हिंदी साहित्य का शुक्ल पक्ष : छह महीनों में 30 लाख की रॉयल्टी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता विनोद शुक्ल को उनकी पुस्तक ‘दीवार में खिड़की रहती थी’ की 87 हजार से ज्यादा प्रतियां बिकने पर 30 लाख रुपए की रॉयल्टी मिली
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में चौथे ‘हिंद युग्म साहित्य’ महोत्सव की शुरूआत हुई और इस दौरान भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को उनके चर्चित उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए प्रकाशक ने उन्हें 30 लाख रुपये की रॉयल्टी का प्रतीकात्मक चेक भेंट किया
महोत्सव के आयोजकों ने रविवार को बताया कि शहर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में शनिवार को वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना द्वारा दीप प्रज्वलन किए जाने के साथ दो दिवसीय उत्सव की शुरुआत हुई।
किताबें छप भर जाने से खुश होने वाले हिंदी लेखक के लिए तो यह ऐतिहासिक घटना ही है
विनोद कुमार शुक्ल पर केंद्रित हिंद युग्म के 4थे सालाना उत्सव का सत्र ‘हिंदी साहित्य का शुक्ल पक्ष : छह महीनों में 30 लाख- हिंदी साहित्य में संभव हुआ असंभव’ अभी पूरा हुआ। इस सत्र में विनोद कुमार शुक्ल के 68 साल से मित्र और हमारे समय के महान कवि नरेश सक्सेना ने एक साहित्यकार को छह महीने में इतनी बड़ी रॉयल्टी मिलने को हिंदी साहित्य के इतिहास का सबसे बड़ा दिन बताया।
यह रॉयल्टी इसलिए महत्वपूर्ण नहीं कि रक़म बड़ी है, बल्कि इसलिए कि यह असंभव का संभव होना है, क्योंकि यह आंकड़ा यह बताता है कि हिंदी साहित्य में किताब बिकने और पढ़ने का नंबर कितना बड़ा और बढ़ा है। इसी सिलसिले में नरेश सक्सेना ने हिंद युग्म को बधाई देते हुए कहा कि इसे हिंद युग्म प्रकाशन ही मुमकिन कर सका और यह कामयाबी विनोद कुमार शुक्ल ने हिंदी साहित्य को दी है। इस सत्र में विनोद कुमार शुक्ल को छह महीने की रॉयल्टी 30 लाख का चेक दिया गया। यह पल हम सबके लिए और हिंदी साहित्य के लिए एक ऐतिहासिक पल साबित हुआ।
आज सोशल मीडिया के जमाने में जहां सबकुछ फटाफट देख लेने और पढ़ लेने की आदत बन गई है। ऐसा माना जाता है कि इसी का असर है कि आज की पीढ़ी पुस्तकों से दूर हो रही है। GEN-Z- तो मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों से ही दुनिया देखेगी और जानेगी। ऐसे में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद शुक्ल को उनकी पुस्तक के लिए 30 लाख रुपए की मिली रॉयल्टी इस बात की आशा लेकर आई है कि पुस्तक पढऩे वाले आज भी बढ़ रहे हैं।
30 लाख रुपए का प्रतीकात्मक चेक
ऐसा नहीं है कि हिंदी साहित्य पढ़ा या खरीदा नहीं जा रहा। देश में इस तरह की धारणा बनाई जा रही है, लेकिन शुक्ल जी को मिली रॉयल्टी इस पर विराम लगाने के लिए काफी है। शनिवार को दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम इस बात का साक्षी बना कि विनोद कुमार शुक्ल की किताबें खूब पढ़ी जा रही हैं।
हिंदी युग्म उत्सव कार्यक्रम के दौरान आंकड़े जारी कर बताया गया कि अप्रैल से अब तक शुक्ल की लिखी अकेले ’दीवार में खिड़की रहती थी’ की ही 87 हजार से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं। इसी के लिए शुक्ल को हिंदी युग्म की तरफ से छह महीने की रॉयल्टी लगभग 30 लाख रुपए का प्रतीकात्मक चेक सौंपा गया। यह राशि उनके खाते में पहले ही भेज दी थी।