भाषा को सियासत की बैसाखी की जरूरत नहीं,क्यों?
भाषा को सियासत की बैसाखी की जरूरत नहीं,क्यों? श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क आजादी से पहले रोजी-रोटी की तलाश में अपने पूर्वांचल से बंबई पहुंचे। ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। विरार में ठिकाना बनाया। टोकरी में केले बेचने लगे। मेहनत और लगन ऐसी कि धीरे-धीरे वे केले के बड़े व्यापारी बन गए। दादर में दुकान खुली, भुसावल…