तो मनमाने ढंग से और बिना उचित प्रक्रिया के लाखों नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने और मताधिकार के अधिकार से वंचित होना पड़ेगा।